जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर को संस्कारधानी के नाम से जाना जाता है और यहां के संस्कारों में यदि नगर सेठानी की चर्चा ना की जाए तो बात अधूरी रह जाएगी. जबलपुर की नगर सेठानी माता दुर्गा की 152 साल पुरानी प्रतिमा रखने की परंपरा है. इसमें मां दुर्गा का श्रृंगार असली सोने और चांदी के जेवरों से किया जाता है. आज के समय में इन रत्न और आभूषणों की कीमत लगभग दो करोड़ रुपये है. जबलपुर में दुर्गा पूजा के समय लाखों लोग नगर सेठानी के दर्शन करने के लिए आते हैं.
जबलपुर के सर्राफा के दुर्गा उत्सव का इतिहास: आज से लगभग 152 साल पहले जबलपुर के ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में काम करने के लिए बंगाल से लोग आए थे. अंग्रेज शासन काल में बंगाल के लोगों को जबलपुर में लाकर बसाया गया था. जबलपुर आए बंगाली समाज के लोगों ने जबलपुर में बंगाली क्लब की स्थापना की थी. इस बंगाली क्लब में जब शहर के आम आदमी दुर्गा पंडाल में दर्शन करने को पहुंचे तो बंगाली लोगों ने उन्हें अंदर नहीं आने दिया. इसके बाद सर्राफा के कुछ व्यापारी भी दर्शन करने पहुंचे. उन्हें भी बंगाली लोगों ने मना कर दिया. गुस्साए लोगों ने खुद की दुर्गा प्रतिमा की स्थापना करने का फैसला लिया और सर्राफा में आज से ठीक 152 साल पहले दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की गई. यह जबलपुर में भी बंगालियों के अलावा पहले दुर्गा पंडाल था जहां मूर्ति स्थापित की गई थी.
बुंदेलखंडी शैली की दुर्गा प्रतिमा: उस जमाने में जबलपुर में मूर्ति के कलाकार नहीं थे, लेकिन फिर भी जबलपुर में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले एक परिवार ने मूर्ति बनाने का फैसला लिया और उन्होंने बुंदेलखंड शैली की मूर्ति बनाई. जिसमें पूरे जेवर सजाए गए थे लेकिन उस समय वह मिट्टी के थे. उस जमाने में जिस ढंग की प्रतिमा रखी गई थी उस प्रतिमा में थोड़ा बहुत परिवर्तन ही हुआ है. नहीं तो बीते लगभग 150 सालों से लगभग उसी शैली की प्रतिमा इस पंडाल में रखी जा रही है.
2 करोड़ रुपए के जेवर: सर्राफा के व्यापारियों ने जब पहली बार दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की थी इस जमाने से लोग चंदा दे रहे हैं और चंदे का जो पैसा बचता है उसे दुर्गा प्रतिमा के लिए जेवर खरीदे जाते हैं. सर्राफा के व्यापारियों को सेट कहा जाता है और वह अपनी माता दुर्गा की प्रतिमा को सेठानी कहते हैं. इस प्रतिमा को नगर सेठानी के नाम से जाना जाता है. नगर सेठानी के पास डेढ़ सौ साल में छोटे-छोटे चंदे को बचाकर एक बड़ी रकम बन गई है. इस रकम से दुर्गा प्रतिमा पर जेवर चढ़ाए जाते हैं. इस कमेटी के अध्यक्ष नवीन सराफ ने ''बताया कि आज की स्थिति में नगर सेठानी के पास लगभग दो करोड़ के सोने और चांदी के जेवर हैं.''
जेवर की सुरक्षा: 2 करोड़ रुपए की जेवर के साथ श्रृंगार करने वाली माता की प्रतिमा की सुरक्षा भी बहुत जरूरी है. इसलिए जब तक पंडाल में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना रहती है, तब तक यहां पुलिस की सशस्त्र गार्ड रहती है, जो त्योहार के दौरान पंडाल में मूर्ति को सुरक्षा प्रदान करती है. त्योहार खत्म होने के बाद इन जेवर को लॉकर में रखा जाता है. यहां हर साल दान की राशि बढ़ती जा रही है और इससे जेवर भी बढ़ते जा रहे हैं.
बुंदेलखंडी शैली के जेवर: नवीन सराफ ने बताया कि ''आज भी माता की प्रतिमा पर जो जेवर सजाए गए हैं वह बुंदेलखंड शैली के हैं. ऐसे जेवर आजकल चलन में नहीं है और यह जेवर आज भी केवल माता रानी के श्रृंगार के लिए बनाए गए हैं. इसमें सीतारामी हार, बिचोली बगरी गजरा, कटीला टोडल, पाजेब, पेजना पायल और शेर का कंठा शामिल है, माता रानी चांदी जिस सिंहासन पर बैठी हैं, उन्हें चांदी का छात्र भी चढ़ाया गया है.
दूर-दराज से आते हैं लोग: जबलपुर में बुंदेलखंडी शैली की प्रतिमाएं अब कई जगहों पर रखी जाने लगी हैं. लेकिन सराफा में नगर सेठानी का सम्मान सबसे ज्यादा है. इसी इलाके में एक और मूर्ति रखी जाती है लेकिन उन्हें देवरानी के नाम से जाना जाता है. क्योंकि उनकी स्थापना नगर सेठानी के बाद हुई थी. इन दोनों प्रतिमाओं को देखने के लिए जबलपुर के बाहर से भी लोग यहां आते हैं. सालों से चली आ रही इस परंपरा पर लोगों की बड़ी आस्था है और वह माता रानी की पूजा पाठ में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते.