जबलपुर। चुनावों में आये दिन बढ़ते खर्च को लेकर चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा को निर्धारित कर दिया था. जिसके बाद लोकसभा के लिए 70 लाख तो विधानसभा चुनाव के लिए कोई भी व्यक्ति 28 लाख खर्च कर सकता है. वहीं निगम के चुनावों में महापौर पद के लिए खर्च की सीमा तो तय है लेकिन पार्षदों के खर्च की सीमा नहीं तय होने की वजह से खूब फिजूलखर्ची बढ़ी है, जिसके बाद सोमवार को जबलपुर हाई कोर्ट में पार्षदों की खर्च सीमा तय करने के लिए नागरिक उपभोक्ता मंच ने याचिका दायर किया है.
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में नागरिक उपभोक्ता मंच की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई थी. जिसमें नागरिक उपभोक्ता मंच का कहना है लोकसभा चुनाव के बाद स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं, जिनमें नगर निगम के पार्षद चुने जाते हैं स्थानीय निकाय चुनाव में महापौर के चुनाव खर्च की सीमा तय है लेकिन पार्षदों के चुनाव खर्च की सीमा तय नहीं है. इसलिए नगर निगम में कई अमीर लोग पार्षद चुनाव में खड़े हो जाते हैं और खुलकर पैसा और गिफ्ट बांटते हैं, जिससे गरीब प्रत्याशी चुनाव हार जाता है.
मंच ने इसके पहले राज्य और केंद्र सरकार के विधि विभाग और निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर पार्षद चुनाव के लिए खर्च की सीमा तय करने की मांग की थी. लेकिन निर्वाचन आयोग और विधि विभाग ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया लिहाजा उपभोक्ता मंच को इस विषय को हाई कोर्ट के सामने उठाना पड़ा. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्क मानते हुए राज्य सरकार को और राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देशित किया है कि पार्षदों की चुनाव की खर्च की सीमा तय करें ताकि चुनाव में गरीब आदमी भी चुनाव लड़ सके.
भारत का लोकतंत्र भले ही 70 साल पुराना हो गया है, लेकिन अभी भी देश का आम नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकार को सही ढंग से इस्तेमाल नहीं कर रहा है. यदि लोग अपने वोट का सही इस्तेमाल करें तो आम आदमी भी चुनाव में खड़ा हो सकता है और उस ईमानदार आदमी को भी लोग वोट करें तो चुनाव में पैसे का दुरुपयोग बंद हो सकता है.