ग्वालियर। 50 के दशक से पहले चंबल में बन्दूकबाज़ी मर्दानगी की निशानी मानी जाती थी. पचास के दशक तक, कोई भी आदमी यह सोच भी नहीं सकता था कि एक औरत बंदूक भी चला सकती है. पुरुषों के इसी भ्रम को तोड़ा कुछ महिला डकैतों नें. चंबल में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं, जिन्होंने बीहड़ों पर पुरुष डकैतों की तरह ही राज किया. हत्या, लूट, डकैती और अपहरण के मामलों में भी ये महिला डाकू किसी से पीछे नहीं रहीं. चंबल की फिजाओं में बारूद भरने वाली एक ऐसी ही महिला डकैत थी पुतली बाई.
क्रांतिकारी बिस्मिल के गांव में जन्मी पुतलीबाई
चंबल नदी के किनारे बसे मुरैना की अंबाह तहसील का बरबई गांव महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के लिए जाना जाता है. बिस्मिल के जन्म के करीब 33 साल बाद 1926 में यहीं पर नन्हें और असगरी के घर एक बच्ची का जन्म हुआ. मां बेहद खूबसूरत थी, बेटी उससे भी ज्यादा. उसका नाम भी उतना ही हसीन रखा गया गौहरबानो.
पुतलीबाई को बचपन से नाच गाने का शौक था
घर में शुरु से ही नाच गाने का माहौल था. बड़े भाई अलादीन के तबले की थाप पर पुतलीबाई ने जो पैर चलाने शुरु किए, तो लोगों के दिल उसके कदमों में गिरने लगे. कहते हैं कि दुबली-पतली गौहरबानो जब नृत्य करती थी, तो शरीर पुतली की तरह हरकत करता था. इसी वजह से उसका नाम पुतलीबाई पड़ा.
पुतली की शोहरत के लिए छोटा पड़ने लगा गांव
जल्द ही पुतलीबाई के नाम का डंका बजने लगा. उसकी महफिल का हिस्सा बनने के लिए अमीरों की तिजोरियां खुल गईं. कम उम्र में ही पुतली ने वो ग्लैमर वो देख लिया, जिसका लोग सपना देखते थे. उसकी मां को भी लगा कि अब ये इलाका पुतली की शोहरत के आगे छोटा पड़ने लगा है. अपने बेटी के साथ मां असगरी बाई आगरा चली गई. यहां भी उसके घुंघरु की छन-छन से ज्यादा सिक्के बरसने लगे. जल्द ही पूरे उत्तरप्रदेश में पुतली बाई नशे की तरह छा गई. उसकी महफिल सजाने के लिए पैसे वालों की लाइन लगने लगी.
कामयाब औरत के 100 दुश्मन
प्रसिद्धि और कामयाबी अपने साथ सौ दुश्मन भी लाती है.आगर वो औरत हो, तो उसकी कामयाबी पुरुषों को आसानी से हजम नहीं होती. ऐसा ही पुतलीबाई के साथ भी हुआ. उसकी महफिल में पैसे वालों के साथ साथ पुलिसवालों का दिल भी डोलने लगा. उसके कार्यक्रमों में बार-बार खलल डालने की कोशिश होने लगी. परेशान होकर पुतलीबाई वापस अपने गांव बरबई लौट आई.
पहली बार डाकू सुल्ताना से सामना हुआ
पुतलीबाई की महफिलें बड़ी से बड़ी होती गईं. अब तक पुतलीबाई के घुंघरुओं की गूंज चंबल के बीहड़ तक पहुंच गई थी. बारूद की गंध में जीने वाले डाकू भी पुतलीबाई के लिए मचलने लगे. उन दिनों चंबल में डाकू सुल्ताना की सत्ता चलती थी. पड़ोस के गांव सिरीराम का पुरा में पुतलीबाई के एक कार्यक्रम में वो भी पहुंच गए. उसे पुतली की अदाएं भा गईं. उसने उसे 500 रुपए का इनाम भी दिया.
