भोपाल। शिक्षा वरदान है. शिक्षा मनुष्य को सभ्य बनाती है और जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने का हुनर देती है. शिक्षा में बड़ी भूमिका निभाती है हमारी आंखें, लेकिन जिन लोगों की आंखें देख नहीं सकतीं क्या वे शिक्षा से महरूम रह जाएंगे, तो इसका जवाब है नहीं. लुई ब्रेल ने ब्रेल लिपी का आविष्कार कर दृष्टिहीन लोगों के लिए शिक्षा पाना आसान कर दिया.
बता दें कि आज विश्व ब्रेल दिवस है. 4 जनवरी को लुई ब्रेल के जन्मदिन के मौके पर दुनियाभर में विश्व ब्रेल दिवस मनाया जाता है. लुई ब्रेल का जन्म 1809 को फ्रांस में हुआ था और इन्होंने तीन वर्ष की उम्र में ही हुई एक दुर्घटना में अपनी आंखें खो दी थीं. लुई ब्रेल लेखक थे. इन्होंने दृष्टिहीनों के लिए ब्रेल लिपी का आविष्कार1884 में किया था.
ब्रेल लिपी एक ऐसी पद्धति है, जिसमें नेत्रहीन शब्दों को हाथों से छूकर और महसूस कर पढ़ते हैं. यह अलग-अलग अक्षरों, संख्याओं और विराम चिन्हों को दर्शाते हैं.
विश्व ब्रेल दिवस उन लोगों के लिए पहुंच और स्वतंत्रता के महत्व की याद दिलाता है, जो नेत्रहीन हैं. वैसे आज भी हालात ये हैं कि कई प्रतिष्ठानों, रेस्तरां, बैंक, अस्पताल में ब्रेल मेनू, विवरण या बिल नहीं हैं. इसका मतलब यह है कि दृष्टिहीन लोगों को अपना चयन करने की स्वतंत्रता नहीं दी गई है.
आइये अब हम जानते है कि ब्रेल लिपि क्या है-
ब्रेल 6 डॉट्स टू का उपयोग करके अल्फाबेटिक और संख्यात्मक प्रतीकों का एक स्पर्शपूर्ण प्रतिनिधित्व है. यह हर अक्षर, संख्या और यहां तक कि संगीत, गणितीय और वैज्ञानिक प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
ब्रेल शिक्षा अभिव्यक्ति और राय की स्वतंत्रता है. यह सामाजिक समावेश, व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन के अनुच्छेद 2 में दिखाई देता है.
भारत में ब्रेल लिपि के आंकड़े-
• भारत की ब्रेल साक्षरता दुनिया में सबसे कम है.
• दुनिया में हर तीन दृष्टिहीन लोगों में से एक भारत में निवासरत है.
• अनुमानित 15 मिलियन दृष्टिहीन लोग भारत में रहते हैं.
• हर साल 3 मिलियन लोगों की आंखों में मोतियाबिंद होता है.
• भारत में 2 मिलियन नेत्रहीन बच्चे हैं, जिनमें से केवल 5% बच्चे शिक्षा हासिल करते हैं.
• 6.86% स्कूलों में ब्रेल पुस्तकें और ऑडियो सामग्री उपलब्ध है.
• वहीं भारत में 29.16 फीसदी दृष्टिहीन लोग शिक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं.
दृष्टिबाधितों के लिए शिक्षा के इतिहास में है मील का पत्थर-
⦁ 1923 में ये निर्णय लिया गया कि ब्रेल प्रेस की स्थापना पुस्तकों के उत्पादन के लिए की जाएगी.
⦁ 1941 में भारतीय के लिए एक समान ब्रेल कोड विकसित करने के लिए एक समिति का गठन किया गया था.
⦁ 1944 में शिक्षा, प्रशिक्षण और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा मंत्रालय में एक सेल की स्थापना की गई थी.
⦁ भारतीय के लिए एक सामान्य ब्रेल कोड "भारती ब्रेल" का विकास और स्वीकृति नवंबर 1950 में भाषाओं को अंतिम रूप दिया गया था और पहले के कोड को निश्चित के प्रकाश में बदल दिया गया.
⦁ 1951 में देहरादून में पहली ब्रेल प्रेस की स्थापना की गई. ब्रेल प्रेस 'सोसायटी फॉर द केयर ऑफ द ब्लाइंड' की एक विशेष इकाई है, जिसमें पढ़ना और लिखना दृष्टिहीनों के साथ ही अन्य छात्रों के लिए शिक्षा के दो सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं. इस सोसायटी ने एक छोटे पैमाने पर ब्रेल उत्पादन इकाई 90 के दशक में एक शुरुआत की थी और कम्प्यूटरीकृत ब्रेल एम्बॉसर्स को 1997 में प्रासंगिक सॉफ्टवेयर के साथ पेश किया गया.
दृष्टिबाधितों के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार की पहल-
⦁ व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम
⦁ राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्थान
⦁ आम ब्रेल कोड
⦁ विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की समावेशी शिक्षा
⦁ व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर
ब्रेल को मुख्यधारा में लाना
⦁ 2019 के लोकसभा चुनावों में दृष्टिहीन मतदाताओं को ब्रेल मतदाता पर्ची मिली. यह आयोग 'सुलभ चुनाव' के लिए रणनीति के ढांचे का एक हिस्सा था.
⦁ आयोग ने सभी को बताया है कि मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुलभ फोटो मतदाता को जारी करने के लिए ब्रेल के साथ ये पर्ची नेत्रहीन मतदाताओं को देते हैं.
⦁ भारत में इलेक्ट्रॉनिक मतदाता मशीनों में पहले से ही ब्रेल सुविधा है.
ब्रेल लिपी की आवश्यकताएं और समस्याएं-
ब्रेल डिस्प्ले की लागत बहुत अधिक होती है और ब्रेल को कम लागत पर शिक्षा प्रणाली में शामिल करने की तत्काल आवश्यकता है.
ब्रेल को सार्वजनिक जागरूकता और इसे सार्वजनिक स्थान का हिस्सा बनाने की आवश्यकता है, ताकि विभिन्न भाषाओं के साथ जानकारी नेत्रहीनों को दी जा सके.
नेत्रहीनों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ब्रेल प्रेस, प्रकाशन, शैक्षणिक और पेशेवर संस्थानों और संगठनों की मांग की गई है, जिससे ब्रेल साहित्य को बढ़ावा मिल सके.
ब्रेल लेखकों को ब्रेल लेखन उपकरणों को आसानी से उपलब्ध कराया जाए, ताकि ब्रेल विशेषज्ञ इसका उपयोग कर सके.