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कुटुम्ब न्यायालय (संशोधन) विधेयक को संसद की मंजूरी

राज्यसभा में आज कुटुम्ब न्यायालय (संशोधन) विधेयक पारित हो गया. लोकसभा में यह विधेयक पहले ही पास हो चुका है. इस बारे में केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा कि सभी प्रदेशों के अलावा सभी जिलों में परिवार अदालतों की स्थापना किया जाने की आवश्यकता है. देश की 715 परिवार अदालतों में मई महीने तक 11.43 लाख केस पेंडिंग थे.

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Published : Aug 4, 2022, 5:14 PM IST

नई दिल्ली : कुटुम्ब न्यायालय (संशोधन) विधेयक को बृहस्पतिवार को संसद की मंजूरी मिल गई. विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच राज्यसभा ने आज इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया. लोकसभा में यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका है. विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू (Union Minister Kiren Rijuju) ने हर राज्य में और हर जिले में परिवार अदालतों की स्थापना को समय की मांग बताया और कहा कि वर्तमान में इन अदालतों में 11 लाख से अधिक मामले लंबित हैं जिन्हें समय पर निस्तारण जरूरी है.

उन्होंने कहा कि कुटुंब न्यायालय प्रत्येक जिले में खुले इसके लिए वह राज्य सरकारों से बात करेंगे. कुटुम्ब न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2022 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि सरकार की योजनाएं तब ही सार्थक होंगी जब परिवार सुखी होगा और उसे उन योजनाओं का लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि यह विधेयक लंबित मामलों के समाधान में मददगार होगा. विपक्षी सदसयों के हंगामे के बीच रीजीजू ने कहा कि बहुत जल्दी वे कुटुम्ब अदालतों के विषय की समीक्षा करने वाले हैं. उन्होंने कहा कि 30 जुलाई को जिला न्यायाधीशों का एक सम्मेलन बुलाया गया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के प्रधान न्यायाधीश शामिल हुए.

उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन में परिवार अदालतों से जुड़े विषय रखे गए. 'मैंने कहा कि परिवार अदालतों को प्राथमिकता दी जाए. कानूनी प्रक्रिया लंबी चलने पर बच्चे परेशान होते हैं.' रीजीजू ने कहा कि देश में 715 परिवार अदालतें हैं और इस साल मई महीने तक इनमें 11.43 लाख मामले लंबित थे. उन्होंने कहा कि परिवार अदालतों के मामलो को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि मामलों का निपटारा समय पर हो सके और सरकार अवसंरचना के लिए हरसंभव मदद कर रही है.

रीजीजू ने कहा कि हर जिले में परिवार अदालत स्थापित की जानी चाहिए और लंबित मामलों का जल्द निपटारा होना चाहिए ताकि मानसिक तकलीफ से बचा जा सके. मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी. लोकसभा पहले ही इस विधेयक को मंजूरी दे चुकी है. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश और नगालैंड राज्यों मे कुटुंब अदालत अपनी स्थापना की तारीख से ही कार्य कर रही हैं तथा राज्य सरकार के साथ कुटुंब अदालतों की कार्रवाई को विधिमान्य करना अपेक्षित है, इसलिए इस अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है. इसके माध्यम से इन दोनों राज्यों में कुटुंब अदालतों के अधीन की गई सभी कार्रवाइयों को पूर्व प्रभाव से विधिमान्य किया जा सकेगा.

इससे पहले विधेयक पर चर्चा के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरोज पांडेय ने कहा कि परिवार अदालतों का गठन एक अधिसूचना जारी कर किया जाता हें लेकिन हिमाचल प्रदेश ओर नगालैंड राज्य में ऐसी अधिसूचना जारी किए बिना ही परिवार अदालतों का गठन कर दिया गया. सरोज ने कहा कि संयुक्त परिवारों और एकल परिवारों की अलग-अलग समस्याएं हैं. ऐसे हालात बने कि परिवार टूटने लगे. उन्होंने अधिक से अधिक परिवार अदालतों की स्थापना की मांग की. उन्होने कुटुम्ब अदालतों में 11.4 लाख मामले लंबित होने पर चिंता व्यक्त की और इनके तीव्र निपटारे की जरूरत बतायी और कहा कि ऐसा होने पर परिवार मानसिक संताप से बच सकेंगे.

बीजू जनता दल के मुजीबुल्ला खान ने कहा 'कानून में ऐसी कौन सी खामियां हैं कि तलाक की प्रक्रिया में लंबा समय लगता हे और इसका खामियाजा बच्चे भुगतते हैं.' खान ने मांग की कि ऐसा कानून भी लाया जाना चाहिए जिससे तलाक की प्रक्रिया आसान हो सके. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सुभाषचंद्र बोस पिल्ली ने कहा कि लंबित मामलों का समय रहते निपटारा होना चाहिए चाहे वह मामले परिवार अदालतों में हों या अन्य अदालतों में . उन्होंने घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों पर भी चिंता जताई.

