ETV Bharat / bharat

कचरा से 'कंचन'! वेस्ट मैटेरियल से बनाते हैं नायाब रस्सियां, छिंदवाड़ा के इस गांव का इनोवेशन लाजवाब - बेकार रद्दी कपड़ों से नायाब रस्सियां बनाईं

जिन वस्तुओं को हम बेकार समझकर फेंक देते हैं. अगर उसे किसी सुंदर आकार में बदल दिया जाए और यह नवाचार जीवनयापन का आधार बन जाए तो इसे कचरा से 'कंचन' बनाना ही कहा जाएगा. ऐसा ही काम करते हैं छिंदवाड़ा जिले के सिल्लेवानी गांव के सैकड़ों परिवार. ये लोग खराब कपड़ों से सुंदर रस्सियां बनाकर बाजार में बेचते हैं. इस नवाचार ने ग्रामीणों की जीवन में बहार ला दी है.

MP Chhindwara Garbage improves lives
वेस्ट मैटेरियल से बनाते हैं नायाब रस्सियां, छिंदवाड़ा के इस गांव का इनोवेशन लाजवाब
author img

By

Published : May 18, 2023, 10:26 AM IST

Updated : May 18, 2023, 5:28 PM IST

वेस्ट मैटेरियल से बनाते हैं नायाब रस्सियां

छिंदवाड़ा। जिले के सिल्लेवानी गांव के रहने वाले सैकड़ों परिवार पुराने व बेकार कपड़ों को इकट्ठा करने के बाद उनसे सुंदर व बहु उपयोगी रस्सियां बना रहे हैं. इसके साथ ही बेकार कपड़ों से ये ग्रामीण किसानों व मवेशियों के काम आने वाले कई प्रकार के सामान बनाते हैं. यहां ये काम कई सालों से चल रहा है. समय के साथ यहां के लोगों ने अपने व्यापार के तरीकों में कुछ बदलाव किया. अब यहां के लोग मैटेरियल सूरत से लाने लगे हैं लेकिन काम करने का तरीका वही जुगाड़ की मशीनों से किया जा रहा है.

रस्सियों वाले गांव से पहचान : रस्सियों का व्यापार करने वाले ग्रामीणों का कहना है कि पहले उन लोगों ने नागपुर सहित छोटी जगहों से बेकार कपड़े इकट्टा किए. फिर इनसे रस्सी बनाने लगे. अब ये ग्रामीण गुजरात के सूरत से जुड़ गए हैं. वहां के कपड़ा फैक्ट्रियों से निकलने वाले कचरे को खरीद कर लाने के बाद उसे सुंदर आकार में परिवर्तित करते हैं. अब इसी काम से उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है. मोहखेड़ विकासखंड का गांव सिल्लेवानी छिंदवाड़ा से नागपुर नेशनल हाईवे पर स्थित है. इस गांव को अब लोग रस्सी वाले गांव के नाम से पहचानते हैं. क्योंकि सड़क के अगल-बगल दोनों तरफ लोग सालभर ऐसी रस्सियां बनाते हुए नजर आते हैं.

आसपास के जिलों में काफी डिमांड : रस्सी वाले इस गांव की 90 फ़ीसदी आबादी करीब ढाई सौ परिवार इस व्यापार से जुड़े हैं. पीढ़ियों से चले आ रहे इस व्यापार को लेकर लोगों ने अब अपना दायरा भी बढ़ा लिया है. रस्सी बनाने वाले ग्रामीणों का कहना है कि छिंदवाड़ा के अलावा पड़ोसी जिले में इन रस्सियों की काफी डिमांड है. महाराष्ट्र के पड़ोसी जिले नागपुर के साथ ही मध्यप्रदेश के सिवनी, बैतूल, नरसिंहपुर में उनकी रस्सियों की काफी मांग है. जो व्यक्ति एक बार यहां की रस्सियों का इस्तेमाल कर लेता है, वह फिर यहीं की रस्सियों की डिमांड करता है. इस गांव की जीवनयापन का आधार यही काम है. लगभग हर घर में यही काम हो रहा है.

Must Read: ये खबरें भी पढ़ें...

