भोपाल। राजधानी के जंबूरी मैदा में दिन-रात आंदोलन कर सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाली करणी सेना के आगे सरकार झुक गई. 2 मंत्रियों को ड्यूटी पर लगाया गया है कि, इस आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म कराना है. सरकार की तरफ से मंत्री अरविंद भदौरिया और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को आंदोलनकारियों से संवाद करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. आखिरकार भदौरिया ने उनका अनशन तुड़वाया और गृह मंत्री ने करणी सेना के लोगों का मुंह मीठा कर बधाई दी.
सरकार नहीं चाहती आंदोलन ज्यादा चले: सरकार ने 8 जनवरी से होने वाले करणी सेना के आंदोलन को उतनी संजीदगी से नहीं लिया और आंदोलन का दम तोड़ने के लिए उसने ठाकुर समाज से आने वाले मंत्रियों को जिम्मेदारी दी कि, इस आंदोलन को कुचलने के लिए करणी सेना में दो फाड़ कर दिए जाएं. इसी बिसात पर CM निवास पर करणी सेना के नेताओं को बुलाकर उनकी मांगों को मान लिया गया. CM शिवराज सिंह ने मनुआभान की टेकरी पर रानी पद्मावती की मूर्ति के लिए भूमि पूजन किया और करणी सेना की सारी मांगे भी मान लीं, लेकिन सरकार को पता नहीं था कि, आंदोलन फिर से एक नया रूप ले लेगा.
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रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार। pic.twitter.com/5DBRm4SmLm
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तेज तर्रार मंत्रियों ने संभाला मोर्चा: 8 तारीख को जंबूरी मैदान में लाखों युवाओं ने डेरा डाल लिया. जिससे सरकार की नींद उड़ गई. एक तरफ सीएम शिवराज सिंह प्रवासी सम्मेलन और ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में व्यस्त थे, लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने इस आंदोलन को खत्म कराने की जिम्मेदारी दो तेज तर्रार मंत्रियों को दी. 21 सूत्रीय मांगों को लेकर जंबूरी मैदान में करणी सेना का जनआंदोलन शुरू हुआ था. जिसमे आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग, जातिगत आरक्षण की पुन: समीक्षा व एट्रोसिटी एक्ट के विरोध सहित 21 सूत्रीय मांगों को लेकर रविवार को जंबूरी मैदान में राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना की महारैली और जन आंदोलन शुरू हुआ था.
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आंदोलनकारियों के सामने झुकी सरकार: मैदान में युवा और करणी सेना के लोग ‘माई के लाल’ के नारे लगा रहे थे. आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग को लेकर नारेबाजी कर रहे जनआंदोलन में ब्राह्मण, पाटीदार समेत अन्य समाज का भी समर्थन मिला. इसके साथ ही ओबीसी और अन्य वर्गों का समर्थन लगातार मिलने से घबराई सरकार ने इनकी मांगे मानने का आश्वासन दिया और उच्च स्तरीय कमेटी बनाने का ऐलान किया. ग्वालियर चंबल में एट्रोसिटी एक्ट लागू होने के बाद दंगे हुए जिसका असर ये रहा कि शिवराज सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था. अब यही गलती फिर ना हो जाए इसलिए सरकार को आंदोलनकारियों के सामने झुकना पड़ा.