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Parivartini Ekadashi 2021: जानें कब है परिवर्तनी एकादशी? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पारण समय - Spirituality puja path

हिंदू पंचांग के अंतर्गत प्रत्येक माह की 11वीं तीथि को एकादशी कहा जाता है. एकादशी को भगवान विष्णु को समर्पित तिथि माना जाता है. हिन्दी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है.

Parivartini Ekadashi 2021
परिवर्तनी एकादशी
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Published : Sep 17, 2021, 12:05 AM IST

हैदराबाद। हिंदू पंचांग के अंतर्गत प्रत्येक माह की 11वीं तीथि को एकादशी कहा जाता है. एकादशी को भगवान विष्णु को समर्पित तिथि माना जाता है. हिन्दी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु योग निद्रा में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं. इस कारण से इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. इसे वामन एकादशी, पार्श्व एकादशी या जयंती एकादशी भी कहा जाता है.

परिवर्तिनी एकादशी शुभ ​मुहूर्त
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 16 सितंबर दिन गुरुवार को सुबह 09 बजकर 36 मिनट से होगा. इसका समापन अगले दिन 17 सितंबर दिन शुक्रवार को प्रात: 08 बजकर 07 मिनट पर होगा. व्रत के लिए उदयातिथि मान्य होती है, ऐसे में परिवर्तनी एकादशी का व्रत 17 सितंबर दिन शुक्रवार है.

परिवर्तिनी एकादशी का पारण समय
17 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखेंगे, उनको व्रत का पारण अगले दिन 18 सितंबर दिन शनिवार को प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से प्रात: 06 बजकर 54 मिनट के मध्य कर लेना चाहिए. इस दिन द्वादशी तिथि प्रात: 06 बजकर 54 मिनट पर समाप्त हो रही है, इसलिए आप इससे पूर्व पारण कर लें. एकादशी व्रत का पारण सदैव द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व कर लेना चाहिए.

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पार्श्व या परिवर्तिनी एकादशी के पूजा की विधि

  • एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. साफ स्वच्छ कपड़े पहनें.
  • जिस स्थान पर आपको पूजा करनी है, उस जगह की सफाई करें और गंगाजल डालकर पूजन स्थल को साफ और पवित्र कर लें.
  • अब पूजा की चौकी लेकर उसमें पीले रंग का कपड़ा बिछा लें.
  • उस चौकी में भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा विराजित करें.
  • इसके बाद दीया जलाएं और प्रतिमा पर हल्दी, कुमकुम और चंदन लगाकर तिलक करें.
  • अब दोनों हाथ जोड़कर भगवान विष्णु का ध्यान करें और प्रतिमा पर तुलसी के पत्ते और पीले फूल अर्पित करें.
  • इसके बाद विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम और विष्णु स्त्रोत का पाठ करें.
  • इस दिन भगवान विष्णु के मंत्र या उनके नाम का जाप करना बहुत शुभ माना जाता है.
  • अब भगवान विष्णु की आरती करें.
  • पूजा की विधि खत्म होने के बाद अपने हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगें.

हैदराबाद। हिंदू पंचांग के अंतर्गत प्रत्येक माह की 11वीं तीथि को एकादशी कहा जाता है. एकादशी को भगवान विष्णु को समर्पित तिथि माना जाता है. हिन्दी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु योग निद्रा में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं. इस कारण से इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. इसे वामन एकादशी, पार्श्व एकादशी या जयंती एकादशी भी कहा जाता है.

परिवर्तिनी एकादशी शुभ ​मुहूर्त
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 16 सितंबर दिन गुरुवार को सुबह 09 बजकर 36 मिनट से होगा. इसका समापन अगले दिन 17 सितंबर दिन शुक्रवार को प्रात: 08 बजकर 07 मिनट पर होगा. व्रत के लिए उदयातिथि मान्य होती है, ऐसे में परिवर्तनी एकादशी का व्रत 17 सितंबर दिन शुक्रवार है.

परिवर्तिनी एकादशी का पारण समय
17 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखेंगे, उनको व्रत का पारण अगले दिन 18 सितंबर दिन शनिवार को प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से प्रात: 06 बजकर 54 मिनट के मध्य कर लेना चाहिए. इस दिन द्वादशी तिथि प्रात: 06 बजकर 54 मिनट पर समाप्त हो रही है, इसलिए आप इससे पूर्व पारण कर लें. एकादशी व्रत का पारण सदैव द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व कर लेना चाहिए.

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पार्श्व या परिवर्तिनी एकादशी के पूजा की विधि

  • एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. साफ स्वच्छ कपड़े पहनें.
  • जिस स्थान पर आपको पूजा करनी है, उस जगह की सफाई करें और गंगाजल डालकर पूजन स्थल को साफ और पवित्र कर लें.
  • अब पूजा की चौकी लेकर उसमें पीले रंग का कपड़ा बिछा लें.
  • उस चौकी में भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा विराजित करें.
  • इसके बाद दीया जलाएं और प्रतिमा पर हल्दी, कुमकुम और चंदन लगाकर तिलक करें.
  • अब दोनों हाथ जोड़कर भगवान विष्णु का ध्यान करें और प्रतिमा पर तुलसी के पत्ते और पीले फूल अर्पित करें.
  • इसके बाद विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम और विष्णु स्त्रोत का पाठ करें.
  • इस दिन भगवान विष्णु के मंत्र या उनके नाम का जाप करना बहुत शुभ माना जाता है.
  • अब भगवान विष्णु की आरती करें.
  • पूजा की विधि खत्म होने के बाद अपने हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगें.
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