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शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल, प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे प्रदेश के अधिकतर कॉलेज - ETV BHARAT NEW

प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है. शिक्षा का स्तर लगातर गिरता जा रहा है, बावजूद इसके शिक्षा विभाग कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है. शिक्षा व्यवस्था का अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है, कि राजधानी भोपाल के 12 शासकीय महाविद्यालयों मेंसे सिर्फ चार में ही स्थाई प्राचार्य हैं.

प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे प्रदेश के अधिकतर कॉलेज
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Published : Oct 4, 2019, 11:23 PM IST

भोपाल। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है, लेकिन विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. प्रदेश के अधिकतर शासकीय कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं. यहां तक की राजधानी के 12 शासकीय कॉलेज में से महज चार में ही स्थाई प्राचार्य हैं, जबकि आठ कॉलोजों में प्रभारी प्राचार्य के भरोसे कामकाज हो रहा है.

प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे प्रदेश के अधिकतर कॉलेज

विभाग की इसी लापरवाही का खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है. कई कॉलेजों के प्रभारियों को प्रशासनिक कामकाज के साथ ही छात्रों को पढ़ाना भी पड़ रहा है. जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. कई प्रोफेसरों का मानना है कि 2006 के बाद शिक्षकों की पदोन्नति के लिए डीपीसी नहीं हुई, जिस कारण यह स्थिति बन रही है. बता दें कि शहर के सरोजनी नायडू गर्ल्स कॉलेज, भेल पीजी कॉलेज, रामानंद संस्कृत कॉलेज और स्टेट लॉ कॉलेज में ही स्थाई प्राचार्य हैं, बाकि सारे कॉलेजों में अस्थाई प्राचार्य हैं.

सामान्य प्रशासन विभाग के नियमानुसार प्रत्येक विभाग में हर छह माह में डीपीसी होना चाहिए, लेकिन उच्च शिक्षा विभाग में 13 सालों से ध्यान नहीं दिया जा रहा है. प्रदेशभर के 500 से अधिक महाविद्यालयों में से 30 और 40 ही स्थाई प्राचार्य हैं. प्रदेश की शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार तमाम वादे कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत अगर हम देखें तो प्रदेश की शिक्षा का हाल बेहाल है.

भोपाल। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है, लेकिन विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. प्रदेश के अधिकतर शासकीय कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं. यहां तक की राजधानी के 12 शासकीय कॉलेज में से महज चार में ही स्थाई प्राचार्य हैं, जबकि आठ कॉलोजों में प्रभारी प्राचार्य के भरोसे कामकाज हो रहा है.

प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे प्रदेश के अधिकतर कॉलेज

विभाग की इसी लापरवाही का खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है. कई कॉलेजों के प्रभारियों को प्रशासनिक कामकाज के साथ ही छात्रों को पढ़ाना भी पड़ रहा है. जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. कई प्रोफेसरों का मानना है कि 2006 के बाद शिक्षकों की पदोन्नति के लिए डीपीसी नहीं हुई, जिस कारण यह स्थिति बन रही है. बता दें कि शहर के सरोजनी नायडू गर्ल्स कॉलेज, भेल पीजी कॉलेज, रामानंद संस्कृत कॉलेज और स्टेट लॉ कॉलेज में ही स्थाई प्राचार्य हैं, बाकि सारे कॉलेजों में अस्थाई प्राचार्य हैं.

सामान्य प्रशासन विभाग के नियमानुसार प्रत्येक विभाग में हर छह माह में डीपीसी होना चाहिए, लेकिन उच्च शिक्षा विभाग में 13 सालों से ध्यान नहीं दिया जा रहा है. प्रदेशभर के 500 से अधिक महाविद्यालयों में से 30 और 40 ही स्थाई प्राचार्य हैं. प्रदेश की शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार तमाम वादे कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत अगर हम देखें तो प्रदेश की शिक्षा का हाल बेहाल है.

Intro:प्रदेश भर में संचालित शासकीय कॉलेज में अधिकतम कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं वहीं भोपाल में 12 शासकीय कॉलेज में से महज चार में ही स्थाई प्राचार्य हैं जबकि अन्य 8 महाविद्यालयों में प्रभारी प्राचार्य के भरोसे कामकाज चल रहा है


Body:प्रदेश भर में संचालित शासकीय कॉलेज में अधिकतम कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं कोई भोपाल में 12 शासकीय कॉलेजों में से महज चार में ही स्थाई प्राचार्य हैं जबकि अन्य 8 महाविद्यालयों में प्रभारी प्राचार्य के भरोसे काम काज चल रहा है जिस कारण कई कॉलेजों के प्रभारियों को प्रशासनिक कामकाज के साथ ही छात्रों को पढ़ाना भी पड़ रहा है वहीं प्रोफेसेस का मानना है कि 2006 के बाद कॉलेजों में शिक्षकों की पदोन्नति के लिए डीपीसी नहीं हुई जिस कारण यह स्थिति बन रही है उन्होंने बताया कि स्थाई प्राचार्य को ना सियार लिखने का अधिकार होता है और ना ही कुछ निर्णय लेने का जिस कारण कॉलेजों में अनुशासनात्मक माहौल नहीं होता है हम आपको बता दें कि शहर के सरोजनी नायडू गर्ल्स पीजी कॉलेज भेल पीजी कॉलेज रामानंद संस्कृत कॉलेज और स्टेट लॉ कॉलेज में ही स्थाई प्राचार्य हैं वह भी 2025 तक रिटायर्ड हो जाएंगे,,

सामान्य प्रशासन विभाग के नियमानुसार प्रत्येक विभाग में हर छह माह में डीपीसी होना चाहिए लेकिन उच्च शिक्षा विभाग में 13 सालों से ध्यान नहीं दिया जा रहा है एक तरफ सरकार बेहतर रिजल्ट की बात कर रही है वहीं दूसरी और स्थाई प्राचार्य के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं प्रदेश की शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार वादे तो तमाम कर रही है लेकिन इस पर कितना अमल किया जा रहा है इसका अंदाजा प्रदेश के बदहाल महाविद्यालयों से लगाया जा सकता है प्रदेशभर में 500 से अधिक महाविद्यालय हैं जिनमें केवल 30 और 40 नहीं स्थाई प्राचार्य हैं और वही उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी प्रदेश की शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए विदेश दौरा कर रहे हैं लेकिन खुद मध्यप्रदेश में शिक्षा का हाल बेहाल है

कैलाश त्यागी, प्रांतीय शासकीय महाविद्यालय प्राध्यापक संघ अध्यक्ष


Conclusion:मध्य प्रदेश की शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार तमाम प्रयास कर रही है और वादे भी कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत अगर हम देखे तो मध्य प्रदेश की शिक्षा का हाल बेहाल है मध्य प्रदेश में आधे से ज्यादा कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं राजधानी भोपाल में 12 शासकीय कॉलेज है जिसमें केवल चार में ही स्थाई प्राचार्य हैं बाकी प्रभारी प्राचार्य के भरोसे ऐसे में कैसे शिक्षा की गुणवत्ता को मजबूत किया जाएगा
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