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उत्तराखंड में दरक रहे पहाड़, आज तक तैयार नहीं हुआ ट्रीटमेंट प्लान, हर साल खर्च होते हैं करोड़ों रुपए

Landslides block roads in Uttarakhand राज्य सरकार आपदा की स्थिति को लेकर तमाम बड़े दावे करती रही है, लेकिन अभी तक भूस्खलन को रोकने के लिए कोई ट्रीटमेंट प्लान तैयार नहीं हो पाया है. जिसके चलते हर साल करोड़ों रुपए बर्बाद हो जाते हैं. दरअसल, मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश में भारी बारिश होने के चलते भूस्खलन का सिलसिला काफी अधिक बढ़ जाता है. पढ़ें पूरी खबर..

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Published : Aug 10, 2023, 5:16 PM IST

Updated : Aug 10, 2023, 7:20 PM IST

उत्तराखंड में दरक रहे पहाड़

देहरादून: उत्तराखंड में राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं, लेकिन मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश के तमाम क्षेत्रों की स्थिति खराब होती जा रही है, क्योंकि प्रदेश में भारी बारिश का सिलसिला शुरू होने के बाद न सिर्फ भूस्खलन की समस्याएं बढ़ जाती हैं, बल्कि जान माल का काफी नुकसान होता है.भूस्खलन को रोकने के लिए कोई ट्रीटमेंट प्लान तैयार नहीं किया गया है. ऐसे में सड़कों के मरम्मत कार्यों को लेकर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं. हिमालयी क्षेत्रों में आए दिन होने वाला भूस्खलन हमेशा ही राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती रहा है. देश में कुल भूमि का करीब 12 फीसदी हिस्सा भूस्खलन से प्रभावित है. जिन क्षेत्रों में आए दिन भूस्खलन होता है. वह क्षेत्र काफी संवेदनशील हैं.

भूस्खलन से हिमालयी सड़कों को होता है नुकसान: देश के पश्चिमी घाट में नीलगिरि की पहाड़ियां, कोंकण क्षेत्र में महाराष्ट्र, पूर्वी हिमालय क्षेत्रों में दार्जिलिंग, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के तमाम क्षेत्र भूस्खलन के दृष्टि से काफी संवेदनशील हैं. वर्तमान स्थिति यह है कि उत्तराखंड राज्य में चिन्हित तमाम भूस्खलन प्रोन एरिया हैं, जहां भूस्खलन होता रहता है. वहीं, सड़कें बाधित होने पर सड़क मार्ग को खोलने के लिए मशीनें तैनात की जाती हैं, लेकिन अभी तक भूस्खलन को रोकने के लिए ठोस ट्रीटमेंट पर ध्यान नहीं दिया गया. जिसके चलते हर साल भारी संख्या में सड़कों को नुकसान पहुंचता है.

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उत्तराखंड में दरक रहे पहाड़

रुद्रप्रयाग के बीच दर्जन भर भूस्खलन जोन सक्रिय: इसके अलावा ऑल वेदर रोड के कार्य के बाद से ही रुद्रप्रयाग में भूस्खलन के नए डेंजर जोन विकसित हो गए हैं. बरसात की वजह से ऋषिकेश से बदरीनाथ और रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग की स्थिति बेहद ख़राब है. तो वहीं, ऑलवेदर रोड परियोजना के तहत दोनों एनएच के चौड़ीकरण के कार्य से पहाड़ कमजोर हो गए हैं.जिसके चलते हल्की सी बारिश के बाद से ही पहाड़ दरकने लगते हैं. ऑल वेदर रोड परियोजना के चलते ऋषिकेश बदरीनाथ हाईवे पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच 35 किमी के क्षेत्र में दर्जन भर भूस्खलन जोन सक्रिय हो गए हैं.

