ETV Bharat / bharat

बुंदेलखंड का 'जलियांवाला बाग' कांड - indian independence movement

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसे ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 14वीं कड़ी.

बुंदेलखंड में चरणपादुका
author img

By

Published : Aug 29, 2019, 7:02 AM IST

Updated : Sep 28, 2019, 4:50 PM IST

छतरपुर: 1930 में जिस समय महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, तब बापू के इस आंदोलन से रोजाना बड़ी संख्या में लोग जुड़ रहे थे और विदेशी सामानों का बहिष्कार कर उसकी होली जला रहे थे. बुंदेलखंड में भी असहयोग आंदोलन की आग धीरे-धीरे धधकती जा रही थी. इसी क्रम में छतरपुर जिले के सिंहपुर में लगभग 60 हजार लोग एकजुट हुए और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के अलावा लगान नहीं देने की मुनादी कर दी.

बुंदेलखंड में अंग्रेजों के खिलाफ इसके पहले इतना बड़ा आंदोलन कभी नहीं हुआ था, इसके बाद विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और देशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए 14 जनवरी, 1931 को सिंहपुर में मकर संक्राति मेले के दिन बड़ी बैठक आयोजित की गई, जिसमें 7000 से भी ज्यादा लोग शामिल हुए.

बुंदेलखंड से गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

14 जनवरी, 1931 की तारीख इतिहास के पन्नों पर खूनी अक्षरों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई, क्योंकि इस बैठक को नाकाम करने के लिए अंग्रेजों ने बुंदेलखंड की धरती को भी खून से लाल कर जलियांवाला बाग जैसा बना दिया. अंग्रेज सैनिकों ने क्रांतिकारियों पर अंधाधुंध गोलियां दागी. 200 आंदोलनकारी मौके पर ही ढेर हो गए.

ये भी पढ़ें: कहां गयी वो विरासत, जहां से बापू ने बदला था हवाओं का रुख?

इतनी बड़ी संख्या में हुए इस नरसंहार को लोगों ने बुंदेलखंड का 'जलियांवाला बाग' नाम दिया, जिसके बाद लोगों में अंग्रेजी शासन के खिलाफ आक्रोश और अधिक बढ़ गया. इस घटना के बाद पूरे बुंदेलखंड में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला भड़क उठी, जो अंग्रेजों के उल्टे पांव भागने तक धधकती रही.

ये भी पढ़ें: ज्यादा से ज्यादा लोगों को देना है रोजगार, तो गांधी का रास्ता है बेहतर विकल्प

आजादी मिलने के बाद सिंहपुर के इस स्थान को चरण पादुका के नाम से जाना गया. यहां क्रांतिकारियों की शहादत की याद में बलिदान स्थल पर एक स्मारक तामीर कराया गया है, जो आज भी आजादी के मतवालों के जोश-जज्बे-जुनून की कहानी बयां करती है.

छतरपुर: 1930 में जिस समय महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, तब बापू के इस आंदोलन से रोजाना बड़ी संख्या में लोग जुड़ रहे थे और विदेशी सामानों का बहिष्कार कर उसकी होली जला रहे थे. बुंदेलखंड में भी असहयोग आंदोलन की आग धीरे-धीरे धधकती जा रही थी. इसी क्रम में छतरपुर जिले के सिंहपुर में लगभग 60 हजार लोग एकजुट हुए और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के अलावा लगान नहीं देने की मुनादी कर दी.

बुंदेलखंड में अंग्रेजों के खिलाफ इसके पहले इतना बड़ा आंदोलन कभी नहीं हुआ था, इसके बाद विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और देशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए 14 जनवरी, 1931 को सिंहपुर में मकर संक्राति मेले के दिन बड़ी बैठक आयोजित की गई, जिसमें 7000 से भी ज्यादा लोग शामिल हुए.

बुंदेलखंड से गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

14 जनवरी, 1931 की तारीख इतिहास के पन्नों पर खूनी अक्षरों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई, क्योंकि इस बैठक को नाकाम करने के लिए अंग्रेजों ने बुंदेलखंड की धरती को भी खून से लाल कर जलियांवाला बाग जैसा बना दिया. अंग्रेज सैनिकों ने क्रांतिकारियों पर अंधाधुंध गोलियां दागी. 200 आंदोलनकारी मौके पर ही ढेर हो गए.

ये भी पढ़ें: कहां गयी वो विरासत, जहां से बापू ने बदला था हवाओं का रुख?

इतनी बड़ी संख्या में हुए इस नरसंहार को लोगों ने बुंदेलखंड का 'जलियांवाला बाग' नाम दिया, जिसके बाद लोगों में अंग्रेजी शासन के खिलाफ आक्रोश और अधिक बढ़ गया. इस घटना के बाद पूरे बुंदेलखंड में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला भड़क उठी, जो अंग्रेजों के उल्टे पांव भागने तक धधकती रही.

ये भी पढ़ें: ज्यादा से ज्यादा लोगों को देना है रोजगार, तो गांधी का रास्ता है बेहतर विकल्प

आजादी मिलने के बाद सिंहपुर के इस स्थान को चरण पादुका के नाम से जाना गया. यहां क्रांतिकारियों की शहादत की याद में बलिदान स्थल पर एक स्मारक तामीर कराया गया है, जो आज भी आजादी के मतवालों के जोश-जज्बे-जुनून की कहानी बयां करती है.

Intro:Body:Conclusion:
Last Updated : Sep 28, 2019, 4:50 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.