जनता दल (यूनाइटेड) के रामनाथ ठाकुर ने विधेयक का समर्थन कहा कि देश के करीब 700 परिवार अदालतों में 11 लाख से अधिक मामलों का लंबित होना चिंताजनक है और यह सवाल उठता है कि इस हालात में न्याय कैसे मिलेगा. उन्होंने अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने पर भी जोर दिया. राष्ट्रीय जनता दल के ए डी सिंह ने कहा कि परिवार अदालतों की स्थापना समय की मांग है. तेलुगु देशम पार्टी के कनकमेदला रवींद्र कुमार ने कहा कि परिवार अदालतों और अधीनस्थ अदालतों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए और वहां मामलों के निपटारे की समय सीमा तय होना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसी अदालतों के न्यायाधीश लैंगिक संवेदनशीलता को न भूलें, यह ध्यान रखा जाना चाहिए.

अन्नाद्रमुक के डा एम थंबीदुरै ने कहा कि लंबित मामलों का समय रहते निपटारा न होने पर न्याय की प्रासंगिकता नहीं रह जाती. 'मामलों का निपटारा समय पर होना बहुत जरूरी है.' टीएमसी (एम) के जी के वासन ने कहा कि हर राज्य के हर जिले में परिवार अदालतों की स्थापना करना उचित है. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही अलग अलग जगहों से उठती उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की स्थापना की मांग भी पूरी की जानी चाहिए.

भाजपा की एस फान्गाग कोन्याक ने कहा कि परिवार अदाालतों की स्थापना से पारिवारिक मामलों की समाधान में, उनके निपटारे में मदद मिलेगी. विधेयक पर चर्चा के दौरान, 'नेशनल हेराल्ड' मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई और अन्य मुद्दों पर कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी सदस्यों का हंगामा जारी था. कुछ सदस्य आसन के सामने आ कर नारेबाजी कर रहे थे. इससे पहले कांग्रेस सदस्य जयराम रमेश ने और फिर तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने व्यवस्था का प्रश्न उठाया. इस पर उपसभापति हरिवंश ने व्यवस्था का प्रश्न उठाने के नियमों का हवाला देते हुए उसे अस्वीकार कर दिया जिसके बाद विपक्षी सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया. हरिवंश ने कहा कि आसन की ओर से व्यवस्था नियमावली के अनुसार की दी जाती है. विधेयक पास होने के बाद उपसभापति हरिवंश ने सदन की बैठक को पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया.

ये भी पढ़ें - Monsoon Session 2022 : सरकार ने वापस लिया पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, पेश होगा नया विधेयक

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : कुटुम्ब न्यायालय (संशोधन) विधेयक को बृहस्पतिवार को संसद की मंजूरी मिल गई. विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच राज्यसभा ने आज इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया. लोकसभा में यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका है. विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू (Union Minister Kiren Rijuju) ने हर राज्य में और हर जिले में परिवार अदालतों की स्थापना को समय की मांग बताया और कहा कि वर्तमान में इन अदालतों में 11 लाख से अधिक मामले लंबित हैं जिन्हें समय पर निस्तारण जरूरी है.

उन्होंने कहा कि कुटुंब न्यायालय प्रत्येक जिले में खुले इसके लिए वह राज्य सरकारों से बात करेंगे. कुटुम्ब न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2022 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि सरकार की योजनाएं तब ही सार्थक होंगी जब परिवार सुखी होगा और उसे उन योजनाओं का लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि यह विधेयक लंबित मामलों के समाधान में मददगार होगा. विपक्षी सदसयों के हंगामे के बीच रीजीजू ने कहा कि बहुत जल्दी वे कुटुम्ब अदालतों के विषय की समीक्षा करने वाले हैं. उन्होंने कहा कि 30 जुलाई को जिला न्यायाधीशों का एक सम्मेलन बुलाया गया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के प्रधान न्यायाधीश शामिल हुए.

उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन में परिवार अदालतों से जुड़े विषय रखे गए. 'मैंने कहा कि परिवार अदालतों को प्राथमिकता दी जाए. कानूनी प्रक्रिया लंबी चलने पर बच्चे परेशान होते हैं.' रीजीजू ने कहा कि देश में 715 परिवार अदालतें हैं और इस साल मई महीने तक इनमें 11.43 लाख मामले लंबित थे. उन्होंने कहा कि परिवार अदालतों के मामलो को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि मामलों का निपटारा समय पर हो सके और सरकार अवसंरचना के लिए हरसंभव मदद कर रही है.

