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श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है पीरनिगाह मंदिर, कुष्ठ रोगों से मिलती है मुक्ति! - tunnel

पीरनिगाह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है . ऊना के बसोली में स्थित धार्मिक स्थल पीरनिगाह में कुष्ठ रोगों से मुक्ति मिलती है. स्थानीय लोगों की माने तो पीरनिगाह का मंदिर पूरे हिंदुस्तान में एक ही मंदिर है, जबकि दूसरा मंदिर पाकिस्तान में है.

श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है पीरनिगाह मंदिर
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Published : Jul 28, 2019, 3:23 PM IST

ऊना: हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है यहां पर अनेकों मंदिर हैं जो श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक हैं. ऐसा ही एक मंदिर पीरनिगाह ऊना मुख्यालय से मात्र 7-8 किलोमीटर दूरी पर स्थित बसोली में स्थित है.

पीरनिगाह मंदिर के इतिहास पर नजर डाले तो पूरे भारत वर्ष में पीरनिगाह का एक ही मंदिर है जो ऊना के बसोली में स्थित है, जबकि दूसरा मंदिर पाकिस्तान में है.
ऊना के पीरनिगाह मंदिर की गुफाओं का निर्माण पांडवों के समय किया गया था. कहा जाता है कि इन गुफाओं का निर्माण पांडवों द्वारा एक रात में किया गया था.

श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है पीरनिगाह मंदिर

स्थानीय बजुर्गों ने बताया कि द्वापर युग में पांडव, कौरवों से जुए में हार गए थे. इसलिए उन्हें 12 वर्ष का वनवास में सें एक वर्ष अज्ञातवास का कुछ समय इन गुफाओं में काटा था और उसके बाद पांडव यहां से चले गए थे.

पीरनिगाह मंदिर से 7 -8 किलोमीटर दूरी पर सैली नाम का एक गांव स्थित है. जहां पर ब्राह्मण समुदाय का एक परिवार रहता था. इसी परिवार के निगाहीया नाम का एक बुजुर्ग कुष्ठरोग से ग्रसित था. जिस कारण निगाहीया परिजनों को छोड़कर पांडवों द्वारा निर्मित इन गुफाओं में रहने लगा.

कुछ दिन व्यतीत करने के बाद किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि लखदाता पीर सखी सुल्तान नामक दरगाह जो कि अब पाकिस्तान में है. वहीं जाने से आपका कुष्ठ रोग दूर हो सकता है. निगाहीया ने वहां जाने की तैयारी कर ली, निगाहीया पैदल थोड़ी ही दूर निकले थे कि अचानक उन्हें एक फकीर मिले. फकीर के पुछने पर निगाहीया ने अपने कुष्ठरोग के बारे में बताया और कहा मैंने सुना है कि लखदाता पीर दरगाह पर जाने से कुष्ठरोग रोग का इलाज हो जाता है.

ये भी पढ़ेंः अंतरराष्ट्रीय मिंजर आज से शुरू, मुस्लिम परिवार की बनाई मिंजर मंदिर में चढ़ाने पर शुरू हुआ ये मेला

फकीर ने निगाहीया को कहा आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है.फकीर ने निगाहीया के शरीर पर एक छोटे से चश्मे (छपड़ी) का पानी छिड़का और निगाहीया बिल्कुल ठीक हो गए.
निगाहीया को वरदान देते हुए उस फकीर ने कहा कि आज के बाद जो भी इस चश्मे या छपड़ी का थोड़ा सा पानी लेकर कुष्ठ रोगी लगायेगा. उसका कुष्ठ रोग दूर हो जाएगा. इतना कहकर फकीर निगाहीया की आंखों से ओझल हो गए.

तब से लेकर निगाहीया ने यहीं रहकर भक्ति की. स्वर्गवास के पश्चात उनकी इस गुफा में समाधि बनाई गई. जहां पर श्रद्धालु शीश नवाने आते हैं. बैसाखी के दिन इस समाधि को नहलाया जाता है, और इस पर पहली चादर सैली गांव के ब्राह्मण परिवार द्वारा ही चढ़ाई जाती है.

