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राष्ट्रीय मानव संग्रहालय घोटाले में लोकायुक्त विशेष अदालत का फैसला, 22 साल बाद दोषी सिद्ध हुए आरोपी - bhopal museum scam

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के इंडोर म्यूजियम निर्माण में घोटाला करने वाले आरोपियों को 22 साल बाद लोकायुक्त विशेष अदालत ने दोषी करार दिया है. कोर्ट ने आरोपियों को 4 साल की सजा के साथ 17 लाख का जुर्माना लगाया.

जिला एवं सत्र न्यायालय भोपाल
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Published : Sep 21, 2019, 12:31 PM IST

भोपाल| इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के इंडोर म्यूजियम निर्माण में घोटाला करने वाले तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर दिनेश नारायण अग्रवाल, चीफ इंजीनियर गोविंद मूलचंद कृपलानी और ठेकेदार दयाल एम डेटानी को लोकायुक्त की विशेष अदालतन ने दोषी करार देते हुए 4 साल की सजा सुनाई है. इसके अलावा आरोपियों पर 17 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है.

राष्ट्रीय मानव संग्रहालय घोटाले में लोकायुक्त विशेष अदालत का फैसला

मामला 1994 से 1996 के बीच का है. जिसमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के इंडोर म्यूजियम के निर्माण का कार्य राजधानी परियोजना प्रशासन को दिया गया था. जिसमें इंजीनियर दिनेश नारायण अग्रवाल और गोविंद मूलचंद कृपलानी ने ठेकेदार के साथ मिलकर सरकार को डेढ़ करोड़ का चूना लगाया था. म्यूजियम निर्माण के लिए 5 करोड़ 41 लाख 97 हजार 320 रुपए का बजट निर्धारित किया था. जबकि दोनों इंजीनियरों ने ठेकेदार से सांठ-गांठ कर प्रशासन से 1 करोड़ 42 लाख का अधिक भुगतान करा लिया था.

आरोपियों पर लोकायुक्त की कार्रवाई की गई. जिसके बाद से ही मामला न्यायालय में पहुंचा और 22 साल बाद सभी आरोपियों को लोकायुक्त ने दोषी करार करते हुए 4 साल की सजा के साथ 17 लाख का जुर्माना लगाने का फैसला दिया है.

भोपाल| इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के इंडोर म्यूजियम निर्माण में घोटाला करने वाले तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर दिनेश नारायण अग्रवाल, चीफ इंजीनियर गोविंद मूलचंद कृपलानी और ठेकेदार दयाल एम डेटानी को लोकायुक्त की विशेष अदालतन ने दोषी करार देते हुए 4 साल की सजा सुनाई है. इसके अलावा आरोपियों पर 17 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है.

राष्ट्रीय मानव संग्रहालय घोटाले में लोकायुक्त विशेष अदालत का फैसला

मामला 1994 से 1996 के बीच का है. जिसमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के इंडोर म्यूजियम के निर्माण का कार्य राजधानी परियोजना प्रशासन को दिया गया था. जिसमें इंजीनियर दिनेश नारायण अग्रवाल और गोविंद मूलचंद कृपलानी ने ठेकेदार के साथ मिलकर सरकार को डेढ़ करोड़ का चूना लगाया था. म्यूजियम निर्माण के लिए 5 करोड़ 41 लाख 97 हजार 320 रुपए का बजट निर्धारित किया था. जबकि दोनों इंजीनियरों ने ठेकेदार से सांठ-गांठ कर प्रशासन से 1 करोड़ 42 लाख का अधिक भुगतान करा लिया था.

आरोपियों पर लोकायुक्त की कार्रवाई की गई. जिसके बाद से ही मामला न्यायालय में पहुंचा और 22 साल बाद सभी आरोपियों को लोकायुक्त ने दोषी करार करते हुए 4 साल की सजा के साथ 17 लाख का जुर्माना लगाने का फैसला दिया है.

Intro:काम की लागत कागजों पर बढ़ाने के चलते एग्जीक्यूटिव इंजीनियर , चीफ इंजीनियर और ठेकेदार को 4 साल की सजा

भोपाल | राजधानी परियोजना प्रशासन के कुछ कर्मचारियों के द्वारा कागजों पर काम की लागत बढ़ाना उन पर ही भारी पड़ गया है . कई वर्षों तक चले इस मामले में आखिरकार अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है और सभी आरोपियों को 4 साल की कैद के साथ ही 17 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है .





Body: राजधानी की लोकायुक्त विशेष अदालत ने भ्रष्टाचार के मामले में राजधानी परियोजना प्रशासन के आरोपित तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर , चीफ इंजीनियर और ठेकेदार को 4 साल कैद की सजा साथ ही 17 लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है . शुक्रवार देर शाम लोकायुक्त विशेष न्यायाधीश भगवत प्रसाद पांडे ने अपनी अदालत में यह फैसला सुनाया है .


Conclusion:बताया जा रहा है कि यह मामला राजधानी परियोजना प्रशासन में अप्रैल 1994 से मार्च 1996 के बीच का है. इस मामले के तहत श्यामला हिल्स स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय मैं इंडोर म्यूजियम के निर्माण का जिम्मा राजधानी परियोजना प्रशासन को दिया गया था . इस संबंध में राजधानी परियोजना प्रशासन के तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर दिनेश नारायण अग्रवाल, तत्कालीन चीफ इंजीनियर जीएम कृपलानी को पूरे कार्य की देखरेख का जिम्मा सौंपा गया था . निर्माण का ठेका मैसर्स एमसंस के प्रोपराइटर ठेकेदार दयाल एम डेटानी को दिया गया था . निर्माण के लिए 5 करोड़ 41 लाख 97 हजार 320 रुपए की न्यूनतम दर पर निविदा जारी की गई थी. इस संबंध में दोनों आरोपित अधिकारियों और ठेकेदार ने षड्यंत्र कर इंडोर म्यूजियम के निर्माण में स्वीकृत दर से अतिरिक्त कार्य दर्शाया था और निर्माण की लागत को जानबूझकर बढ़ा दिया था . जबकि वास्तविकता में यह कार्य किया ही नहीं गया था . आरोपितों की मिलीभगत से निर्माण कार्य में ठेकेदार को एक करोड़ 42 लाख रूपय का अधिक भुगतान कर दिया गया था . अब निर्णय सुनाते समय अदालत ने दस्तावेज देखे तो आरोपितों द्वारा एक करोड़ 50 लाख रुपए का घोटाला किया जाना पाया गया है . जबकि लोकायुक्त ने अपने आरोपपत्र में एक करोड़ 42 लाख का घोटाला बताया था .
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