रीजीजू ने कहा कि हर जिले में परिवार अदालत स्थापित की जानी चाहिए और लंबित मामलों का जल्द निपटारा होना चाहिए ताकि मानसिक तकलीफ से बचा जा सके. मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी. लोकसभा पहले ही इस विधेयक को मंजूरी दे चुकी है. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश और नगालैंड राज्यों मे कुटुंब अदालत अपनी स्थापना की तारीख से ही कार्य कर रही हैं तथा राज्य सरकार के साथ कुटुंब अदालतों की कार्रवाई को विधिमान्य करना अपेक्षित है, इसलिए इस अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है. इसके माध्यम से इन दोनों राज्यों में कुटुंब अदालतों के अधीन की गई सभी कार्रवाइयों को पूर्व प्रभाव से विधिमान्य किया जा सकेगा.

इससे पहले विधेयक पर चर्चा के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरोज पांडेय ने कहा कि परिवार अदालतों का गठन एक अधिसूचना जारी कर किया जाता हें लेकिन हिमाचल प्रदेश ओर नगालैंड राज्य में ऐसी अधिसूचना जारी किए बिना ही परिवार अदालतों का गठन कर दिया गया. सरोज ने कहा कि संयुक्त परिवारों और एकल परिवारों की अलग-अलग समस्याएं हैं. ऐसे हालात बने कि परिवार टूटने लगे. उन्होंने अधिक से अधिक परिवार अदालतों की स्थापना की मांग की. उन्होने कुटुम्ब अदालतों में 11.4 लाख मामले लंबित होने पर चिंता व्यक्त की और इनके तीव्र निपटारे की जरूरत बतायी और कहा कि ऐसा होने पर परिवार मानसिक संताप से बच सकेंगे.

बीजू जनता दल के मुजीबुल्ला खान ने कहा 'कानून में ऐसी कौन सी खामियां हैं कि तलाक की प्रक्रिया में लंबा समय लगता हे और इसका खामियाजा बच्चे भुगतते हैं.' खान ने मांग की कि ऐसा कानून भी लाया जाना चाहिए जिससे तलाक की प्रक्रिया आसान हो सके. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सुभाषचंद्र बोस पिल्ली ने कहा कि लंबित मामलों का समय रहते निपटारा होना चाहिए चाहे वह मामले परिवार अदालतों में हों या अन्य अदालतों में . उन्होंने घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों पर भी चिंता जताई.

जनता दल (यूनाइटेड) के रामनाथ ठाकुर ने विधेयक का समर्थन कहा कि देश के करीब 700 परिवार अदालतों में 11 लाख से अधिक मामलों का लंबित होना चिंताजनक है और यह सवाल उठता है कि इस हालात में न्याय कैसे मिलेगा. उन्होंने अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने पर भी जोर दिया. राष्ट्रीय जनता दल के ए डी सिंह ने कहा कि परिवार अदालतों की स्थापना समय की मांग है. तेलुगु देशम पार्टी के कनकमेदला रवींद्र कुमार ने कहा कि परिवार अदालतों और अधीनस्थ अदालतों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए और वहां मामलों के निपटारे की समय सीमा तय होना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसी अदालतों के न्यायाधीश लैंगिक संवेदनशीलता को न भूलें, यह ध्यान रखा जाना चाहिए.

अन्नाद्रमुक के डा एम थंबीदुरै ने कहा कि लंबित मामलों का समय रहते निपटारा न होने पर न्याय की प्रासंगिकता नहीं रह जाती. 'मामलों का निपटारा समय पर होना बहुत जरूरी है.' टीएमसी (एम) के जी के वासन ने कहा कि हर राज्य के हर जिले में परिवार अदालतों की स्थापना करना उचित है. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही अलग अलग जगहों से उठती उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की स्थापना की मांग भी पूरी की जानी चाहिए.

भाजपा की एस फान्गाग कोन्याक ने कहा कि परिवार अदाालतों की स्थापना से पारिवारिक मामलों की समाधान में, उनके निपटारे में मदद मिलेगी. विधेयक पर चर्चा के दौरान, 'नेशनल हेराल्ड' मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई और अन्य मुद्दों पर कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी सदस्यों का हंगामा जारी था. कुछ सदस्य आसन के सामने आ कर नारेबाजी कर रहे थे. इससे पहले कांग्रेस सदस्य जयराम रमेश ने और फिर तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने व्यवस्था का प्रश्न उठाया. इस पर उपसभापति हरिवंश ने व्यवस्था का प्रश्न उठाने के नियमों का हवाला देते हुए उसे अस्वीकार कर दिया जिसके बाद विपक्षी सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया. हरिवंश ने कहा कि आसन की ओर से व्यवस्था नियमावली के अनुसार की दी जाती है. विधेयक पास होने के बाद उपसभापति हरिवंश ने सदन की बैठक को पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया.

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(पीटीआई-भाषा)

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