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शिशु मत्यु दर के मामले में टॉप पर MP, एक साल में 9हजार बच्चों ने तोड़ा दम

मध्यप्रदेश में अगर इस साल एडमिट हुए बच्चों की बात की जाए तो इस साल 70हजार बच्चे अस्पतालों में भर्ती हुए थे. जिसमें से 9हजार बच्चों की मौत हो चुकी है. प्रदेश में सबसे ज्यादा सागर और शहडोल में 17 फीसदी बच्चों की मौत हुई है. वहीं शिशु मत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश टॉप पर है.

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Published : Dec 4, 2020, 8:35 PM IST

Updated : Dec 18, 2020, 9:05 PM IST

भोपाल। शहडोल के बच्चों की लगातार मौतों की घटनाओं को लेकर नेशनल हेल्थ मिशन के अधिकारी जांच के लिए शहडोल जाएंगे. नेशनल हेल्थ मिशन संचालक ने बच्चों की मौतों को लेकर समीक्षा बैठक कर इसके निर्देश दिए हैं. अधिकारियों को शहडोल के अलावा अनूपपुर, उमरिया और सिंगरौली भेजा जा रहा है. बताया जा रहा है कि प्रदेश के हॉस्पिटल्स में इस साल करीब 70 हज़ार बच्चे एडमिट हुए, जिसमें से 9000 बच्चों ने दम तोड़ दिया. सबसे ज्यादा सागर और शहडोल में 17 फ़ीसदी बच्चों की मौत हुई है.

शिशु मृत्यु दर में टॉप पर है मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश में तमाम कोशिशों के बाद शिशु मृत्यु दर घटने का नाम नहीं ले रही है. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया कि पिछले दिनों जारी रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर 47 से बढ़कर 48 हो गई है. यानी 1000 जीवित बच्चों में से 48 बच्चों की मौत साल भर में ही हो जाती है. राज्य में ग्रामीण इलाकों में शिशु मृत्यु दर 52 और शहरी क्षेत्र में 36 फीसदी है. शिशु मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश टॉप पर है. मध्यप्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में मृत्यु दर सबसे ज्यादा 9 है.

Report of the Registrar General of India
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट

स्वास्थ विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस साल मध्यप्रदेश में 70 हज़ार बच्चे अस्पतालों में एडमिट हुए. इनमें से 9000 बच्चों की मौत हो गई. यानी करीब 11.83 बच्चों की इलाज के दौरान मौत हुई. इस मामले में सबसे ज्यादा खराब हालत सागर और शहडोल जिले की है. सागर में बच्चों की मौत का आंकड़ा 17 फ़ीसदी और शहडोल में 16 फीसदी है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो इसमें से मेडिकल कॉलेजों का आंकड़ा निकाल दिया जाए तो यह आंकड़ा 9 फ़ीसदी ही रह जाता है.

Health Department Report
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट

पढ़ें:Child Killer Hospital: 48 घंटे में फिर चार बच्चों की मौत, एक प्री मेच्योर भी शामिल

शहडोल में निचले स्तर पर हुई लापरवाही

शहडोल में लगातार बच्चों की मौत को लेकर निचले स्तर पर लापरवाही सामने आई है. बताया जा रहा है कि कम्युनिटी स्तर पर बिमार और कमजोर बच्चों की पहचान ही नहीं हो पा रही. यह काम आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा कार्यकर्ताओं का होता है. ऐसे बच्चों को हॉस्पिटल पहुंचना चाहिए, लेकिन शहडोल सीधी और सिंगरौली जिले में मुश्किल से 30 फ़ीसदी नवजात ही हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं. इन तीन जिलों में प्रदेश में सबसे ज्यादा हालत खराब है. इस मामले में सबसे बेहतर स्थिति उमरिया जिले की है. उमरिया में 85 फीसदी बच्चे हॉस्पिटल आ रहे हैं, जबकि अनूपपुर और रीवा में 60 फीसदी बच्चे हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं.