उस फकीर का नाम और निगाहीया उस ब्राह्मण का नाम जोड़ देने से पीरनिगाह बना है. फकीर ने निगाहीया से कहा कि आज से जो भी श्रद्धालु कोई भी इच्छा लेकर यहां आएगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी.

ये भी पढ़ेंः नाको झील की खूबसूरती में छिपा है गहरा 'रहस्य', तांत्रिक गुरु पद्म संभव से जुड़ा है इतिहास

ऊना: हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है यहां पर अनेकों मंदिर हैं जो श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक हैं. ऐसा ही एक मंदिर पीरनिगाह ऊना मुख्यालय से मात्र 7-8 किलोमीटर दूरी पर स्थित बसोली में स्थित है.

पीरनिगाह मंदिर के इतिहास पर नजर डाले तो पूरे भारत वर्ष में पीरनिगाह का एक ही मंदिर है जो ऊना के बसोली में स्थित है, जबकि दूसरा मंदिर पाकिस्तान में है.
ऊना के पीरनिगाह मंदिर की गुफाओं का निर्माण पांडवों के समय किया गया था. कहा जाता है कि इन गुफाओं का निर्माण पांडवों द्वारा एक रात में किया गया था.

श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है पीरनिगाह मंदिर

स्थानीय बजुर्गों ने बताया कि द्वापर युग में पांडव, कौरवों से जुए में हार गए थे. इसलिए उन्हें 12 वर्ष का वनवास में सें एक वर्ष अज्ञातवास का कुछ समय इन गुफाओं में काटा था और उसके बाद पांडव यहां से चले गए थे.

पीरनिगाह मंदिर से 7 -8 किलोमीटर दूरी पर सैली नाम का एक गांव स्थित है. जहां पर ब्राह्मण समुदाय का एक परिवार रहता था. इसी परिवार के निगाहीया नाम का एक बुजुर्ग कुष्ठरोग से ग्रसित था. जिस कारण निगाहीया परिजनों को छोड़कर पांडवों द्वारा निर्मित इन गुफाओं में रहने लगा.

कुछ दिन व्यतीत करने के बाद किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि लखदाता पीर सखी सुल्तान नामक दरगाह जो कि अब पाकिस्तान में है. वहीं जाने से आपका कुष्ठ रोग दूर हो सकता है. निगाहीया ने वहां जाने की तैयारी कर ली, निगाहीया पैदल थोड़ी ही दूर निकले थे कि अचानक उन्हें एक फकीर मिले. फकीर के पुछने पर निगाहीया ने अपने कुष्ठरोग के बारे में बताया और कहा मैंने सुना है कि लखदाता पीर दरगाह पर जाने से कुष्ठरोग रोग का इलाज हो जाता है.

ये भी पढ़ेंः अंतरराष्ट्रीय मिंजर आज से शुरू, मुस्लिम परिवार की बनाई मिंजर मंदिर में चढ़ाने पर शुरू हुआ ये मेला

फकीर ने निगाहीया को कहा आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है.फकीर ने निगाहीया के शरीर पर एक छोटे से चश्मे (छपड़ी) का पानी छिड़का और निगाहीया बिल्कुल ठीक हो गए.
निगाहीया को वरदान देते हुए उस फकीर ने कहा कि आज के बाद जो भी इस चश्मे या छपड़ी का थोड़ा सा पानी लेकर कुष्ठ रोगी लगायेगा. उसका कुष्ठ रोग दूर हो जाएगा. इतना कहकर फकीर निगाहीया की आंखों से ओझल हो गए.

तब से लेकर निगाहीया ने यहीं रहकर भक्ति की. स्वर्गवास के पश्चात उनकी इस गुफा में समाधि बनाई गई. जहां पर श्रद्धालु शीश नवाने आते हैं. बैसाखी के दिन इस समाधि को नहलाया जाता है, और इस पर पहली चादर सैली गांव के ब्राह्मण परिवार द्वारा ही चढ़ाई जाती है.