भूस्खलन होने की मुख्य वजह पानी:आपदा विशेषज्ञ डॉ. गिरीश जोशी ने बताया कि भूस्खलन होने की मुख्य वजह पानी ही है, क्योंकि जब ज्यादा बारिश होती है, तो उससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि पहाड़ी क्षेत्र और यंग माउंटेन होने के चलते प्रदेश में भूस्खलन जैसी घटनाएं होती रहती हैं. हालांकि भूस्खलन से होने वाले नुकसान को रोकने और भूस्खलन के ट्रीटमेंट के तमाम तरीके हैं, जो यूरोपियन देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं. इसी क्रम में उत्तराखंड में भी करीब 15 भूस्खलन क्षेत्रों का ट्रीटमेंट किया गया है

आपदा विशेषज्ञ ने बताए भूस्खलन के ट्रीटमेंट के कई तरीके: भूस्खलन के ट्रीटमेंट के कई तरीके हैं. जिसमें मुख्य रूप से नेचर बेस्ड सॉल्यूशन है. जिसके तहत तमाम तरह की घास लगाकर और वृक्षारोपण कर भूस्खलन को रोका जा सकता है. इसके अलावा नदियों के किनारे कटान होने के चलते भी भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में कटान को रोकने के लिए रिवर ट्रेनिंग वर्क को कर सकते हैं. साथ ही फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक का इस्तेमाल करके भी भूस्खलन को रोका जा सकता है. हालांकि, इस ट्रीटमेंट के जरिए पर्यावरण को भी बचाते हुए भूस्खलन का सॉल्यूशन किया जा सकता है. वायर नेट के जरिए भी भूस्खलन को रोका जा सकता है, जिसका इस्तेमाल प्रदेश के तमाम भूस्खलन क्षेत्रों में किया गया है.
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नेचर बेस्ड सॉल्यूशन को किया जा सकता है अप्लाई : गिरीश जोशी ने कहा कि जो हमारे एनएच और राज्य मार्ग हैं. जिसका प्रॉपर तरीके से जियोलॉजी और जियोटेक्निकल प्रॉपर्टीज का अध्ययन कर सॉल्यूशन अप्लाई कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि वर्ल्ड बैंक परियोजना के तहत कई क्षेत्रों में भूस्खलन के इन समाधान को अप्लाई किया गया है. हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीण क्षेत्र में बनी सड़कों में भूस्खलन को रोकने के लिए नेचर बेस्ड सॉल्यूशन को अप्लाई किया जा सकता है.
ये भी पढ़ें: एशिया के वाटर टावर हिमालय को हीट वेव से खतरा, जानें वजह

उत्तराखंड में दरक रहे पहाड़

देहरादून: उत्तराखंड में राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं, लेकिन मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश के तमाम क्षेत्रों की स्थिति खराब होती जा रही है, क्योंकि प्रदेश में भारी बारिश का सिलसिला शुरू होने के बाद न सिर्फ भूस्खलन की समस्याएं बढ़ जाती हैं, बल्कि जान माल का काफी नुकसान होता है.भूस्खलन को रोकने के लिए कोई ट्रीटमेंट प्लान तैयार नहीं किया गया है. ऐसे में सड़कों के मरम्मत कार्यों को लेकर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं. हिमालयी क्षेत्रों में आए दिन होने वाला भूस्खलन हमेशा ही राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती रहा है. देश में कुल भूमि का करीब 12 फीसदी हिस्सा भूस्खलन से प्रभावित है. जिन क्षेत्रों में आए दिन भूस्खलन होता है. वह क्षेत्र काफी संवेदनशील हैं.

भूस्खलन से हिमालयी सड़कों को होता है नुकसान: देश के पश्चिमी घाट में नीलगिरि की पहाड़ियां, कोंकण क्षेत्र में महाराष्ट्र, पूर्वी हिमालय क्षेत्रों में दार्जिलिंग, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के तमाम क्षेत्र भूस्खलन के दृष्टि से काफी संवेदनशील हैं. वर्तमान स्थिति यह है कि उत्तराखंड राज्य में चिन्हित तमाम भूस्खलन प्रोन एरिया हैं, जहां भूस्खलन होता रहता है. वहीं, सड़कें बाधित होने पर सड़क मार्ग को खोलने के लिए मशीनें तैनात की जाती हैं, लेकिन अभी तक भूस्खलन को रोकने के लिए ठोस ट्रीटमेंट पर ध्यान नहीं दिया गया. जिसके चलते हर साल भारी संख्या में सड़कों को नुकसान पहुंचता है.

