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MP Election 2023: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नई सियासी लैब MP, यहां समझिए जीत के लिए किए कौन से नए प्रयोग - अभी अमित शाह के पत्ते बाकी

मध्यप्रदेश में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा 40 दिन में चार दौरे, चुनाव से तीन महीने पहले 39 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान, चार राज्यों के विधायकों की 230 सीटों पर तैनाती. पूरी कमान अपने हाथ में ले चुके शाह के ये प्रयोग 2023 के विधानसभा चुनाव में कितना असर दिखाएंगे. शाह की प्रयोगशाला बने एमपी में अभी कितने फार्मूले और आएंगे. क्या ये फार्मूले पार्टी में जीत की गारंटी बन पाएंगे.

MP Election 2023
केंद्रीय गृह मंत्री शाह की नई सियासी लैब एमपी
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 22, 2023, 5:32 PM IST

भोपाल। बीजेपी में अमित शाह के हाथ में जब किसी राज्य की कमान आती है तो माना जाता है कि वहां सरकार बननी तय है. देश की राजनीति के नए चाणक्य कहे जाते हैं शाह. जिन्होंने इस बार 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले खेमों में बंटी बीजेपी को एकजुट करने के लिए बहुत पहले ही मोर्चा संभाल लिया. वो कौन से प्रयोग हैं जिनके बूते शाह ने एमपी में जीत हर कीमत पर, की हुंकार भरी है. क्या चुनाव नजदीक आने के साथ अमित शाह के ऐसे कई और प्रयोग देखने को मिलेंगे. नरेन्द्र सिंह तोमर को नई जवाबदारी देकर एग्जाम से पहले एक्सटर्नल बनाकर लाना. बाहरी राज्यों से आए विधायकों के सामने पार्टी कार्यकर्ताओं के मन की बात और और तीन महीने पहले एलान उम्मीदवारों का.

अभी अमित शाह के पत्ते बाकी : शाह के पिटारे में अभी जीत के और कितने नुस्खे हैं. कार्यकर्ता से जनता तक नाराजगी हटाओ. हालांकि बीजेपी बहुत पहले ही एंटी इन्कमबेंसी का राजनीतिक मिथक तोड़ चुकी है. सत्ता में बने रहने के बाद भी सत्ता के खिलाफ नाराजगी दर्ज नहीं हुई. लेकिन इस बार सिंधिया गुट की बीजेपी मे एंट्री के बाद जनता में एंटी इन्कमबेंसी के पहले चिंता कार्यकर्ता की. वो कार्यकर्ता जो बीजेपी की रीढ़ है. चुनाव से पहले शाह ने सबसे पहले इसी कार्यकर्ता के गुस्से की संभालने का बंदोबस्त किया. हालांकि 2008 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ये प्रयोग कर चुकी है. उस समय भी एक हिस्से के पार्टी पदाधिकारी दूसरे हिस्से में भेजे गए थे.

तब बीजेपी में गुटबाजी नहीं थी : लेकिन तब बीजेपी इस तरह से गुटों में बंटी हुई नहीं थी. अब सबसे बड़ा जोखिम ही यही था कि जो नेता कार्यकर्ताओं को मनाने जाएंगे स्थानीय नेताओं के सामने कार्यकर्ताओं का गुस्सा हर विधानसभआ में बगावत की नई कहानी बन जाता. लेकिन शाह ने फार्मूला निकाला कि कार्यकर्ताओं की भड़ास भी निकल जाए और उन्हें ये विश्वास भी हो जाए कि केन्द्र तक सुनवाई हुई है. फिर बाहरी राज्यों से आए विधायकों का ये संदेश भी कार्यकर्ताओं में आसानी से ग्राह्य होगा कि अब छोटे उद्देश्य भूलकर बड़े लक्ष्य के लिए जुटना है.

मेरा इलाका मेरी कमान : नेताओं की राइट च्वाइस में पहले जो फैसले हो गए अमित शाह ने उन फैसलों की बखिया उधेड़ दी हैं. खासकर बीजेपी के लिए सबसे कमजोर कड़ी दिखाई दे रहे ग्वालियर चंबल में. शाह जान चुके हैं कि यहां संगठन में भी नियुक्तियां नेताओं की च्वाइस पर हुई हैं. बीजेपी की प्रदेश कार्यसमिति ग्वालियर में रखने का मकसद भी यही था और जिलाध्यक्षों से चर्चा ने ये भी बता दिया कि तैयारी कितनी है.