9-thousand-children-died-in-1-year-in-madhya-pradesh
कितने बच्चें पहुंच रहे अस्पताल

मुख्यालय से निगरानी के लिए जाएंगे अधिकारी

उधर शहडोल में लगातार बच्चों की मौत की घटना के बाद नेशनल हेल्थ मिशन ने अधिकारियों की बैठक की. बैठक में निगरानी के लिए प्रदेश मुख्यालय से अधिकारियों को भेजने के निर्देश दिए गए हैं. यह अधिकारी शहडोल, अनूपपुर उमरिया और सिंगरौली जाएंगे. यह 7 दिसंबर से अगले एक हफ्ते तक इन जिलों में रहेंगे. इस दौरान आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही कम्युनिटी आईडेंटिफिकेशन को जांचेंगे. हालांकि इस संबंध में नेशनल हेल्थ मिशन की डायरेक्टर छवि भारद्वाज से मोबाइल पर बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.

इंदौर में हर साल 900 से ज्यादा बच्चों की हो जाती है मौत

साधन संपन्न इंदौर शहर पर गौर किया जाए तो स्वास्थ विभाग के आंकड़े दर्शाते हैं कि यहां भी बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है. इंदौर जिले में 1 अप्रैल से 4 दिसंबर तक के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यहां कई बीमारियों और अलग-अलग कारणों से 914 बच्चों की मौत हो चुकी है. इस संख्या का आकलन अगर प्रति माह के हिसाब से किया जाए तो इंदौर में हर महीने 75 बच्चों की मौत हो रही है. यह संख्या 1 दिन में दो से तीन बच्चों की मौत को दर्शा रही है.

ग्वालियर में रोजाना 5 से ज्यादा नवजातों की होती है मौत

साल में 2000 बच्चे नहीं मना पाते पहला जन्मदिन. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार ग्वालियर जिले में हर साल 1900 से 2000 तक नवजात की मौत होती है. मतलब रोज 4 से 5 नवजात शिशु मौत के मुंह में समा रहे हैं. यह उन नवजातों का आंकड़ा है जिनकी उम्र 1 साल से कम होती है.

जबलपुर में हर दूसरे दिन हो रही नवजात की मौत

जबलपुर लेडी एल्गिन अस्पताल में मिले आंकड़े बताते हैं कि इस अस्पताल में हर दूसरे दिन नवजात बच्चे की मौत हो रही है. हालांकि इन बच्चों की मौत की सबसे बड़ी वजह जो सामने आई है. वह है परिजनों का जच्चा और बच्चा के प्रति लापरवाही बरतना.

भोपाल। शहडोल के बच्चों की लगातार मौतों की घटनाओं को लेकर नेशनल हेल्थ मिशन के अधिकारी जांच के लिए शहडोल जाएंगे. नेशनल हेल्थ मिशन संचालक ने बच्चों की मौतों को लेकर समीक्षा बैठक कर इसके निर्देश दिए हैं. अधिकारियों को शहडोल के अलावा अनूपपुर, उमरिया और सिंगरौली भेजा जा रहा है. बताया जा रहा है कि प्रदेश के हॉस्पिटल्स में इस साल करीब 70 हज़ार बच्चे एडमिट हुए, जिसमें से 9000 बच्चों ने दम तोड़ दिया. सबसे ज्यादा सागर और शहडोल में 17 फ़ीसदी बच्चों की मौत हुई है.

शिशु मृत्यु दर में टॉप पर है मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश में तमाम कोशिशों के बाद शिशु मृत्यु दर घटने का नाम नहीं ले रही है. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया कि पिछले दिनों जारी रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर 47 से बढ़कर 48 हो गई है. यानी 1000 जीवित बच्चों में से 48 बच्चों की मौत साल भर में ही हो जाती है. राज्य में ग्रामीण इलाकों में शिशु मृत्यु दर 52 और शहरी क्षेत्र में 36 फीसदी है. शिशु मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश टॉप पर है. मध्यप्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में मृत्यु दर सबसे ज्यादा 9 है.

