भोपाल। 1 जुलाई को शहडोल जिले में पीएम नरेंद्र मोदी स्थानीय जनजातीय संस्कृति और परंपराओं से रूबरू होंगे. प्रधानमंत्री मोदी खटिया पर बैठ कर देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय, फुटबॉल क्रांति के खिलाड़ियों, स्व-सहायता समूह की लखपति दीदियों और अन्य लोगों से संवाद करेंगे. ऐसा पहली बार होगा जब प्रधानमंत्री देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठ कर कोदो, भात-कुटकी खीर का आनंद लेंगे. प्रधानमंत्री के भोज में मोटा अनाज (मिलेट) को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है. पकरिया गांव में प्रधानमंत्री के भोज तैयारी की गई है.
दुर्लभ है ये कढ़ी: पीएम मोदी शहडोल में आदिवासियों के साथ जमीन में बैठ कर भोजन करेंगे. जिसमें विंध्य के पारंपरिक व्यंजन परोसे जाएंगे, लेकिन इन व्यंजनों में सबसे आकर्षक है इंदरहर की कढ़ी. यह कढ़ी देश की सबसे मंहगी कढ़ी मानी माती है. इंदरहर की कढ़ी खाने में जितनी जायकेदार होती है उसको बनाने की विधि भी उतनी ही कठिन होती है. आमतौर पर विंध्य में जब किसी के घर पर समधी का आगमन होता है तब इंदरहर की कढ़ी बनाई जाती है. यह कढ़ी अब विलुप्त होने वाले व्यंजनों में भी शामिल है जिसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इसको दादी नानी बनाया करती थीं. उनकी रेसिपी कुछ समय तक चलती रही लेकिन पीढ़ी परिवर्तन और आधुनिकता के साथ इस कढ़ी का चलन कम होता जा रहा है क्योंकि इसको बनाने की विधि काफी कठिन मानी जाती है.
इसलिए है सबसे मंहगी कढ़ी: इंदरहर की कढ़ी को सबसे मंहगा इसलिए माना जाता है क्योंकि इसमें पांच प्रकार की दाल का इस्तेमाल होता है. साथ में दर्जन भर मसाले लगते हैं इसलिए इंदरहर की कढ़ी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है. फिलहाल अब यह कढ़ी इसी लिए चर्चाओं में है क्योंकि विंध्य का यह पारंपरिक व्यंजन माना जाता है और जब देश का मुखिया शहडोल जैसे शहर और फिर पकरिया गांव में आदिवासियों के साथ भोजन करेंगे. पकरिया सघन वन से आच्छादित एक ऐसा गांव है, जहां साल, सागौन, महुआ, कनेर, आम, पीपल, बेल, कटहल, बांस और अन्य पेड़
हैं.
पकरिया गांव के निवासी: पकरिया गांव में 4700 लोग निवास करते हैं, जिसमें 2200 लोग मतदान करते हैं. गांव में 700 घर जनजातीय समाज के हैं, जिनमें गोंड समाज के 250, बैगा समाज के 255, कोल समाज के 200, पनिका समाज के 10 और अन्य समाज के लोग निवास करते हैं. पकरिया गांव में 3 टोला है, जिसमें जल्दी टोला, समदा टोला एवं सरकारी टोला शामिल है.
जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की लीला-मुद्राओं का अनुकरण: ढोल, मांदर, गुदुम, टिमकी, डहकी, माटी मांदर, थाली, घंटी, कुंडी, ठिसकी, चुटकुलों की ताल पर बांसुरी, फेफरिया और शहनाई की स्वर-लहरियों के साथ भील, गोंड, कोल, कोरकू, बैगा, सहरिया, भारिया आदि जनजातीय युवक-युवतियों की तरह बघेलखंड-शिखर थिरक उठते हैं. जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की इन्हीं लीला-मुद्राओं का अनुकरण है. वृक्षों का झूमना और कीट-पतंगों का स्वाभाविक नर्तन जनजातियों को नृत्य के लिये प्रेरित करते हैं. हवा की सरसराहट, मेघों का गर्जन, बिजली की कौंध, वर्षा की सांगीतिक टिप-टिप, पक्षियों की लयबद्ध उड़ान, ये सब नृत्य-संगीत के उत्प्रेरक तत्व हैं.
नृत्य-संगीत जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग: कहा जा सकता है कि नृत्य और संगीत मनुष्य की सबसे कोमल अनुभूतियों की कलात्मक प्रस्तुति है. जनजातियों के देवार्चन के रूप में आस्था की परम अभिव्यक्ति की प्रतीक भी. नृत्य-संगीत, जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग है. यह दिन भर के श्रम की थकान को आनंद में संतरित करने का उनका एक नियमित विधान भी है.
गोंड समुदाय के 'सजनी' गीत-नृत्य: गांव में गोंड जनजाति समूह में करमा, सैला, भड़ौनी, बिरहा, कहरवा, ददरिया, सुआ आदि नृत्य-शैलियां प्रचलित हैं. गोंड समुदाय के 'सजनी' गीत-नृत्य की भाव-मुद्राएं लोगों का मन मोह लेती हैं. दीवाली नृत्य भी अनूठा होता है. मांदर, टिमकी, गुदुम, नगाड़ा, झांझ, मंजीरा, खड़ताल, सींगबाजा, बांसुरी, अलगोझा, शहनाई, बाना, चिकारा, किंदरी आदि इस समुदाय के प्रिय वाद्य हैं. बैगा, माटी मांदर और नगाड़े के साथ करमा, झरपट और ढोल के साथ दशहरा नृत्य करते हैं. विवाह के अवसर पर ये बिलमा नृत्य करते हैं. बारात के स्वागत में किया जाने वाला परघौनी नृत्य आकर्षक होता है. छेरता नृत्य नाटिका में मुखौटों का अनूठा प्रयोग होता है. इनकी नृत्यभूषा और आभूषण भी विशेष होते हैं.
पकरिया के जनजातीय समाज की पूजन-अर्चन शैली: पकरिया गाव के जनजाति समूह में हरहेलबाब या बाबदेव, मइड़ा कसूमर, भीलटदेव, खालूनदेव, सावनमाता, दशामाता, सातमाता, गोंड जनजाति में महादेव, पड़ापेन या बड़ादेव, लिंगोपेन, ठाकुरदेव, चंडीमाई, खैरमाई, बैगा जनजाति में बूढ़ादेव, बाघदेव, भारिया दूल्हादेव, नारायणदेव, भीमसेन और सहरिया जनजाति में तेजाजी महाराज, रामदेवरा आदि की पूजा पारंपरिक रूप से प्रचलित है.
पकरिया की जनजातियों का विशेष भोजन: पकरिया गांव के जनजाति समुदाय के भोजन में कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, सांवा, मक्का, चना, पिसी, चावल आदि अनाज शामिल है. महुए का उपयोग खाद्य और मदिरा के लिये किया जाता है. आजीविका के लिये प्रमुख वनोपज के रूप में भी इसका संग्रहण सभी जनजातियां करती हैं. बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों के लोगों को वनौषधियों का परंपरागत रूप से विशेष ज्ञान है बैगा कुछ वर्ष पूर्व तक बेवर खेती करते आ रहे हैं.