भोपाल। लॉकडाउन के चलते अब उन लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जो छोटे-छोटे कामों के जरिए अपना गुजारा करते थे. ऑटो-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पेट पालने वाले लोगों के जीवन यापन का संकट खड़ा हो गया. लॉकडाउन की अवधि लंबी होने के कारण ऑटो रिक्शा चालक कई तरह की समस्याओं से घिर गए हैं. ज्यादातर ऑटो चालक किराए पर ऑटो लेकर चलाते हैं. उसी से हुई बचत से उनके परिवार का खर्चा चलता है. लेकिन लॉकडाउन ने उनकी जिंदगी पर ब्रेक लगा दिया है. वहीं दूसरी तरफ जिनका खुद का ऑटो है, उनके सामने बैंक फाइनेंस की किस्त भरने की समस्या खड़ी हो गई है. यानि जैसे-जैसे लॉक डाउन का वक्त गुजर रहा है इन ऑटो चालकों की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं.
भोपाल और प्रदेश के बड़े शहरों में स्थानीय परिवहन में ऑटो रिक्शा एक बहुत बड़े वर्ग की आजीविका का साधन है. हजारों की संख्या में लोग ऑटो चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. जो ऑटो खरीदने में सक्षम नहीं हैं, वो रोजाना 120- 130 रूपये की दर से ऑटो किराए से लेते हैं और उसकी कमाई से अपने परिवार चलाते हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण अब सबकुछ रुक गया है. जिन लोगों ने फॉइनेंस पर ऑटो खरीद रखा था. उन्हें ये चिंता सता रही है कि अगर लॉकडाउन लंबा चला, तो कई महीनों की किश्त इकट्ठा हो जाएगी और फिर जब उन्हें भरना होगा, अगर किस्त ना भर पाए तो बैंक उनका ऑटो ले जाएगी.
भोपाल में संपूर्ण लॉकडाउन होने के कारण प्रशासन ने किराना और दूसरी सामग्री के लिए होम डिलीवरी की व्यवस्था की है और कुछ ऑटो चालकों को इसकी परमिशन दी है. लेकिन इसमें बहुत ही कम लोगों को काम मिला है. इन परिस्थितियों के बीच रोजाना कमा कर खाने वाले लोग पेट काटकर लॉकडाउन का समय गुजार रहे हैं. प्रशासन की मदद के दावे झूठे साबित हो रहे हैं. ऑटो चलाने वाले अली भाई बताते हैं कि सरकार होम डिलीवरी के काम के लिए कुछ लोगों को ही परमिशन दे रही है. जिनको काम मिल रहा है, उनका घर चल रहा है. हम लोग तो घर पर बैठे हैं, घर से बाहर निकलना मुश्किल है. खाने-पीने की दिक्कत है, राशन खत्म हो रहा है, जो स्टॉक किया था वो भी खत्म हो रहा है. अब क्या करें.
अब बचत के पैसे भी हो रहे खत्म
ऑटो चालक शहीद खान बताते हैं कि हमारी तो रोज कमाने और रोज खाने वाली लाइन थी. 100 से 200 रुपए रोज कमाते थे, अब कुछ नहीं कमा रहे हैं, कोई पूछने भी नहीं आ रहा है. जो पैसे जोड़े थे वो भी खत्म हो रहे हैं. खुमान बाई का बेटा ऑटो चला कर परिवार का पेट पालता है, खुमानबाई बताती हैं कि मेरा बेटा ऑटो चलाता है, वो ऑटो का किराया 120-130 दिन रोज का निकाल लेता था. उसी से घर चलता था. लेकिन अब घर चलाना मुश्किल हो रहा है.
जल्द नहीं निकला हल, तो बढ़ेगी मुश्किल
ऑटो चालक मोहम्मद जलाल बताते हैं कि जो घर में हैं, उसी को खा कर काम चला रहे हैं. रोजाना 300-400 कमा लेते थे, अभी कोई कमाई नहीं हो रही है, घर में फंसे हुए हैं. अभी साल भर पहले ही ऑटो फाइनेंस कराया था, अब तो किस्त भरना मुश्किल हो रहा है. सवाल बिल्कुल वाजिब है, सरकार को ऑटो चालकों के बारे में सोचना तो होगा, नहीं तो इनकी परेशानियां बढ़ती जाएंगी. फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि ऑटो की रफ्तार से चलने वाली जिंदगी, अब घर की चारदीवारी में सिमट कर रह गई. अब उन्हें अपने ऑटो चलाने का इंतजार है. ताकि उनकी जिंदगी भी पटरी पर आ सके.