डाकू की मोहब्बत पुतलीबाई को बीहड़ में खींच ले गई
एक छोटी सी मुलाकात के बाद डाकू सुल्ताना पुतली का दीवाना हो गया. कहा जाता है कि सुल्ताना डाकू महिलाओं की इज्जत करता था. उसने कभी किसी भी महिला की इज्जत पर हाथ नहीं डाला था. पुतलीबाई की उम्र उस वक्त 25 साल रही होगी.धौलपुर के गांव में एक शादी समारोह में पुतलीबाई अपनी महफिल सजाने आई थी. डाकू सुल्ताना को पता चला तो वो भी वहां पहुंच गया. रात के 2 बजे थे. अचानक राइफल से फायरिंग हुई. पूरी महफिल में सन्नाटा छा गया. गैस लाइट बंद कर दी गई. तबला और सारंगी की धुन खामोश हो गई. सामने देखा तो डाकू सुल्ताना था. उसे देख कर पुतलीबाई जरा भी घबराई नहीं. पुतलीबाई ने सुल्ताना से बेधड़क पूछा कौन है तू? तो आवाज आई, तुम्हारा चाहने वाला. सुल्ताना ने उसी वक्त पुतलीबाई को अपने साथ चलने को कहा. पुतलीबाई ने इनकार कर दिया तो उसने तबला बजाने वाले पुतली के भाई के सीने पर बंदूक तान दी. भाई की जान बचाने के लिए पुतली को मजबूरन सुल्ताना के साथ जाना पड़ा. एक डाकू की मोहब्बत पुतलीबाई को बीहड़ में खींच ले गई.
पुतलीबाई को नहीं भाई बारूद की गंध
जान बचाने की मजबूरी थी या दिल के हाथों मजबूर. धीरे धीरे पुतलीबाई को भी सुल्ताना से प्यार हो गया. पुतलीबाई अब चंबल के खूंखार डाकू सुल्ताना की प्रेमिका बन गई. यह खबर चंबल के आसपास के सभी गांवों में आग की तरह फैल गई. पुतलीबाई नाचने गाने वाली थी. लूटपात, कत्ल, अपहरण और बारूद की गंध उसे अच्छी नहीं लगती थी. उसके पेट में सुल्ताना का बच्चा पल रहा था. उसे अपने और अपने बच्चे के भविष्य का डर सता रहा था. सुल्ताना भी इस बात को समझ गया और उसे अपने गांव वापस जाने दिया.
पुलिस ने किया टॉर्चर, तो फिर पहुंच गई बीहड़
गांव आते ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. वो उससे डाकू सुल्ताना के बारे में पूछताछ करने लगी. पुतलीबाई पुलिसवालों के सामने नहीं टूटी. लेकिन पुलिस वाले रोज उसके घर आ धमकते और उसे टॉर्चर करते. कभी भी उसे उठाकर थाने ले जाते. उसके साथ जबरदस्ती करते. पुलिसवालों ने उसकी इज्जत के साथ भी खिलवाड़ किया. पुतलीबाई पुलिसवालों से परेशान हो गई थी. वो सिर्फ बच्चा पैदा होने का इंतजार करने लगी, ताकि फिर से बीहड़ में सम्मान की जिंदगी जी सके. उसने एक बच्ची को जन्म दिया. उसका नाम रखा तन्नो. बेटी को गांव में ही छोड़कर वो फिर से बीहड़ में डाकू सुल्ताना के पास चली गई.
बीहड़ के रंग में रंगने लगी पुतलीबाई
पुतलीबाई अब बदल चुकी थी. पुलिस की यातनाओं ने उसे फौलाद बना दिया था. अब उसे लूटपाट, डकैती, कत्ल, खूनखराबे से डर नहीं लगता था. सुल्ताना ने उसे लूटी गई रकम का बंटवार करने का काम सौंपा. उसे बंदूक चलाना भी सिखाया. एक दिन धौलपुर के रजई गांव के पास पुलिस ने इसके गिरोह को घेर लिया. दोनों तरफ से गोलियों की बौछार हुई. पुलिस ने पुतली बाई को पकड़ लिया. उसे आगरा की तारा गंज जेल लाया गया. फिर धौलपुर की जेल में रखा. फिर जमानत भी मिल गई. वो पुलिस को चकमा देकर फिर से बीहड़ में सुल्तान के पास पहुंच गई.
टॉर्चर करने वाले पुलिसवालों की अंगुलियां काट दी
इस बार पुतली बाई बदला लेने के लिए मूर्ति गैंग में शामिल हुई. पुतली का पहला निशाना वो पुलिस वाले और उनके परिवार वाले बने, जिन्होंने उसे टॉर्चर किया था. उसकी इज्जत पर हाथ डाला था. पुतलीबाई ने उन लोगों के घर जाकर उनकी अंगुलियां काट डाली और अंगूठी निकाल ली. महिलाओं के कानों को चीर दिया. पुतलीबाई का क्रूर चेहरा पहली बार लोगों के सामने आया. लोगों में अब उसका खौफ बढ़ने लगा.
