विदिशा। एमपी के विदिशा का विजय मंदिर सुर्खियों में है, इसका कारण हैं दिल्ली में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अंतर्गत बने नए संसद भवन का आकार इस मंदिर से हू-ब-हू मिलता है. लोगों का कहना है कि विदिशा के परमार कालीन विजय सूर्य मंदिर के मॉडल पर नए संसद भवन का डिजाइन तैयार किया गया है, नए संसद भवन का 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकार्पण किया. विदिशा के प्राचीन किले के अंदर पश्चिम की तरफ स्थापित इस मंदिर के नाम पर ही विदिशा का नाम भेलसा पड़ा.
मंदिर के नाम से निकला शहर का नाम: सर्वप्रथम इस मंदिर का उल्लेख सन् 1024 में महमूद गजनी के साथ आए विद्धान अलबरुनी ने किया है, अपने समय में यह देश के विशालतम मंदिरों में से एक माना जाता था. साहित्यिक साक्ष्यों के अनुसार यह आधा मील लंबा-चौड़ा था, इसकी ऊंचाई 105 गज थी, जिससे इसके कलश दूर से ही दिखते थे. 2 बाहरी द्वारों के भी चिन्ह मिले हैं, यहां साल भर लोगों का मेला लगा रहता था और दिन- रात पूजा आरती होती रहती थी. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने अपनी विदिशा विजय के उपरांत किया. नृपति के सूर्यवंशी होने के कारण भेल्लिस्वामिन (सूर्य) का मंदिर बनवाया गया, इस भेल्लिस्वामिन नाम से ही इस स्थान का नाम पहले भेलसानी और कालांतर में भेलसा पड़ा.
अंग्रेजों ने कई बार की लूट-पाट: अपनी विशालता, प्रभाव व प्रसिद्धि के कारण यह मंदिर हमेशा से मुस्लिम शासकों के आंखों का कांटा बना रहा, कई बार इसे लूटा गया व तोड़ा गया और वहां के श्रद्धालुओं ने हर बार उसका पुननिर्माण कर पूजनीय बना डाला. मंदिर की वास्तुकला व मूर्तियों की बनावट यह संकेत देते हैं कि 10वीं-11वीं सदी में शासकों ने इस मंदिर का पुननिर्माण किया था. मुस्लिम शासकों के आक्रमणों की शुरुआत परमार काल से ही आरंभ हो गयी थी, पहला आक्रमण सन् 1266- 34 ई. में दिल्ली के गुलावंश के शासक इल्तुतमिश ने किया. उसने पूरे नगर में लूट- खसोट की. सन 1250 ई. इसका पुननिर्माण किया गया, लेकिन सन् 1290 ई. में फिर से अलाउद्दीन खिलजी के मंत्री मलिक काफूर ने इस पर आक्रमण कर अपार लूटपाट की और मंदिर की 8 फिट ऊंची अष्ट धातु की प्रतिमा को दिल्ली स्थित बदायूं दरवाजे की मस्जिद की सीढ़ियों में जड़ दिया गया.
माता का मंदिर समझकर की पूजा: सन 1459- 60 ई. में मांडू के शासक महमूद खिलजी ने इस मंदिर को तो लूटा ही, साथ-साथ भेलसा नगर व लोह्याद्रि पर्वत के अन्य मंदिरों को भी अपना निशाना बनाया. इसके बाद सन1532 ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने मंदिर को पुनर्विनाश किया. अंत मे धमार्ंध औरंगजेब ने सन् 1682 ई. में इसे तोपों से उड़वा दिया. शिखरों को तोड़ डाला गया, मंदिर के अष्टकोणी भाग को चुनवाकर चतुष्कोणी बना दियाय अवशेष पत्थरों का प्रयोग कर दो मीनारें बनवा दी तथा उसे एक मस्जिद का रुप दे दिया. मंदिर के पार्श्व भाग में तोप के गोलों को स्पष्ट निशान है. औरंगजेब के मृत्योपरांत वहां की टूटी- फूटी मूर्तियों को फिर से पूजा जाने लगा, सन 1760 ई. में पेशवा ने इसका मस्जिद स्वरुप नष्ट कर दिया. अब भोई आदि (हिंदूओं की निम्न जाति) ने इसे माता का मंदिर समझकर भाजी-रोटी से इसकी पूजा करने लगे.
