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शहडोल संभाग में पहली बार 25 फीट महारानी दुर्गावती प्रतिमा का अनावरण, जानिए वीरांगना का इतिहास - शहडोल में महारानी दुर्गावती की प्रतिमा स्थापित

अनूपपुर में महारानी दुर्गावती की 25 फीट प्रतिमा का अनावरण किया गया. गोंडवाना समाज महासभा कमेटी के तत्वधान ने ये किया है. जानिए महारानी दुर्गावती की कहानी,

maharani durgavati statue establish in shahdol
शहडोल में महारानी दुर्गावती की प्रतिमा स्थापित
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Published : Jan 1, 2023, 5:30 PM IST

शहडोल में महारानी दुर्गावती की प्रतिमा स्थापित

अनूपपुर। मध्यप्रदेश के शहडोल संभाग अनूपपुर जिले के कोतमा जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत गोहंड्र में गोंडवाना समाज महासभा कमेटी के तत्वधान में 25 फीट वीरांगना महारानी दुर्गावती की प्रतिमा का अनावरण किया. इसमें मुख्य अतिथि के रूप में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर मरकाम, राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम सहित अनूपपुर जनपद कोतमा जनपद और जैतहरी जनपद के सरपंच संघ के सरपंचगण मौजूद रहे.

वीरांगना महारानी दुर्गावती का इतिहास: गोंडवाना भू-भाग में अनेको क्रांतिकारी योद्धा राजा-महाराजा हुए हैं. जननायक भगवान, बिरसा मुण्डा, राजा शंकर शाह मडावी, कुंवर रघुनाथ शाह मडावी उन्हीं में से एक है गढ़ मण्डला की महारानी दुर्गावती. इनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को महोबा में हुआ था. दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती का विवाह प्रसिद्ध गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी के पुत्र दलपत शाह मडावी के साथ हुआ था. दुर्भाग्यवश विवाह के 4 साल बाद ही राजा दलपत शाह का निधन हो गया. इस दौरान रानी दुर्गावती को 3 साल का बच्चा था. इसके बाद रानी ने स्वयं ही गढ़ मण्डला का शासन संभाल लिया. महारानी दुर्गावती ने अपने शासनकाल में अनेक मठ, कुएं बावड़ी और धर्मशालाएं बनवाई. रानी दुर्गावती के सुखी और सम्पन्न राज्य पर कई आक्रमणकारियों ने हमला किया पर हर बार आक्रमणकारी पराजित हुए. अपनी वीरता, उदारता चतुराई और राजनैतिक एकता के कारण गोंडवाना राज्य शक्तिशाली और सम्पन्न राज्यों में गिना जाने लगा. इससे रानी दुर्गावती की ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई.

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महारानी दुर्गावती ने दिया आत्मबलिदान: 24 जून 1564 को मुगल सेना के साथ भीषण युद्ध हुआ तभी एक तीर भुजा में लगा. रानी ने उसे निकाल फेंका. दूसरा तीर उनकी आंख में लगा. रानी ने इसे भी निकाला और तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर लग गया. रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधार सिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर उसके लिए वह तैयार नहीं हुआ. रानी ने अपनी कटार खुद अपने सीने में मारकर आत्मबलिदान के पथ पर बढ़ गई. महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ खान से लड़कर अपनी जान गवाने से पहले 75 वर्षों तक शासन किया था.

शहडोल में महारानी दुर्गावती की प्रतिमा स्थापित

अनूपपुर। मध्यप्रदेश के शहडोल संभाग अनूपपुर जिले के कोतमा जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत गोहंड्र में गोंडवाना समाज महासभा कमेटी के तत्वधान में 25 फीट वीरांगना महारानी दुर्गावती की प्रतिमा का अनावरण किया. इसमें मुख्य अतिथि के रूप में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर मरकाम, राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम सहित अनूपपुर जनपद कोतमा जनपद और जैतहरी जनपद के सरपंच संघ के सरपंचगण मौजूद रहे.

वीरांगना महारानी दुर्गावती का इतिहास: गोंडवाना भू-भाग में अनेको क्रांतिकारी योद्धा राजा-महाराजा हुए हैं. जननायक भगवान, बिरसा मुण्डा, राजा शंकर शाह मडावी, कुंवर रघुनाथ शाह मडावी उन्हीं में से एक है गढ़ मण्डला की महारानी दुर्गावती. इनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को महोबा में हुआ था. दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती का विवाह प्रसिद्ध गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी के पुत्र दलपत शाह मडावी के साथ हुआ था. दुर्भाग्यवश विवाह के 4 साल बाद ही राजा दलपत शाह का निधन हो गया. इस दौरान रानी दुर्गावती को 3 साल का बच्चा था. इसके बाद रानी ने स्वयं ही गढ़ मण्डला का शासन संभाल लिया. महारानी दुर्गावती ने अपने शासनकाल में अनेक मठ, कुएं बावड़ी और धर्मशालाएं बनवाई. रानी दुर्गावती के सुखी और सम्पन्न राज्य पर कई आक्रमणकारियों ने हमला किया पर हर बार आक्रमणकारी पराजित हुए. अपनी वीरता, उदारता चतुराई और राजनैतिक एकता के कारण गोंडवाना राज्य शक्तिशाली और सम्पन्न राज्यों में गिना जाने लगा. इससे रानी दुर्गावती की ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई.

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महारानी दुर्गावती ने दिया आत्मबलिदान: 24 जून 1564 को मुगल सेना के साथ भीषण युद्ध हुआ तभी एक तीर भुजा में लगा. रानी ने उसे निकाल फेंका. दूसरा तीर उनकी आंख में लगा. रानी ने इसे भी निकाला और तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर लग गया. रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधार सिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर उसके लिए वह तैयार नहीं हुआ. रानी ने अपनी कटार खुद अपने सीने में मारकर आत्मबलिदान के पथ पर बढ़ गई. महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ खान से लड़कर अपनी जान गवाने से पहले 75 वर्षों तक शासन किया था.

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