मारा गया डाकू सुल्ताना, पुतली रह गई अकेली
उस वक्त सुल्ताना ने अपनी गैंग को बढ़ाने के लिए चंबल के ही एक और डाकू लाखन सिंह से हाथ मिला लिया. लेकन पुतलीबाई यह समझ गई थी कि लाखन के इरादे सही नहीं हैं. लाखन कभी भी सुल्ताना का काल बन सकता है. 25 मई 1955 का वक्त था. मुरैना जिले के नगरा थाना इलाके में अर्जुनपुर गांव में दोनों गिरोहों की बैठक हो रही थी. इसी दौरान पुलिस ने उन्हें घेर लिया. दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी. मुठभेड़ में सुल्ताना का सबसे वफादार साथी मातादीन पुलिस की गोली से मारा गया. सुल्ताना ने पुतलीबाई को बाबू लोहार को सौंपा और कहा कि यहां से भाग जाओ. तभी डकैत लाखन ने अपने साथी कल्ला डकैत को इशारा किया. कल्ला ने सुल्ताना पर गोलियां दाग दी. सुल्तान वहीं ढेर हो गया. पुतली बाई का डर सच में साबित हो गया. और यहां से पुतली की जिंदगी खाक में तब्दील हो गई. पुलिस ने यह दावा किया था कि सुल्ताना उनकी गोली का निशाना बना है. 1956 में पुतलीबाई ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक खत भी लिखा था और बताया था कि सुल्ताना को पुलिस की गोलियों ने नहीं बल्कि गैंग की गोलियों ने मारा है.
पुतलीबाई ने लिया सुल्ताना की हत्या का बदला
सुल्ताना की मौत के बाद बाबू लोहार गैंग का मुखिया बन गया. पुतलीबाई पर उनकी नियत खराब हो गई. उसने कई बात पुतली बाई से बलात्कर किया. एक दिन बाबू लोहार और पुलिस के बीच मुठभेड़ हो गयी. पुतलीबाई को इसी वक्त का इंतजार था. पुतलीबाई ने मौका पाकर बाबू लोहार और कल्ला डकैत को अपनी ही राइफल से ढेर कर दिया. इस तरह पुतलीबाई ने सुल्ताना की मौत का बदला ले लिया. बाबू लोहार का कत्ल करने के बाद पुतलीबाई गिरोह की सरदार बन गई
'डाकू हसीना' को कटवाना पड़ा बांया हाथ
अब पुतलीबाई का आतंक दिन-ब-दिन बढ़ने लगा. लेकिन एक दिन भिंड जिले के गोरमी के पास पुतलीबाई के गैंग की पुलिस कसे मुठभेड़ हो गई. पुलिस की गोली पुतलीबाई के कंधे के पार हो गई. पुतलीबाई का बायां हाथ बुरी तरह जख्मी हो गया. शरीर में जहर फैलने लगा तो उसे अपना हाथ ही कटवाना पड़ा. इसके बाद पुतलीबाई ने दाएं हाथ से गोली चलाना सीखा . वो एक हाथ से इतना सटीक निशाना लगाने लगी, जिसे देखकर गैंग के सभी साथी हैरान हो गए. पुतलीबाई ने अंचल में कोहराम मचा दिया. भिंड ,मुरैना, शिवपुरी और ग्वालियर में पुतलीबाई के नाम से लोग कांपने लगे.
32 साल की उम्र में मारी गई पुतली बाई
23 जनवरी 1958 को पुलिस की एक टुकड़ी मुरैना जिले के कोथर गांव में लाखन सिंह से मुठभेड़ करने की तैयारी में थी. चारों तरफ पुलिस ने भागने के रास्ते बन्द कर दिए. जल्द ही पुलिस को यह पता चला कि गैंग लाखन सिंह का नहीं, बल्कि पुतलीबाई का है.दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई. इसी मुठभेड़ में 32 साल की पुतलीबाई और उसके गैंग के साथी पुलिस की गोलियों से मारे गए.
चंबल में बगावत की पहली स्त्री आवाज
उसके अगले दिन पुतलीबाई और उसके 9 साथियों की लाशों का मुरैना में प्रदर्शन किया गया. पुतली की मां असगरी और बेटी तन्नो रोती बिलखती वहां पहुंचीं. असगरी ने अपनी बेटी का अंतिम संस्कार किया. आज भी चंबल की सबसे पहली खूंखार महिला डाकू पुतलीबाई की बेटी तन्नो कोलकाता में अपना कारोबार कर रही है. महज 32 साल की जिंदगी में पुतलीबाई ने ग्लैमर, और बीहड़ की अंधेरी रातों को करीब से देखा. पुतलीबाई को चंबल में बगावत की पहली स्त्री आवाज माना जाता है.