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गोवर्धन पूजा से घर में आती है सुख-समृद्धि, जानें इसके पीछे की मान्यता

दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.

गोवर्धन पूजा
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Published : Oct 28, 2019, 9:52 AM IST

भोपाल। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. कई जगह इसे अन्नकूट भी कहा जाता है. गोवर्धन पूजा के दिन लोग अपने घर के बाहर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं. जिसके बाद विभिन्न तरह के पकवान बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है, इसलिए इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जा है. मान्यता के मुताबिक गोवर्धन पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.

गोवर्धन पूजा की कहानी

एक बार श्रीकृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने अपनी मां से पूछा कि सभी इंद्र की पूजा क्यों करते है. तब उनकी मां ने बताया कि इंद्रदेव वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है. तब श्री कृष्ण ने कहा कि ऐसा है, तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गाएं तो वहीं चरती हैं.

श्रीकृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी. तब से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है.

भोपाल। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. कई जगह इसे अन्नकूट भी कहा जाता है. गोवर्धन पूजा के दिन लोग अपने घर के बाहर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं. जिसके बाद विभिन्न तरह के पकवान बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है, इसलिए इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जा है. मान्यता के मुताबिक गोवर्धन पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.

गोवर्धन पूजा की कहानी

एक बार श्रीकृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने अपनी मां से पूछा कि सभी इंद्र की पूजा क्यों करते है. तब उनकी मां ने बताया कि इंद्रदेव वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है. तब श्री कृष्ण ने कहा कि ऐसा है, तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गाएं तो वहीं चरती हैं.

श्रीकृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी. तब से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है.

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