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गेहूं से पहले चने की होगी खरीदी, एमपी सरकार ने केंद्र को भेजा प्रस्ताव

किसानों की समस्या को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है कि चने की फसल की खरीदी गेहूं की फसल की खरीदी के पहले हो जाए. मंत्री कमल पटेल ने भरोसा जताया है कि उनके प्रस्ताव पर केंद्र सरकार जरूर मुहर लगाएगी.

Agriculture Minister Kamal Patel
कृषि मंत्री कमल पटेल
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Published : Jan 18, 2021, 12:39 PM IST

भोपाल। आमतौर पर रबी की फसलों में चने की फसल, गेहूं की फसल के पहले आ जाती है. लेकिन सरकार द्वारा की जाने वाली खरीदी में पहले गेहूं की खरीदी होती है और फिर चने की फसल की खरीदी शुरू होती है. ऐसी स्थिति में करीब तीन महीने तक किसान को अपनी फसल को सहेजना और संभालना पड़ता है. किसानों की समस्या को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज रही हैं. मध्य प्रदेश सरकार चाहती है कि चने की फसल की खरीदी गेहूं की फसल की खरीदी के पहले हो जाए. मंत्री कमल पटेल ने भरोसा जताया है कि उनके प्रस्ताव पर केंद्र सरकार जरूर मुहर लगाएगी.

प्रदेश सरकार पहले करेगी चने की खरीदी

केंद्र सरकार को भेजा जा रहा है प्रस्ताव

कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि आप सब जानते हैं कि गेहूं और चना रबी की फसलें हैं, लेकिन गेहूं पहले खरीदा जाता है और चना बाद में खरीदा जाता है. जबकि चना पहले आ जाता है, अभी फरवरी माह में ही आ जाएगा, लेकिन खरीदी मई माह में शुरू होती है, जब तक बारिश भी शुरू हो जाती है. मैंने अधिकारियों को निर्देशित किया है. हम भारत सरकार को प्रस्ताव भेज रहे हैं. मुझे पूरा भरोसा है कि केंद्र सरकार से इस प्रस्ताव पर मुहर करा कर लाऊंगा. अब हम चना पहले खरीदेंगे, क्योंकि चना 5100 रुपए क्विंटल है और गेहूं 1975 रुपए क्विंटल है. इससे किसानों को अब चना औने पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा.

तीन महीने तक करना होता है खरीदी का इंतजार

दरअसल, रबी सीजन की गेहूं और चना प्रमुख फसलें हैं.आमतौर पर चने की फसल फरवरी माह में आ जाती है और गेहूं की फसल अप्रैल माह तक आती है. समर्थन मूल्य पर खरीदी की जो व्यवस्था है. उस व्यवस्था के तहत जो सरकार पहले गेहूं की फसल खरीदती है और उसके बाद मई माह तक चने की फसल की खरीदी शुरू होती है. ऐसी स्थिति में किसान को करीब तीन महीने तक चने की फसल को सहेजना और संभालना होता है.

ओने-पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर किसान

चने की फसल पहले आ जाने लेकिन खरीदी ना होने के कारण किसान के लिए बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है. अगर किसान समर्थन मूल्य में बेचना चाहता है, तो उसे करीब तीन महीने तक समर्थन मूल्य की खरीदी शुरू होने का इंतजार करना होता है और अगर किसान के लिए तुरंत पैसे की जरूरत होती है, तो वह व्यापारियों को ओने-पौने दाम में बेचने के लिए मजबूर होता है.

भोपाल। आमतौर पर रबी की फसलों में चने की फसल, गेहूं की फसल के पहले आ जाती है. लेकिन सरकार द्वारा की जाने वाली खरीदी में पहले गेहूं की खरीदी होती है और फिर चने की फसल की खरीदी शुरू होती है. ऐसी स्थिति में करीब तीन महीने तक किसान को अपनी फसल को सहेजना और संभालना पड़ता है. किसानों की समस्या को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज रही हैं. मध्य प्रदेश सरकार चाहती है कि चने की फसल की खरीदी गेहूं की फसल की खरीदी के पहले हो जाए. मंत्री कमल पटेल ने भरोसा जताया है कि उनके प्रस्ताव पर केंद्र सरकार जरूर मुहर लगाएगी.

प्रदेश सरकार पहले करेगी चने की खरीदी

केंद्र सरकार को भेजा जा रहा है प्रस्ताव

कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि आप सब जानते हैं कि गेहूं और चना रबी की फसलें हैं, लेकिन गेहूं पहले खरीदा जाता है और चना बाद में खरीदा जाता है. जबकि चना पहले आ जाता है, अभी फरवरी माह में ही आ जाएगा, लेकिन खरीदी मई माह में शुरू होती है, जब तक बारिश भी शुरू हो जाती है. मैंने अधिकारियों को निर्देशित किया है. हम भारत सरकार को प्रस्ताव भेज रहे हैं. मुझे पूरा भरोसा है कि केंद्र सरकार से इस प्रस्ताव पर मुहर करा कर लाऊंगा. अब हम चना पहले खरीदेंगे, क्योंकि चना 5100 रुपए क्विंटल है और गेहूं 1975 रुपए क्विंटल है. इससे किसानों को अब चना औने पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा.

तीन महीने तक करना होता है खरीदी का इंतजार

दरअसल, रबी सीजन की गेहूं और चना प्रमुख फसलें हैं.आमतौर पर चने की फसल फरवरी माह में आ जाती है और गेहूं की फसल अप्रैल माह तक आती है. समर्थन मूल्य पर खरीदी की जो व्यवस्था है. उस व्यवस्था के तहत जो सरकार पहले गेहूं की फसल खरीदती है और उसके बाद मई माह तक चने की फसल की खरीदी शुरू होती है. ऐसी स्थिति में किसान को करीब तीन महीने तक चने की फसल को सहेजना और संभालना होता है.

ओने-पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर किसान

चने की फसल पहले आ जाने लेकिन खरीदी ना होने के कारण किसान के लिए बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है. अगर किसान समर्थन मूल्य में बेचना चाहता है, तो उसे करीब तीन महीने तक समर्थन मूल्य की खरीदी शुरू होने का इंतजार करना होता है और अगर किसान के लिए तुरंत पैसे की जरूरत होती है, तो वह व्यापारियों को ओने-पौने दाम में बेचने के लिए मजबूर होता है.

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