उस फकीर का नाम और निगाहीया उस ब्राह्मण का नाम जोड़ देने से पीरनिगाह बना है. फकीर ने निगाहीया से कहा कि आज से जो भी श्रद्धालु कोई भी इच्छा लेकर यहां आएगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी.

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Intro:स्लग-- श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है पीरनिगाह मंदिर,ऊना के बसोली में स्थित धार्मिक स्थल पीरनिगाह, कुष्ठ रोगों से मुक्ति मिलती है पीरनिगाह में, देश ही नहीं विदेशों से भी शीश झुकाने आते है श्रद्धालु।


Body:एंकर-- हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है। यहां पर देश से ही नही विदेशों से भी श्रद्धालु देवी देवताओं के दर्शन करने के लिए आते हैं। यहां पर अनेकों मंदिर हैं जो श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक हैं। ऐसा ही एक मंदिर पीरनिगाह है, जहां पर आए दिन श्रद्धालु शीश नवाने पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों की माने तो पीरनिगाह का मंदिर पूरे हिंदुस्तान में एक ही है जो हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना बसोली में स्थित है , जबकि दूसरा मंदिर पाकिस्तान में है। इस मंदिर में शीश नवाने से कुष्ठ रोग से निजात मिलती है। जहां पर आये दिन श्रद्धालुओं का मंदिर में तांता लगा रहता है। वहीं इस मंदिर का संचालन स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता रहा है। जब भी पंचायत चुनावों में प्रधान या दूसरे सदस्यों को चुना जाता है। वही पंचायत प्रतिनिधि इस मंदिर के अध्यक्ष व सदस्य होते हैं। जिनकी देखरेख में मंदिर का संचालन किया जाता है।

वीओ--1ऊना मुख्यालय से मात्र 7-8 किलोमीटर दूरी पर स्थित बसोली में पीरनिगाह का मंदिर है। जो श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। पीरनिगाह मंदिर के इतिहास पर नजर डाले तो पूरे भारत वर्ष में पीरनिगाह का एक ही मंदिर है जो ऊना के बसोली में स्थित है, जबकि दूसरा मंदिर पाकिस्तान में है। ऊना के पीरनिगाह मंदिर में पांडवों के समय गुफाओं का निर्माण किया गया था। कहा जाता है कि इन गुफाओं का निर्माण पांडवों द्वारा एक रात में किया गया था। स्थानीय बजुर्गों ने बताया कि द्वापर युग में पांडव, कौरवों से जुए में हार गए थे। इसलिए उन्हें 12 वर्ष का वनवास हुआ था। जिसमें एक वर्ष अज्ञातवास का था, अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव एक रात के लिए बसौली गांव के इस स्थान पर रुके थे। भगवान श्री कृष्ण की पांडवों पर विशेष कृपा होने के कारण। उन्होंने मात्र एक ही रात में पीर निगाह में गुफाओं का निर्माण किया था। गुफाओं को खोदते हुए जब सुबह के 4 बज गए ,तो नजदीक किसी बस्ती में लस्सी छूलने की आवाज पांडवों को सुनाई दी, पांडवों ने सोचा कि बस्ती में उन्हें देख कर कोई पहचान लेगा। इसलिए उन्होंने इस जगह को छोड़कर प्रस्थान कर लिया ।