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उत्तराखंड में दरक रहे पहाड़

रुद्रप्रयाग के बीच दर्जन भर भूस्खलन जोन सक्रिय: इसके अलावा ऑल वेदर रोड के कार्य के बाद से ही रुद्रप्रयाग में भूस्खलन के नए डेंजर जोन विकसित हो गए हैं. बरसात की वजह से ऋषिकेश से बदरीनाथ और रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग की स्थिति बेहद ख़राब है. तो वहीं, ऑलवेदर रोड परियोजना के तहत दोनों एनएच के चौड़ीकरण के कार्य से पहाड़ कमजोर हो गए हैं.जिसके चलते हल्की सी बारिश के बाद से ही पहाड़ दरकने लगते हैं. ऑल वेदर रोड परियोजना के चलते ऋषिकेश बदरीनाथ हाईवे पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच 35 किमी के क्षेत्र में दर्जन भर भूस्खलन जोन सक्रिय हो गए हैं.

भूस्खलन होने की मुख्य वजह पानी:आपदा विशेषज्ञ डॉ. गिरीश जोशी ने बताया कि भूस्खलन होने की मुख्य वजह पानी ही है, क्योंकि जब ज्यादा बारिश होती है, तो उससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि पहाड़ी क्षेत्र और यंग माउंटेन होने के चलते प्रदेश में भूस्खलन जैसी घटनाएं होती रहती हैं. हालांकि भूस्खलन से होने वाले नुकसान को रोकने और भूस्खलन के ट्रीटमेंट के तमाम तरीके हैं, जो यूरोपियन देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं. इसी क्रम में उत्तराखंड में भी करीब 15 भूस्खलन क्षेत्रों का ट्रीटमेंट किया गया है

आपदा विशेषज्ञ ने बताए भूस्खलन के ट्रीटमेंट के कई तरीके: भूस्खलन के ट्रीटमेंट के कई तरीके हैं. जिसमें मुख्य रूप से नेचर बेस्ड सॉल्यूशन है. जिसके तहत तमाम तरह की घास लगाकर और वृक्षारोपण कर भूस्खलन को रोका जा सकता है. इसके अलावा नदियों के किनारे कटान होने के चलते भी भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में कटान को रोकने के लिए रिवर ट्रेनिंग वर्क को कर सकते हैं. साथ ही फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक का इस्तेमाल करके भी भूस्खलन को रोका जा सकता है. हालांकि, इस ट्रीटमेंट के जरिए पर्यावरण को भी बचाते हुए भूस्खलन का सॉल्यूशन किया जा सकता है. वायर नेट के जरिए भी भूस्खलन को रोका जा सकता है, जिसका इस्तेमाल प्रदेश के तमाम भूस्खलन क्षेत्रों में किया गया है.
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नेचर बेस्ड सॉल्यूशन को किया जा सकता है अप्लाई : गिरीश जोशी ने कहा कि जो हमारे एनएच और राज्य मार्ग हैं. जिसका प्रॉपर तरीके से जियोलॉजी और जियोटेक्निकल प्रॉपर्टीज का अध्ययन कर सॉल्यूशन अप्लाई कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि वर्ल्ड बैंक परियोजना के तहत कई क्षेत्रों में भूस्खलन के इन समाधान को अप्लाई किया गया है. हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीण क्षेत्र में बनी सड़कों में भूस्खलन को रोकने के लिए नेचर बेस्ड सॉल्यूशन को अप्लाई किया जा सकता है.
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Last Updated : Aug 10, 2023, 7:20 PM IST
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