भोपाल। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है, लेकिन विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. प्रदेश के अधिकतर शासकीय कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं. यहां तक की राजधानी के 12 शासकीय कॉलेज में से महज चार में ही स्थाई प्राचार्य हैं, जबकि आठ कॉलोजों में प्रभारी प्राचार्य के भरोसे कामकाज हो रहा है.
विभाग की इसी लापरवाही का खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है. कई कॉलेजों के प्रभारियों को प्रशासनिक कामकाज के साथ ही छात्रों को पढ़ाना भी पड़ रहा है. जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. कई प्रोफेसरों का मानना है कि 2006 के बाद शिक्षकों की पदोन्नति के लिए डीपीसी नहीं हुई, जिस कारण यह स्थिति बन रही है. बता दें कि शहर के सरोजनी नायडू गर्ल्स कॉलेज, भेल पीजी कॉलेज, रामानंद संस्कृत कॉलेज और स्टेट लॉ कॉलेज में ही स्थाई प्राचार्य हैं, बाकि सारे कॉलेजों में अस्थाई प्राचार्य हैं.
सामान्य प्रशासन विभाग के नियमानुसार प्रत्येक विभाग में हर छह माह में डीपीसी होना चाहिए, लेकिन उच्च शिक्षा विभाग में 13 सालों से ध्यान नहीं दिया जा रहा है. प्रदेशभर के 500 से अधिक महाविद्यालयों में से 30 और 40 ही स्थाई प्राचार्य हैं. प्रदेश की शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार तमाम वादे कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत अगर हम देखें तो प्रदेश की शिक्षा का हाल बेहाल है.