भोपाल। श्रद्धालुओं की श्रद्धा निराली है. हर मंदिर की अपनी कहानी है और मंदिरों में दर्शन करने से लेकर मन्नत पूरी होने तक अलग-अलग मान्यताएं हैं. ऐसी ही एक मान्यता है भोपाल से 35 किलोमीटर दूर बैरसिया के करीब तरावली गांव में जहां मां हरसिद्धि के दरबार में मन्नत पूरी करने के लिए भक्त उल्टे फेरे लगाते हैं. उनकी आस्था है कि यहां उल्टे फेरे लगाने से उनके बिगड़े काम बन जाते हैं. यहां हर साल नवरात्र में विशेष पूजा-अर्चना करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. हालांकि इस बार कोविड-19 के संक्रमण को देखते हुए मंदिर न्यास समिति ने मंदिर को नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं के लिए बंद करने का फैसला लिया था, लेकिन सीएम के एलान के बाद मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया.
महंत मोहन गिरी ने बताया कि तरावली स्थित मां हरसिद्धि की आराधना का अलग ही महत्व है. यहां पर मां के धड़ की पूजन की जाती है, क्योंकि मां के चरण काशी में विराजमान है और शीश उज्जैन में. इसलिए जितना महत्व काशी और उज्जैन का है उतना ही महत्व इस तरावली मंदिर का भी है. तीनों ही स्थानों पर मां हरसिद्धि की प्रतिमा स्थापित है और तीनों ही स्थानों का इतिहास एक समय का ही है. यहां पर आज भी मां के दरबार में मां के आरती खप्पर से की जाती है और यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्नते मानते हैं. उनका मानना है कि यहां पर मां उनकी हर मन्नत पूरी करती हैं.
क्या है उल्टे फेरे लगाने के पीछे की मान्यता
मंदिर के महंत मोहन गिरी ने बताया कि तरावली स्थित मां हरसिद्धि के मंदिर में सामान्य रूप से श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए आते हैं और सीधी परिक्रम लगाते है और जो श्रद्धालु मां से कुछ खास मन्नत मांगते हैं, वे उल्टी परिक्रमा करते हैं. जब इनकी मन्नत पूरी हो जाती है, तो श्रद्धालु माता का शुक्रिया अदा करने पहुंचते हैं और सीधी परिक्रमा करते हैं.
तीन जगहों पर है मां के तीन हिस्से
तरावली के मंहत मोहन गिरी के अनुसार सालों पूर्व जब राजा विक्रमादित्य उज्जैन के शासक हुआ करते थे. उस समय विक्रमादित्य काशी गए थे. यहां पर उन्होंनें मां की आराधना कर उन्हें उज्जैन चलने के लिए तैयार किया था. इस पर मां ने कहा था कि एक तो वह उनके चरणों को यहां पर छोड़कर चलेंगी. जैसे ही सुबह होगी मां जहां होंगी वहीं विराजमान हो जाएंगी. इसी दौरान जब वह काशी से चले तो तरावली स्थित जंगल में सुबह हो गई. इससे मां शर्त के अनुसार तरावली में ही विराजमान हो गईं. इसके बाद विक्रमादित्य ने लंबे समय तक तरावली में मां की आराधना की. फिर से जब मां प्रसन्न हुई तो वह केवल शीश को साथ चलने पर तैयार हुई. इससे मां के चरण काशी में है, धड़ तरावली में है और शीश उज्जैन में.
कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन कर हो रहे दर्शन
इस बार नवरात्री के दौरान कोरोना संकटकाल के चलते मंदिर में भी कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन कराया जा रहा है. मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को मास्क पहनने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. मंदिर ट्रस्ट ने सेनेटाइजर की व्यवस्था की है जिससे श्रद्धालुओं को सेनेटाइज भी किया जा रहा है. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी करवाया जा रहा है. मंदिर न्यास समिति के अध्यक्ष भक्त पाल सिंह ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल को देखते हुए मंदिर न्यास समिति ने 17 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए बंद करने का फैसला लिया था, लेकिन सीएम के एलान के बाद मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोला गया है. दर्शनार्थी मंदिर में दर्शन करने के लिए आ रहे हैं लेकिन भीड़ इकट्ठा नहीं होने दी जा रही है.