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इसलिए कहलाया विजय मंदिर: पहले यह मंदिर अष्टकोणी था, जिससे 150 गज की दूरी पर द्वार बने थे. सामने विशाल यज्ञशाला था, बाईं ओर बावड़ी थी, पिछले हिस्से में सरोवर था. यहां खुदाई में मिली अन्य वस्तुओं के साथ मानव व सिंहों के मुखों की आकृतियों में तराशे कीर्तिमुख मिले थे, लेकिन ज्यादातर शिलालेख आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिए थे. स्तंभ पर मिला एक संस्कृत अभिलेख यह स्पष्ट करता है कि यह मंदिर चर्चिका देवी का था, संभवतः इन्हीं देवी का दूसरा नाम विजया था, जिनके नाम से इसे विजय मंदिर के रुप से जाना जाता रहा. यह नाम "बीजा मंडल' के रुप में आज भी प्रसिद्ध है. अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर और दूसरा नई दिल्ली में बनी नई संसद भवन इन दोनों निर्माणों की नीव जिस से प्रभावित है, वह बीजा मंडल यानी विजय मंदिर से है. अयोध्या का राम मंदिर और दिल्ली के अंदर नई संसद का डिजाइन विदिशा के विजय मंदिर के बेस से बहुत मिलता जुलता है.
मंदिर को तोड़कर कराया था मस्जिद का निर्माण: 11वीं शताब्दी में बने परमार काल की इस धरोहर का नाम बीजामण्डल है, इसे विजय मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह सिर्फ विदिशा ही नहीं देश और विदेश में भी ख्याति प्राप्त धरोहर है. परमार काल के समय बने मंदिरों में से खजुराहों और विदिशा के मंदिर की चर्चा इतिहास में वर्णित है, इस काल के इस विजय मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं. इस आधी अधूरी बनावट और आधारशिला को देखकर यह समझा जा सकता है कि इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया. मंदिर के प्रवेश द्वार पर बने स्तम्भों से पता चलता है कि इस पर मस्जिद का भी निर्माण कराया गया है. बादशाह औरंगजैब के काल में इस मंदिर को तोड़कर आलमगीर नाम की मस्जिद का निर्माण कराया. इतिहास के पन्नों में भी चित्रित है, इस मंदिर के प्रांगण में एक खुबसूरत सी बावड़ी बनी है, जिसके प्रवेश द्वार पर बने दो स्तंभों में कृष्णलीला का चित्रण भी किया गया है.
बीजामंडल/विजयमंदिर का आकर्षण: बेजोड़ शिल्प और कलाकृतियों से पर्यटक मंत्रमुग्द्व है, मगर केन्द्रीय पुरातत्व विभाग की व्यवस्थाओं से खासे निराश हैं. नगर के अतिव्यस्थ अंदरकिला क्षेत्र में 100 मीटर की दूरी के नियमो की धज्जीयां उड़ी पड़ी है, चारों तरफ गंदगी और अतिक्रमण से पटा पड़ा है. यह क्षेत्र विभाग की अनदेखी का आलम है, सूचनाओं का अभाव है और विभागीय वेरूखी के कारण इतिहास के अमर पन्नो में पुरा संपदा की यह वेजोड़ मिशाल विजयमंदिर/बीजामडंल पर्यटको की दृष्टी में ओझल है. जरूरत इस बात की है कि ऐतिहासिक विदिशा की इस धरोहर को पर्यटकों के प्रति आकर्शित करने के लिये इसे पर्यटक जोन में शामिल किया जाना जरूरी है.
नई संसद में दिखी विदिशा के विजय मंदिर की झलक: विदिशा का ऐतिहासिक विजया मंदिर कहें या सूर्य मंदिर कहे एकाएक फिर सुर्खियों में है क्योंकि परमार कालीन समय में बने इस विजया मंदिर की प्रतिकृति के आधार पर नई दिल्ली के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनी नई दिल्ली की संसद का उद्घाटन 28 मई को हुआ. प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता हितेश वाजपेई ने सोशल मीडिया के माध्यम से नई लोकसभा की डिजाइन विदिशा के विजया मंदिर से लिया जाना बताया है. विदिशा के इतिहासकार मानते हैं की विदिशा के लिए यह गौरव की बात है कि यहां के "विजय मंदिर की प्रतिकृति दिल्ली की नई संसद के लिए ली गई है और उसी आधार पर प्रोजेक्ट तैयार किया गया है, लेकिन हम लोग चाहते हैं कि कभी भी उद्घाटन समय या बाद में विदिशा के इस स्थान का जिक्र जरूर किया जाना चाहिए."