जुगाड़ की मशीन से करते हैं काम : खास बात यह है कि इसे बनाने के लिए किसी आधुनिक मशीन की जरूरत नहीं बल्कि एक चक्रानुमा ठिया होता है और उसमें तीन लोग एक साथ रस्सियां बना सकते हैं. ये रस्सी बनाने की कला भी अद्भुत है. आमतौर पर कपड़ा काटने के लिए कैंची का उपयोग किया जाता है, लेकिन रस्सी बनाने वाले कारीगरों की खासियत है कि वे कैंची से नहीं बल्कि हसिया का इस्तेमाल करते हैं और हसिया से ही कपड़ा काटने के बाद रंगबिरंगी आकृतियों से कई डिजाइन की रस्सियां तैयार करते हैं.

वेस्ट मैटेरियल से बनाते हैं नायाब रस्सियां

छिंदवाड़ा। जिले के सिल्लेवानी गांव के रहने वाले सैकड़ों परिवार पुराने व बेकार कपड़ों को इकट्ठा करने के बाद उनसे सुंदर व बहु उपयोगी रस्सियां बना रहे हैं. इसके साथ ही बेकार कपड़ों से ये ग्रामीण किसानों व मवेशियों के काम आने वाले कई प्रकार के सामान बनाते हैं. यहां ये काम कई सालों से चल रहा है. समय के साथ यहां के लोगों ने अपने व्यापार के तरीकों में कुछ बदलाव किया. अब यहां के लोग मैटेरियल सूरत से लाने लगे हैं लेकिन काम करने का तरीका वही जुगाड़ की मशीनों से किया जा रहा है.

रस्सियों वाले गांव से पहचान : रस्सियों का व्यापार करने वाले ग्रामीणों का कहना है कि पहले उन लोगों ने नागपुर सहित छोटी जगहों से बेकार कपड़े इकट्टा किए. फिर इनसे रस्सी बनाने लगे. अब ये ग्रामीण गुजरात के सूरत से जुड़ गए हैं. वहां के कपड़ा फैक्ट्रियों से निकलने वाले कचरे को खरीद कर लाने के बाद उसे सुंदर आकार में परिवर्तित करते हैं. अब इसी काम से उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है. मोहखेड़ विकासखंड का गांव सिल्लेवानी छिंदवाड़ा से नागपुर नेशनल हाईवे पर स्थित है. इस गांव को अब लोग रस्सी वाले गांव के नाम से पहचानते हैं. क्योंकि सड़क के अगल-बगल दोनों तरफ लोग सालभर ऐसी रस्सियां बनाते हुए नजर आते हैं.

आसपास के जिलों में काफी डिमांड : रस्सी वाले इस गांव की 90 फ़ीसदी आबादी करीब ढाई सौ परिवार इस व्यापार से जुड़े हैं. पीढ़ियों से चले आ रहे इस व्यापार को लेकर लोगों ने अब अपना दायरा भी बढ़ा लिया है. रस्सी बनाने वाले ग्रामीणों का कहना है कि छिंदवाड़ा के अलावा पड़ोसी जिले में इन रस्सियों की काफी डिमांड है. महाराष्ट्र के पड़ोसी जिले नागपुर के साथ ही मध्यप्रदेश के सिवनी, बैतूल, नरसिंहपुर में उनकी रस्सियों की काफी मांग है. जो व्यक्ति एक बार यहां की रस्सियों का इस्तेमाल कर लेता है, वह फिर यहीं की रस्सियों की डिमांड करता है. इस गांव की जीवनयापन का आधार यही काम है. लगभग हर घर में यही काम हो रहा है.

Must Read: ये खबरें भी पढ़ें...

जुगाड़ की मशीन से करते हैं काम : खास बात यह है कि इसे बनाने के लिए किसी आधुनिक मशीन की जरूरत नहीं बल्कि एक चक्रानुमा ठिया होता है और उसमें तीन लोग एक साथ रस्सियां बना सकते हैं. ये रस्सी बनाने की कला भी अद्भुत है. आमतौर पर कपड़ा काटने के लिए कैंची का उपयोग किया जाता है, लेकिन रस्सी बनाने वाले कारीगरों की खासियत है कि वे कैंची से नहीं बल्कि हसिया का इस्तेमाल करते हैं और हसिया से ही कपड़ा काटने के बाद रंगबिरंगी आकृतियों से कई डिजाइन की रस्सियां तैयार करते हैं.

Last Updated : May 18, 2023, 5:28 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.