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Maha Shivratri 2022: हर साल बढ़ता है कुंडेश्वर मंदिर के शिवलिंग का आकार, 13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजते हैं भक्त

1 मार्च को महाशिवरात्रि (Maha Shivratri 2022) का पर्व है. इस दिन लोग शिव की भक्ति में डूबे नजर आते हैं. भोलेनाथ का एक मंदिर बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के नजदीक कुंडेश्वर में स्थित है. इसे 13वां ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है. यह शिवलिंग प्राचीन काल से ही लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है. पढ़िए इसकी खासियत.. (shivling size increase every year)

13th Jyotirlinga of india
कुंडेश्वर महादेव मंदिर
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Published : Feb 28, 2022, 11:18 AM IST

सागर। वैसे तो भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है. लेकिन बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के नजदीक स्थित कुंडेश्वर मंदिर को 13 वें ज्योतिर्लिंग की मान्यता है. यह प्राचीन काल से ही लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है. इसके बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि मंदिर का शिवलिंग हर साल चावल के दाने के आकार का बढ़ता है. इसका पता लगाने के लिए मंदिर की खुदाई भी की गई. लेकिन आज तक कोई भी शिवलिंग की गहराई तक नहीं पहुंच सका.

भक्तों की आस्था का केंद्र है कुंडेश्वर शिव मंदिर

भक्तों की हर मुराद होती है पूरी
भगवान शिव की आराधना के लिए भारत के हर एक कोने पर शिव मंदिर स्थापित हैं. लेकिन कुंडेश्वर मंदिर की महिमा अपार है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने के आते हैं. यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूरी होती है. दर्शन से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं, मन को शांति मिलती है. सावन सोमवार को तो यहां की छटा ही अद्भुत होती है. श्रावण मास में भगवान शिव का अभिषेक करना विशेष फलकारी माना जाता है.

कैसे पहुंचे कुंडेश्वर
ये मंदिर बुंदेलखंड अंचल के संभागीय मुख्यालय सागर के टीकमगढ़ जिले से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर कुंडेश्वर गांव में स्थित है. यहां स्थित शिवलिंग बुंदेलखंड और उत्तर भारत इलाके में काफी प्रसिद्ध है. झांसी, ग्वालियर और भोपाल से रेल मार्ग द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा बस मार्ग से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

shivling size increase every year
हर साल चावल के दाने के आकार के बराबर बढ़ता है शिवलिंग

द्वापर युग से जुड़ी है कुंडेश्वर मंदिर की महिमा
मंदिर की महिमा द्वापर युग से भी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा जंगल के मार्ग से आकर यहां पर बने कुंड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में दर्शन दिए और उनकी प्रार्थना पर भगवान यहां प्रकट हुए. माना जाता है कि आज भी राजकुमारी भगवान शिव को जल चढ़ाने आती हैं. मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु बताते हैं कि जब वह सुबह मंदिर आते हैं तो उन्हें शिवलिंग पर जल चढ़ा हुआ मिलता है. जल कौन चढ़ाता है इसके बारे में कई बार पता लगाने की कोशिश की गई, लेकिन कभी पता नहीं लग सका.

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में आज बाब महाकाल का दूल्हे के रूप में हुआ अद्भुत श्रृंगार, आप भी करिए दर्शन

मंदिर को लेकर एक और किवदंती
मंदिर में शिवलिंग प्रकट होने की एक और किवदंती है. कहा जाता है कि संवत 1204 में यहां पर धंतीबाई नाम की महिला पहाड़ी पर रहती थी. एक दिन वह धान कूट रही थी, लेकिन उसने देखा कि ओखली से रक्त निकलने लगा है. महिला घबरा गई और उसने पीतल की परात से ओखली को ढक दिया और लोगों को घटना के बारे में बताया. जब तत्कालीन राजा मदन वर्मन को इस घटना की जानकारी मिली तो वह अपने सिपाहियों के साथ पहाड़ी पर पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें ओखली जगह शिवलिंग दिखाई दिया. इसके बाद उन्होंने तत्काल शिवलिंग की स्थापना करवाई. यहां मंदिर में स्थापित नंदी पर संवत 1204 अंकित है. इसलिए इस घटना को सत्य माना जाता है.

13th Jyotirlinga of india
13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजते हैं भक्त

हर साल बढ़ जाता है शिवलिंग का आकार
माना जाता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार हर साल एक चावल के दाने के बराबर बढ़ जाता है. यह बात कितनी सच है इसका पता लगाने के लिए 1937 में टीकमगढ़ रियासत के तत्कालीन महाराज वीर सिंह जूदेव द्वितीय ने यहां पर खुदाई करवाई थी. खुदाई के दौरान हर 3 फीट बाद एक जलहरी मिलती थी. खुदाई करते करते ऐसी सात जलहरी मिल गई. लेकिन शिवलिंग की पूरी गहराई तक नहीं पहुंच सके. इसके बाद उन्हें भगवान शिव का सपना आया और खुदाई बंद करवा दी गई.

