बैतूल। बॉलीवुड के कलाकार सुशांत सिंह राजपूत का सुसाइड मामला चर्चा का विषय बना हुआ है. सीबीआई की टीम इस मामले की जांच कर रही है. हालांकि इस मामले से इतर ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के मास्टर ऑफ फाइन आर्ट के स्टूडेंट विशाल धोटे कलाकारों के इस तरह के सुसाइड केसों से बेहद आहत हैं. इस स्टूडेंट ने नेपोटिज्म विषय पर कलाकृति बनाई है. स्टूडेंट का मानना है कि टैलेंट के ह्रासमेंट के कारण ही ऐसे कलाकार सुसाइड करते हैं. उन्होंने अपनी कलाकृति में ऐसे ही भाव को प्रस्तुत करने की कोशिश की है.
बैतूल जिले के जम्बाड़ी खुर्द गांव के निवासी विशाल धोटे फिलहाल ग्वालियर में हैं. विशाल ने स्कल्पचर में बताया कि हाथ के ऊपर बैठा व्यक्ति नेपोटिज्म से पहुंचा है, जो बिना योग्यता सर्वोच्च पर पहुंच जाता है. उसके नीचे एक व्यक्ति जो योग्यता होने के बाद भी सर्वोच्च पर नहीं पहुंच पा रहा है. इस प्रकार बहुत से योग्यवान कठिन परिश्रम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें हर कदम पर नेपोटिज्म का सामना करना पड़ रहा है.
नेपोटिज्म हमें हर क्षेत्र में चाहे बॉलीवुड हो, पॉलिटिक्स हो, नौकरी पेशा हो, चाहे कितने भी निम्न स्तर पर हो. नेपोटिज्म हमारे देश को नीचे की ओर धकेल रहा है. स्कल्पचर में एक स्टूडेंट एक छोटे शहर से स्ट्रगल करके अपने सपनों को पूरा करने एक-एक सीढ़ियां ऊपर चढ़ता है. जिसमें उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इस दौरान कई प्रॉब्लम आती हैं और कुछ लोग इन प्रॉब्लम्स को फेस नहीं कर पाते हैं.
कुछ लोग प्रॉब्लम्स को फेस करके आगे बढ़ जाते हैं और कठिन परिश्रम करके थोड़ा मान सम्मान प्राप्त कर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, तो नेपोटिज्म से उसके टैलेंट को दबोच दिया जाता है. फिर वो हताश होकर बैठ जाता है. कई दफा इसका परिणाम आत्मसमर्पण या आत्महत्या जैसे कदमों में तब्दील हो जाता है.
स्टूडेंट विशाल धोटे का कहना है कि इस स्कल्पचर के माध्यम से वो समाज को संदेश देना चाहते हैं कि नेपोटिज्म को बढ़ावा ना देकर अपने देश में टैलेंट को पहचान कर उसे महत्व दिया जाए, उसकी कद्र की जाए.
योग्यवान व्यक्ति को उसका उच्चतम स्थान प्रदान किया जाए. विशाल धोटे कहते हैं कि ये सिर्फ कलाकृति नहीं बल्कि सुशांत राजपूत जैसे कलाकारों की एक कहानी है, जो एक छोटे से शहर से बॉलीवुड में कदम रखते हैं, लेकिन उनका कोई गॉडफादर नहीं होता है. इसी कारण वो नेपोटिज्म का शिकार हो जाते हैं. इसकी अपेक्षा बॉलीवुड में जमे हुए कलाकारों के बच्चे को जो बिना टैलेंट के और कम पढ़े लिखे होते हैं, उन्हें अच्छी जगह मिल जाती है.