Report of the Registrar General of India
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट

स्वास्थ विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस साल मध्यप्रदेश में 70 हज़ार बच्चे अस्पतालों में एडमिट हुए. इनमें से 9000 बच्चों की मौत हो गई. यानी करीब 11.83 बच्चों की इलाज के दौरान मौत हुई. इस मामले में सबसे ज्यादा खराब हालत सागर और शहडोल जिले की है. सागर में बच्चों की मौत का आंकड़ा 17 फ़ीसदी और शहडोल में 16 फीसदी है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो इसमें से मेडिकल कॉलेजों का आंकड़ा निकाल दिया जाए तो यह आंकड़ा 9 फ़ीसदी ही रह जाता है.

Health Department Report
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट

पढ़ें:Child Killer Hospital: 48 घंटे में फिर चार बच्चों की मौत, एक प्री मेच्योर भी शामिल

शहडोल में निचले स्तर पर हुई लापरवाही

शहडोल में लगातार बच्चों की मौत को लेकर निचले स्तर पर लापरवाही सामने आई है. बताया जा रहा है कि कम्युनिटी स्तर पर बिमार और कमजोर बच्चों की पहचान ही नहीं हो पा रही. यह काम आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा कार्यकर्ताओं का होता है. ऐसे बच्चों को हॉस्पिटल पहुंचना चाहिए, लेकिन शहडोल सीधी और सिंगरौली जिले में मुश्किल से 30 फ़ीसदी नवजात ही हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं. इन तीन जिलों में प्रदेश में सबसे ज्यादा हालत खराब है. इस मामले में सबसे बेहतर स्थिति उमरिया जिले की है. उमरिया में 85 फीसदी बच्चे हॉस्पिटल आ रहे हैं, जबकि अनूपपुर और रीवा में 60 फीसदी बच्चे हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं.

9-thousand-children-died-in-1-year-in-madhya-pradesh
कितने बच्चें पहुंच रहे अस्पताल

मुख्यालय से निगरानी के लिए जाएंगे अधिकारी

उधर शहडोल में लगातार बच्चों की मौत की घटना के बाद नेशनल हेल्थ मिशन ने अधिकारियों की बैठक की. बैठक में निगरानी के लिए प्रदेश मुख्यालय से अधिकारियों को भेजने के निर्देश दिए गए हैं. यह अधिकारी शहडोल, अनूपपुर उमरिया और सिंगरौली जाएंगे. यह 7 दिसंबर से अगले एक हफ्ते तक इन जिलों में रहेंगे. इस दौरान आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही कम्युनिटी आईडेंटिफिकेशन को जांचेंगे. हालांकि इस संबंध में नेशनल हेल्थ मिशन की डायरेक्टर छवि भारद्वाज से मोबाइल पर बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.

इंदौर में हर साल 900 से ज्यादा बच्चों की हो जाती है मौत

साधन संपन्न इंदौर शहर पर गौर किया जाए तो स्वास्थ विभाग के आंकड़े दर्शाते हैं कि यहां भी बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है. इंदौर जिले में 1 अप्रैल से 4 दिसंबर तक के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यहां कई बीमारियों और अलग-अलग कारणों से 914 बच्चों की मौत हो चुकी है. इस संख्या का आकलन अगर प्रति माह के हिसाब से किया जाए तो इंदौर में हर महीने 75 बच्चों की मौत हो रही है. यह संख्या 1 दिन में दो से तीन बच्चों की मौत को दर्शा रही है.

ग्वालियर में रोजाना 5 से ज्यादा नवजातों की होती है मौत

साल में 2000 बच्चे नहीं मना पाते पहला जन्मदिन. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार ग्वालियर जिले में हर साल 1900 से 2000 तक नवजात की मौत होती है. मतलब रोज 4 से 5 नवजात शिशु मौत के मुंह में समा रहे हैं. यह उन नवजातों का आंकड़ा है जिनकी उम्र 1 साल से कम होती है.

जबलपुर में हर दूसरे दिन हो रही नवजात की मौत

जबलपुर लेडी एल्गिन अस्पताल में मिले आंकड़े बताते हैं कि इस अस्पताल में हर दूसरे दिन नवजात बच्चे की मौत हो रही है. हालांकि इन बच्चों की मौत की सबसे बड़ी वजह जो सामने आई है. वह है परिजनों का जच्चा और बच्चा के प्रति लापरवाही बरतना.

Last Updated : Dec 18, 2020, 9:05 PM IST
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