(kundeshwar dham in tikamgarh) (shivling size increase every year)

सागर। वैसे तो भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है. लेकिन बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के नजदीक स्थित कुंडेश्वर मंदिर को 13 वें ज्योतिर्लिंग की मान्यता है. यह प्राचीन काल से ही लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है. इसके बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि मंदिर का शिवलिंग हर साल चावल के दाने के आकार का बढ़ता है. इसका पता लगाने के लिए मंदिर की खुदाई भी की गई. लेकिन आज तक कोई भी शिवलिंग की गहराई तक नहीं पहुंच सका.

भक्तों की आस्था का केंद्र है कुंडेश्वर शिव मंदिर

भक्तों की हर मुराद होती है पूरी
भगवान शिव की आराधना के लिए भारत के हर एक कोने पर शिव मंदिर स्थापित हैं. लेकिन कुंडेश्वर मंदिर की महिमा अपार है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने के आते हैं. यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूरी होती है. दर्शन से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं, मन को शांति मिलती है. सावन सोमवार को तो यहां की छटा ही अद्भुत होती है. श्रावण मास में भगवान शिव का अभिषेक करना विशेष फलकारी माना जाता है.

कैसे पहुंचे कुंडेश्वर
ये मंदिर बुंदेलखंड अंचल के संभागीय मुख्यालय सागर के टीकमगढ़ जिले से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर कुंडेश्वर गांव में स्थित है. यहां स्थित शिवलिंग बुंदेलखंड और उत्तर भारत इलाके में काफी प्रसिद्ध है. झांसी, ग्वालियर और भोपाल से रेल मार्ग द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा बस मार्ग से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

shivling size increase every year
हर साल चावल के दाने के आकार के बराबर बढ़ता है शिवलिंग

द्वापर युग से जुड़ी है कुंडेश्वर मंदिर की महिमा
मंदिर की महिमा द्वापर युग से भी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा जंगल के मार्ग से आकर यहां पर बने कुंड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में दर्शन दिए और उनकी प्रार्थना पर भगवान यहां प्रकट हुए. माना जाता है कि आज भी राजकुमारी भगवान शिव को जल चढ़ाने आती हैं. मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु बताते हैं कि जब वह सुबह मंदिर आते हैं तो उन्हें शिवलिंग पर जल चढ़ा हुआ मिलता है. जल कौन चढ़ाता है इसके बारे में कई बार पता लगाने की कोशिश की गई, लेकिन कभी पता नहीं लग सका.

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मंदिर को लेकर एक और किवदंती
मंदिर में शिवलिंग प्रकट होने की एक और किवदंती है. कहा जाता है कि संवत 1204 में यहां पर धंतीबाई नाम की महिला पहाड़ी पर रहती थी. एक दिन वह धान कूट रही थी, लेकिन उसने देखा कि ओखली से रक्त निकलने लगा है. महिला घबरा गई और उसने पीतल की परात से ओखली को ढक दिया और लोगों को घटना के बारे में बताया. जब तत्कालीन राजा मदन वर्मन को इस घटना की जानकारी मिली तो वह अपने सिपाहियों के साथ पहाड़ी पर पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें ओखली जगह शिवलिंग दिखाई दिया. इसके बाद उन्होंने तत्काल शिवलिंग की स्थापना करवाई. यहां मंदिर में स्थापित नंदी पर संवत 1204 अंकित है. इसलिए इस घटना को सत्य माना जाता है.

13th Jyotirlinga of india
13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजते हैं भक्त

हर साल बढ़ जाता है शिवलिंग का आकार
माना जाता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार हर साल एक चावल के दाने के बराबर बढ़ जाता है. यह बात कितनी सच है इसका पता लगाने के लिए 1937 में टीकमगढ़ रियासत के तत्कालीन महाराज वीर सिंह जूदेव द्वितीय ने यहां पर खुदाई करवाई थी. खुदाई के दौरान हर 3 फीट बाद एक जलहरी मिलती थी. खुदाई करते करते ऐसी सात जलहरी मिल गई. लेकिन शिवलिंग की पूरी गहराई तक नहीं पहुंच सके. इसके बाद उन्हें भगवान शिव का सपना आया और खुदाई बंद करवा दी गई.

(kundeshwar dham in tikamgarh) (shivling size increase every year)

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