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नसीहत भी दे गए अमित शाह : बताया जाता है कि शाह यहां इशारा करके गए हैं कि ये तस्वीर जल्द बदल जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि चुनाव में जीत तभी मिलेगी, जब काम करने का कायदा बदलेगा. वहीं, बीजेपी नेता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने जब से कमान संभाली है, 40 दिन के भीतर ही बीजेपी में एक नई उर्जा का संचार हुआ है. अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को एकजुट करके काम पर लगा दिया है.

भोपाल। बीजेपी में अमित शाह के हाथ में जब किसी राज्य की कमान आती है तो माना जाता है कि वहां सरकार बननी तय है. देश की राजनीति के नए चाणक्य कहे जाते हैं शाह. जिन्होंने इस बार 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले खेमों में बंटी बीजेपी को एकजुट करने के लिए बहुत पहले ही मोर्चा संभाल लिया. वो कौन से प्रयोग हैं जिनके बूते शाह ने एमपी में जीत हर कीमत पर, की हुंकार भरी है. क्या चुनाव नजदीक आने के साथ अमित शाह के ऐसे कई और प्रयोग देखने को मिलेंगे. नरेन्द्र सिंह तोमर को नई जवाबदारी देकर एग्जाम से पहले एक्सटर्नल बनाकर लाना. बाहरी राज्यों से आए विधायकों के सामने पार्टी कार्यकर्ताओं के मन की बात और और तीन महीने पहले एलान उम्मीदवारों का.

अभी अमित शाह के पत्ते बाकी : शाह के पिटारे में अभी जीत के और कितने नुस्खे हैं. कार्यकर्ता से जनता तक नाराजगी हटाओ. हालांकि बीजेपी बहुत पहले ही एंटी इन्कमबेंसी का राजनीतिक मिथक तोड़ चुकी है. सत्ता में बने रहने के बाद भी सत्ता के खिलाफ नाराजगी दर्ज नहीं हुई. लेकिन इस बार सिंधिया गुट की बीजेपी मे एंट्री के बाद जनता में एंटी इन्कमबेंसी के पहले चिंता कार्यकर्ता की. वो कार्यकर्ता जो बीजेपी की रीढ़ है. चुनाव से पहले शाह ने सबसे पहले इसी कार्यकर्ता के गुस्से की संभालने का बंदोबस्त किया. हालांकि 2008 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ये प्रयोग कर चुकी है. उस समय भी एक हिस्से के पार्टी पदाधिकारी दूसरे हिस्से में भेजे गए थे.

तब बीजेपी में गुटबाजी नहीं थी : लेकिन तब बीजेपी इस तरह से गुटों में बंटी हुई नहीं थी. अब सबसे बड़ा जोखिम ही यही था कि जो नेता कार्यकर्ताओं को मनाने जाएंगे स्थानीय नेताओं के सामने कार्यकर्ताओं का गुस्सा हर विधानसभआ में बगावत की नई कहानी बन जाता. लेकिन शाह ने फार्मूला निकाला कि कार्यकर्ताओं की भड़ास भी निकल जाए और उन्हें ये विश्वास भी हो जाए कि केन्द्र तक सुनवाई हुई है. फिर बाहरी राज्यों से आए विधायकों का ये संदेश भी कार्यकर्ताओं में आसानी से ग्राह्य होगा कि अब छोटे उद्देश्य भूलकर बड़े लक्ष्य के लिए जुटना है.

मेरा इलाका मेरी कमान : नेताओं की राइट च्वाइस में पहले जो फैसले हो गए अमित शाह ने उन फैसलों की बखिया उधेड़ दी हैं. खासकर बीजेपी के लिए सबसे कमजोर कड़ी दिखाई दे रहे ग्वालियर चंबल में. शाह जान चुके हैं कि यहां संगठन में भी नियुक्तियां नेताओं की च्वाइस पर हुई हैं. बीजेपी की प्रदेश कार्यसमिति ग्वालियर में रखने का मकसद भी यही था और जिलाध्यक्षों से चर्चा ने ये भी बता दिया कि तैयारी कितनी है.

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नसीहत भी दे गए अमित शाह : बताया जाता है कि शाह यहां इशारा करके गए हैं कि ये तस्वीर जल्द बदल जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि चुनाव में जीत तभी मिलेगी, जब काम करने का कायदा बदलेगा. वहीं, बीजेपी नेता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने जब से कमान संभाली है, 40 दिन के भीतर ही बीजेपी में एक नई उर्जा का संचार हुआ है. अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को एकजुट करके काम पर लगा दिया है.

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