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केरल हाई कोर्ट ने चिकित्सकीय निगरानी के बिना बच्चों के खतने के खिलाफ याचिका खारिज की - बच्चों के खतने के खिलाफ याचिका

याचिका में अदालत से यह भी अनुरोध किया गया है कि केंद्र सरकार को एनजीओ के अभिवेदन पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए.

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Etv Bharat केरल हाई कोर्ट
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Published : Mar 29, 2023, 1:33 PM IST

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने चिकित्सकीय निगरानी के बिना बच्चों के खतने के चलन को अवैध घोषित करने और गैर जमानती अपराध घोषित करने के अनुरोध वाली याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिका पूरी तरह से 'अखबारों की रिपोर्ट' पर आधारित है और इसलिए यह सुनवाई योग्य नहीं है. मुख्य न्याधीश एस. मणिकुमार और न्यायमूर्ति मुरली पुरुषोत्तमन ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता अपना मामला साबित नहीं कर पाए.

पीठ ने कहा, 'अखबारों की रिपोर्ट के आधार पर तुरंत रिट याचिका दायर करना सुनवाई योग्य नहीं है. रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री पर विचार करते हुए हमारा यह भी विचार है कि याचिकाकर्ता अपना मामला साबित नहीं कर पाए हैं.' पीठ ने आगे कहा कि वह कोई कानून बनाने वाली संस्था नहीं है और इसलिए एनजीओ नॉन-रिलिजियस (एनआरसी) ने जो राहत मांगी है वह ‘‘नहीं दी जा सकती.'

एनजीओ ने अपनी याचिका में अदालत से इस प्रथा को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध के रूप में घोषित करने, केंद्र और केरल सरकार को इसे प्रतिबंधित करने वाले कानून की आवश्यकता और तात्कालिकता के बारे में सिफारिश करने या सलाह देने या ध्यान दिलाने का आग्रह किया. जो लोग बच्चों का खतना करते हैं या ऐसा करने का प्रयास करते हैं, याचिका में उन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने को लेकर अदालत से पुलिस को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.

पढ़ें: 'कन्वर्टेड क्रिश्चियन को रिजर्वेशन का लाभ नहीं मिलेगा', इसी आधार पर रद्द हुई सीपीएम विधायक की विधायकी

याचिका में अदालत से यह भी अनुरोध किया गया है कि केंद्र सरकार को एनजीओ के अभिवेदन पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए. याचिका में इस संबंध में कानून बनाने तथा बच्चों संबंधी इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाए जाने का अनुरोध किया गया है.

पीटीआई-भाषा

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने चिकित्सकीय निगरानी के बिना बच्चों के खतने के चलन को अवैध घोषित करने और गैर जमानती अपराध घोषित करने के अनुरोध वाली याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिका पूरी तरह से 'अखबारों की रिपोर्ट' पर आधारित है और इसलिए यह सुनवाई योग्य नहीं है. मुख्य न्याधीश एस. मणिकुमार और न्यायमूर्ति मुरली पुरुषोत्तमन ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता अपना मामला साबित नहीं कर पाए.

पीठ ने कहा, 'अखबारों की रिपोर्ट के आधार पर तुरंत रिट याचिका दायर करना सुनवाई योग्य नहीं है. रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री पर विचार करते हुए हमारा यह भी विचार है कि याचिकाकर्ता अपना मामला साबित नहीं कर पाए हैं.' पीठ ने आगे कहा कि वह कोई कानून बनाने वाली संस्था नहीं है और इसलिए एनजीओ नॉन-रिलिजियस (एनआरसी) ने जो राहत मांगी है वह ‘‘नहीं दी जा सकती.'

एनजीओ ने अपनी याचिका में अदालत से इस प्रथा को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध के रूप में घोषित करने, केंद्र और केरल सरकार को इसे प्रतिबंधित करने वाले कानून की आवश्यकता और तात्कालिकता के बारे में सिफारिश करने या सलाह देने या ध्यान दिलाने का आग्रह किया. जो लोग बच्चों का खतना करते हैं या ऐसा करने का प्रयास करते हैं, याचिका में उन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने को लेकर अदालत से पुलिस को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.

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याचिका में अदालत से यह भी अनुरोध किया गया है कि केंद्र सरकार को एनजीओ के अभिवेदन पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए. याचिका में इस संबंध में कानून बनाने तथा बच्चों संबंधी इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाए जाने का अनुरोध किया गया है.

पीटीआई-भाषा

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