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भोपाल में अंतिम संस्कार के बाद मोक्ष का इंतजार, समाजसेवी कर रहे अस्थियों का विसर्जन - Bhadbhada Vishram Ghat Committee

भोपाल में श्मशान घाट में कोरोना काल में ऐसी परिस्थियां पैदा हो गई हैं कि अपने ही अपनों को अंतिम विदाई तक देने नहीं आ पा रहे.लेकिन कुछ समाजसेवी और भदभदा विश्राम घाट समिति न सिर्फ लोगों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं बल्कि उनका पवित्र नदियों में विसर्जन भी कर रहे हैं.

समाजसेवी कर रहे अस्थियों का विसर्जन
समाजसेवी कर रहे अस्थियों का विसर्जन
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Published : May 25, 2021, 7:40 PM IST

भोपाल। कोरोना ने ऐसे हालात दिखा दिए हैं जिन्हें न सोचा था न ही किसी ने कल्पना की थी.लोग मरने के बाद मोक्ष मिल जाए इसके लिए जाने कितने पुण्य काम जिंदगी भर करते हैं लेकिन कोरोना ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि लोगों के आखिरी वक्त में अपने भी कन्नी काटने को मजबूर हैं.जी हां हम बात कर रहे हैं राजधानी भोपाल की.जहां के भदभदा घाट विश्राम घाट में इन दिनों ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जहां न तो अंतिम क्रियाकलाप करने कोई आ पा रहा है और न ही उन्हे विसर्जन के लिए ले जा पा रहे है.ऐसे में किसी किसी के रिश्तेदार जरुर उन अपनों को विसर्जन के लिए ले जा पा रहे हैं. लेकिन अक्सर ही परिजन अंतिम संस्कार के साथ विसर्जन के लिए भी नहीं आ पा रहे हैं.और ऐसी विपरीत परिस्थिति में भदभदा विश्राम घाट समिति लोगों की अस्थियां न सिर्फ सहेज कर रखते हैं बल्कि उन्हे कुछ समय बाद नर्मदा में विसर्जित भी कर रहे हैं.

भदभदा विश्राम घाट समिति निभा रही अहम रोल


डेड बॉडी छूने को तैयार नहीं थे लोग
मीता वाधवा जो भोपाल में रहती हैं, उनके हाथों में जो अस्थियां आप देख रहे हैं यह एक 58 साल की बुजुर्ग महिला की हैं. महिला की मौत होने के बाद उनको श्मशान तक लाने की कोई व्यवस्था नहीं थी. अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था. महिला के परिजन बेंगलुरु में रहते हैं. वे भी उम्रदराज हैं उनकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि यहां आकर महिला का अंतिम संस्कार कर सकें. मीता वाधवा बताती हैं कि महिला की मौत बाथरूम में गिरने से हुई. उन्हें इससे पहले कोविड-19 हुआ था. लेकिन वे ठीक हो गई थीं. इसके बाद उनकी मौत हो गई. कॉलोनी के लोग डर के कारण उन्हें देखने तक नहीं पहुंचे. यहां तक कि कोई डेड बॉडी को छूने को भी तैयार नहीं था. हमें सूचना मिली तो हमने मिलकर उनका अंतिम संस्कार करने का जिम्मा उठाया, इसके बाद भदभदा विश्राम घाट समिति के लोग आगे आए, उन्होंने हमारी बहुत मदद की, यहां पर महिला का अंतिम संस्कार हुआ और उनकी अस्थियों को नर्मदा में वसर्जित करने का फैसला किया है

भदभदा विश्राम घाट समिति निभा रही अहम रोल
भदभदा विश्राम घाट समिति के सचिव कहते हैं ऐसा मंजर कभी नहीं देखा, लोग अपने रिश्तेदारों को श्मशान तक लेकर तो आते हैं लेकिन अंतिम संस्कार तक नहीं कर रहे हैं. समिति के सदस्यों से कहकर चले जाते हैं कि आप ही इसकी व्यवस्था करें, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मध्यप्रदेश से बाहर के होते हैं. परिजनों की मौत के बाद कोरोना के डर से वापस चले जाते हैं, ऐसे हालात में हम मृत शरीरों का अंतिम संस्कार करवाते हैं, उनकी अस्थियां सहेजकर रखते हैं, बाद में किसी पवित्र नदी में उनका विसर्जन कर देते हैं. अब तक कम से कम डेढ़ सौ से ज्यादा ऐसे लोगों का अंतिम संस्कार और अस्थियों का विसर्जन हम लोग कर चुके हैं

कोरोना ने कई की जिंदगी को एकदम से बदलकर रख दिया है.किसी के अपने तो किसी के दोस्तों को सदा के लिए जुदा कर दिया है.लेकिन इस कठिन समय में भी लोग एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं और मिसाल पेश कर रहे हैं.उम्मीद है ऐसे हौसलों से मानवता सदा जिंदा रहेगी.