पीरनिगाह मंदिर के इतिहास पर नजर डालें तो पीरनिगाह से 7 -8 किलोमीटर दूरी पर सैली नाम का एक गांव स्थित है। जहां पर ब्राह्मण समुदाय का एक परिवार रहता था। इसी परिवार के निगाहीया नाम का एक बुजुर्ग कुष्ठरोग से ग्रसित था। जिस कारण परिजन निगाहीया से बहुत नफरत करते थे। एक दिन निगाहीया अपने परिजनों को छोड़कर पांडवों द्वारा निर्मित इन गुफाओं में रहने लग गए । कुष्ठ रोग स ग्रस्त होने के कारण बहुत दुखी थे। कुछ दिन व्यतीत करने के बाद किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि लखदाता पीर सखी सुल्तान नामक दरगाह जो कि अब पाकिस्तान में है। वहीं जाने से आपका कुष्ठ रोग दूर हो सकता है। निगाहीया ने वहां जाने की तैयारी कर ली, लेकिन उस समय पैदल जाने के इलावा दूसरा कोई साधन नहीं था । निगाहीया पैदल थोड़ी ही दूर निकले थे कि अचानक उन्हें एक फकीर मिले। फकीर ने निगाहिया से उनका परिचय पूछा और कहां जा रहे हैं। उन्होंने अपना नाम बताया और कहा कि मुझे कुष्ठ रोग हुआ है। मैंने सुना है कि लखदाता पीर दरगाह पर जाने से रोग का इलाज हो जाता है। फकीर ने निगाहीया को कहा आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है। आप यहीं पर रहो आपका कुष्ठरोग यही ठीक हो जाएगा। फकीर ने निगाहीया के शरीर पर एक छोटे से चश्मे ( छपड़ी) का पानी छिड़का और निगाहीया बिल्कुल ठीक हो गए। निगाहीया को वरदान देते हुए उस फकीर ने कहा कि आज के बाद जो भी इस चश्मे या छपड़ी का थोड़ा सा पानी लेकर कुष्ठ रोगी लगायेगा। उसका कुष्ठ रोग दूर हो जाएगा उसी दिन से इस चश्मे का नाम रोहलियां वाली छपड़ी पड़ गया । बसोली निवासी आज भी इस चश्मे को इसी नाम से पुकारते हैं। इसके उपरांत निगाहीया को उस फकीर ने कहा कि आप इसी गुफा में भक्ति करो , आज से इस जगह को पीरनिगाह नाम से जाना जाएगा पीर लखदाता उस फकीर का नाम और निगाहीया उस ब्राह्मण का नाम जोड़ देने से पीरनिगाह बना है। फकीर ने निगाहीया से कहा कि आज से जो भी श्रद्धालु कोई भी इच्छा लेकर यहां आएगा या फिर घर से ही इच्छा व्यक्त करके हमारा नाम लेगा , उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। इतना कहकर फकीर निगाहीया की आंखों से ओझल हो गए। निगाहीया को अब यकीन हो गया कि या कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे । बल्कि वह तो वही पीर थे जिनके पास वे पैदल जा रहा था। तब से लेकर निगाहीया ने यहीं रहकर भक्ति की । स्वर्गवास के पश्चात उनकी इस गुफा में समाधि बनाई गई। जहां पर श्रद्धालु शीश नवाने आते हैं। बैसाखी के दिन इस समाधि को नहलाया जाता है, और इस पर पहली चादर सैली गांव के ब्राह्मण परिवार द्वारा ही चढ़ाई जाती है।

वहीं श्रद्धालुओं ने बताया कि इस मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाए वह पुरी होती है। यहां पर ठहरने का उचित प्रबंध है। यहां पर देश से ही नही विदेशों से भी श्रद्धालु शीश नवाते है।

बाइट-- कर्म चंद (मंदिर सचिव, व स्थानीय निवासी)
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बाइट-- श्रद्धालु
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बाइट-- श्रद्धालु
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बाइट-- श्रद्धालु
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वीओ --2 वहीं मंदिर के उप प्रधान गुरदेव सिंह की माने तो पिछले कई सालों से मंदिर का संचालन मौजूदा पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा ही किया जाता रहा है। मंदिर में श्रद्धालुओं को ठहरने के लिए सरायों का उचित प्रबंध है। मंदिर में सीसीटीवी कैमरे स्थापित किये गए है। श्रद्धालुओं के लिए हर दिन मंदिर में लंगर का आयोजन होता है। यहीं नहीं मंदिर के चढ़ावे से गरीब लोगों की मदद भी की जाती है।

बाइट-- गुरदेव सिंह(मंदिर कमेटी, उपप्रधान)

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