सागर। वैसे तो भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है. लेकिन बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के नजदीक स्थित कुंडेश्वर मंदिर को 13 वें ज्योतिर्लिंग की मान्यता है. यह प्राचीन काल से ही लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है. इसके बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि मंदिर का शिवलिंग हर साल चावल के दाने के आकार का बढ़ता है. इसका पता लगाने के लिए मंदिर की खुदाई भी की गई. लेकिन आज तक कोई भी शिवलिंग की गहराई तक नहीं पहुंच सका.
भक्तों की हर मुराद होती है पूरी
भगवान शिव की आराधना के लिए भारत के हर एक कोने पर शिव मंदिर स्थापित हैं. लेकिन कुंडेश्वर मंदिर की महिमा अपार है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने के आते हैं. यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूरी होती है. दर्शन से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं, मन को शांति मिलती है. सावन सोमवार को तो यहां की छटा ही अद्भुत होती है. श्रावण मास में भगवान शिव का अभिषेक करना विशेष फलकारी माना जाता है.
कैसे पहुंचे कुंडेश्वर
ये मंदिर बुंदेलखंड अंचल के संभागीय मुख्यालय सागर के टीकमगढ़ जिले से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर कुंडेश्वर गांव में स्थित है. यहां स्थित शिवलिंग बुंदेलखंड और उत्तर भारत इलाके में काफी प्रसिद्ध है. झांसी, ग्वालियर और भोपाल से रेल मार्ग द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा बस मार्ग से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
द्वापर युग से जुड़ी है कुंडेश्वर मंदिर की महिमा
मंदिर की महिमा द्वापर युग से भी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा जंगल के मार्ग से आकर यहां पर बने कुंड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में दर्शन दिए और उनकी प्रार्थना पर भगवान यहां प्रकट हुए. माना जाता है कि आज भी राजकुमारी भगवान शिव को जल चढ़ाने आती हैं. मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु बताते हैं कि जब वह सुबह मंदिर आते हैं तो उन्हें शिवलिंग पर जल चढ़ा हुआ मिलता है. जल कौन चढ़ाता है इसके बारे में कई बार पता लगाने की कोशिश की गई, लेकिन कभी पता नहीं लग सका.
मंदिर को लेकर एक और किवदंती
मंदिर में शिवलिंग प्रकट होने की एक और किवदंती है. कहा जाता है कि संवत 1204 में यहां पर धंतीबाई नाम की महिला पहाड़ी पर रहती थी. एक दिन वह धान कूट रही थी, लेकिन उसने देखा कि ओखली से रक्त निकलने लगा है. महिला घबरा गई और उसने पीतल की परात से ओखली को ढक दिया और लोगों को घटना के बारे में बताया. जब तत्कालीन राजा मदन वर्मन को इस घटना की जानकारी मिली तो वह अपने सिपाहियों के साथ पहाड़ी पर पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें ओखली जगह शिवलिंग दिखाई दिया. इसके बाद उन्होंने तत्काल शिवलिंग की स्थापना करवाई. यहां मंदिर में स्थापित नंदी पर संवत 1204 अंकित है. इसलिए इस घटना को सत्य माना जाता है.
हर साल बढ़ जाता है शिवलिंग का आकार
माना जाता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार हर साल एक चावल के दाने के बराबर बढ़ जाता है. यह बात कितनी सच है इसका पता लगाने के लिए 1937 में टीकमगढ़ रियासत के तत्कालीन महाराज वीर सिंह जूदेव द्वितीय ने यहां पर खुदाई करवाई थी. खुदाई के दौरान हर 3 फीट बाद एक जलहरी मिलती थी. खुदाई करते करते ऐसी सात जलहरी मिल गई. लेकिन शिवलिंग की पूरी गहराई तक नहीं पहुंच सके. इसके बाद उन्हें भगवान शिव का सपना आया और खुदाई बंद करवा दी गई.
(kundeshwar dham in tikamgarh) (shivling size increase every year)