भोपाल। कोरोना ने ऐसे हालात दिखा दिए हैं जिन्हें न सोचा था न ही किसी ने कल्पना की थी.लोग मरने के बाद मोक्ष मिल जाए इसके लिए जाने कितने पुण्य काम जिंदगी भर करते हैं लेकिन कोरोना ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि लोगों के आखिरी वक्त में अपने भी कन्नी काटने को मजबूर हैं.जी हां हम बात कर रहे हैं राजधानी भोपाल की.जहां के भदभदा घाट विश्राम घाट में इन दिनों ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जहां न तो अंतिम क्रियाकलाप करने कोई आ पा रहा है और न ही उन्हे विसर्जन के लिए ले जा पा रहे है.ऐसे में किसी किसी के रिश्तेदार जरुर उन अपनों को विसर्जन के लिए ले जा पा रहे हैं. लेकिन अक्सर ही परिजन अंतिम संस्कार के साथ विसर्जन के लिए भी नहीं आ पा रहे हैं.और ऐसी विपरीत परिस्थिति में भदभदा विश्राम घाट समिति लोगों की अस्थियां न सिर्फ सहेज कर रखते हैं बल्कि उन्हे कुछ समय बाद नर्मदा में विसर्जित भी कर रहे हैं.

भदभदा विश्राम घाट समिति निभा रही अहम रोल


डेड बॉडी छूने को तैयार नहीं थे लोग
मीता वाधवा जो भोपाल में रहती हैं, उनके हाथों में जो अस्थियां आप देख रहे हैं यह एक 58 साल की बुजुर्ग महिला की हैं. महिला की मौत होने के बाद उनको श्मशान तक लाने की कोई व्यवस्था नहीं थी. अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था. महिला के परिजन बेंगलुरु में रहते हैं. वे भी उम्रदराज हैं उनकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि यहां आकर महिला का अंतिम संस्कार कर सकें. मीता वाधवा बताती हैं कि महिला की मौत बाथरूम में गिरने से हुई. उन्हें इससे पहले कोविड-19 हुआ था. लेकिन वे ठीक हो गई थीं. इसके बाद उनकी मौत हो गई. कॉलोनी के लोग डर के कारण उन्हें देखने तक नहीं पहुंचे. यहां तक कि कोई डेड बॉडी को छूने को भी तैयार नहीं था. हमें सूचना मिली तो हमने मिलकर उनका अंतिम संस्कार करने का जिम्मा उठाया, इसके बाद भदभदा विश्राम घाट समिति के लोग आगे आए, उन्होंने हमारी बहुत मदद की, यहां पर महिला का अंतिम संस्कार हुआ और उनकी अस्थियों को नर्मदा में वसर्जित करने का फैसला किया है

भदभदा विश्राम घाट समिति निभा रही अहम रोल
भदभदा विश्राम घाट समिति के सचिव कहते हैं ऐसा मंजर कभी नहीं देखा, लोग अपने रिश्तेदारों को श्मशान तक लेकर तो आते हैं लेकिन अंतिम संस्कार तक नहीं कर रहे हैं. समिति के सदस्यों से कहकर चले जाते हैं कि आप ही इसकी व्यवस्था करें, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मध्यप्रदेश से बाहर के होते हैं. परिजनों की मौत के बाद कोरोना के डर से वापस चले जाते हैं, ऐसे हालात में हम मृत शरीरों का अंतिम संस्कार करवाते हैं, उनकी अस्थियां सहेजकर रखते हैं, बाद में किसी पवित्र नदी में उनका विसर्जन कर देते हैं. अब तक कम से कम डेढ़ सौ से ज्यादा ऐसे लोगों का अंतिम संस्कार और अस्थियों का विसर्जन हम लोग कर चुके हैं

कोरोना ने कई की जिंदगी को एकदम से बदलकर रख दिया है.किसी के अपने तो किसी के दोस्तों को सदा के लिए जुदा कर दिया है.लेकिन इस कठिन समय में भी लोग एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं और मिसाल पेश कर रहे हैं.उम्मीद है ऐसे हौसलों से मानवता सदा जिंदा रहेगी.

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