भोपाल। राजघरानों के विलय के फैसले से नाराज राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़ चुकी थीं. राजघरानों से चर्चा किए बगैर इंदिरा गांधी के उनका विलय करने के फैसले से वे बेहद खफा थीं. 1975 में लगे आपातकाल के बाद के घटनाक्रम में 1977 के आम चुनाव हुआ. चुनाम में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काे रायबरेली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी थी. देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी, लेकिन यह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ, तब इंदिरा को चुनौती देने उनके सामने थी ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया.
इंदिरा को उनके गढ़ में हीं चुनौती देने पहुंची राजमाता
राजनारायण के हाथों मिली चुनावी हार के बाद इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी लगभग ढ़ाई साल तक सत्ता से बाहर रहीं. इसके बाद 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए. देश की सियासत में उस वक्त बड़ा सवाल यह था कि क्या इंदिरा इस बार भी रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी या नहीं. विरोधी जनता पार्टी भी एक बार फिर इंदिरा के रायबरेली से चुनाव लड़ने पर उन्हें कड़ी चुनौती देना चाहती थी. इस योजना के तहत राजमाता को मनाया गया. पहले वे इसके लिए तैयार नहीं थी. उनका मानना था कि अब बहुत देर हो चुकी है. रायबरेली की जनता को इंदिरा से सहानुभूति का फायदा मिलेगा, लेकिन पार्टी चाहती थी कि इंदिरा को उनके गढ़ में ही घेरा जाए. आखिरकार राजमाता ने सहमति दे दी और वे इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली से जनता पार्टी की उम्मीद्वार बनीं.
राजमाता की चुनौती को देख इंदिरा ने दो सीटों से लड़ा चुनाव
रायबरेली से ही राजनारायण के हाथों मिली हार के बाद मध्यावधि चुनाव में भी रायबरेली से चुनाव जीतने को लेकर इंदिरा गांधी आश्वस्त नहीं थीं. उसपर जनता पार्टी की कद्दावर नेता राजमाता विजयाराजे सिंधिया से मिलने वाली चुनौती को देखते हुए इंदिरा ने 2 सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला लिया. एक यूपी की रायबरेली और दूसरी आंध्रप्रदेश की मेडक सीट. यह फैसला बताता है कि रायबरेली में राजमाता से मिली चुनौती से घबराईं इंदिरा किसी भी तरह संसद पहुंचना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने कांग्रेस के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली मेडक सीट से भी चुनाव लड़ा.
जनता पार्टी ने भी मेडक से उतारा बड़ा चेहरा
जनता पार्टी की पूरी कोशिश किसी भी हालत में इंदिरा गांधी को संसद पहुंचने से रोकने की थी. इसी तैयारी को लेकर रायबरेली में जहां विजयराजे उन्हें चुनौती दे रहीं थी तो मेडक में पार्टी ने एस जयपाल रेड्डी को इंदिरा के खिलाफ मैदान में उतारा. जयपाल रेड्डी जनता पार्टी की सरकार में मंत्री थे और दक्षिण में पार्टी के ताकतवर नेता माने जाते थे. इंदिरा को चुनौती देने के चक्कर में जनता पार्टी यह भूल गई कि कांग्रेस को हराकर बड़े जोरशोर से बनी उनकी सरकार पार्टी के नेताओं की आपसी कलह के चलते अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सकी थी. जनता के लिए जनता पार्टी पर फिर से भरोसा ना करने की यही सबसे बड़ी वजह थी.
डेढ़ लाख वोट से चुनाव हारीं राजमाता
1980 के मध्यावधि चुनाव में जनता पार्टी को अपनी आपसी कलह का नतीजा भुगतना पड़ा उसके कई नेताओं पर इंदिरा गांधी की लाेकप्रियता भारी पड़ी. इंदिरा ने दोनों सीटों पर जीत हासिल की. उन्होंने अपनी परंपरागत सीट रायबरेली से ग्वालियर राजघराने की राजमाता और कद्दावर नेता विजयाराजे सिंधिया को डेढ़ लाख से ज्यादा वोट से हराया. इस चुनाव में इंदिरा गांधी 2,23,903 वोट मिले, जबकि राजमाता काे सिर्फ 50,249 वोट ही मिले. आंध्रप्रदेश की मेडक सीट भी इंदिरा गांधी ने 2 लाख से ज्यादा वोट से जीत हासिल की. इस जीत के बाद इंदिरा गांधी की जोरदार वापसी भी हुई 1980 में दिल्ली में उनकी अगुवाई में कांग्रेस (आई) की नई सरकार बनीं.