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सोलन सदर सीट: ससुर दामाद या फिर वो... क्या महिला को मैदान में उतारेगी BJP ?

बीजेपी आलाकमान के 'कार्यकर्ता रायशुमारी' फॉर्मूले के तहत प्रत्याशियों के चयन के लिए कराई गई वोटिंग के बाद सोलन सदर सीट का माहौल गरमा गया है. सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि बीजेपी इस बार किसी महिला कैंडिडेट को मैदान में उतार सकती है. तो वहीं, कांग्रेस में एक फिर कर्नल (सेवानिवृत्त) धनीराम शांडिल पर भरोसा जता रही है. (solan sadar assembly seat political equation)

Solan Sadar assembly seat
सोलन सदर विधानसभा सीट
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Published : Oct 18, 2022, 1:33 PM IST

सोलन: हिमाचल प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां तेज हैं. कांग्रेस और भाजपा के संभावित उम्मीदवार अपनी अपनी फिल्डिंग तैयार करने में जुटे हैं. अगर बात सोलन सदर सीट की करें तो यहां एक बार भाजपा साल 2017 में हुए विधानसभा चुनावों की तरह ही पैराशूट उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है. बीते दिनों भाजपा हाई कमान ने मंडल और मोर्चों के पदाधिकारियों से 'कार्यकर्ता रायशुमारी' फॉर्मूले के तहत प्रत्याशियों के चयन के लिए पदाधिकारियों से वोटिंग करवाई. ऐसे में सोलन सदर सीट का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से तय हो चुका है कि सीटिंग विधायक कर्नल (सेवानिवृत्त) धनीराम शांडिल ही विधानसभा चुनाव 2022 लड़ने वाले हैं. (solan sadar assembly seat political equation)

बीजेपी में सोलन मंडल की ओर से मौजूदा समय में सलोगड़ा से बीडीसी सदस्य नेहा कश्यप, 2012 की प्रत्याशी कुमारी शीला का नाम बतौर महिला उम्मीदवार आगे भेजा गया है. वहीं, पुरुषों में साल 2017 के प्रत्याशी राजेश कश्यप, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य तरसेम भारती और जिला महामंत्री नन्दराम कश्यप (Nandram Kashyap) का नाम आगे भेजा गया है. लेकिन बीते दिनों जिस तरह से भाजपा हाईकमान ने मतदान 'कार्यकर्ता रायशुमारी' के जरिये प्रत्याशियों के नाम आगे मांगे, उसमें नेहा कश्यप का नाम चर्चा का विषय बना. सूत्रों से जानकारी मिली है कि कार्यकर्ता रायशुमारी में सबसे ज्यादा मत नेहा कश्यप को ही मिले.

Solan Sadar assembly seat
सोलन सदर सीट का हाल

परिवारवाद से हटकर टिकट दी तो BJP पलट सकती है चुनावी नतीजे: सोलन सदर सीट को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ ठाकुर ज्ञान सुमन का कहना है कि अगर भाजपा साल 2017 की तरह 2022 में भी पैराशूटी उम्मीदवार को सोलन में उतारती है, तो जीत के आसार कम हो जाएंगे. लेकिन जिस तरह लोग सोलन सीट पर परिवारवाद की राजनीति से खफा हैं, उसका फायदा भाजपा को तब मिल सकता है अगर राजेश कश्यप के अलावा किसी और को चुनावी मैदान में उतारा जाए.

Solan Sadar assembly seat
सोलन सदर सीट का हाल

राजनीतिक विशेषज्ञ ठाकुर ज्ञान सुमन का कहना है कि जिस तरह से भाजपा खेमे में चर्चा है कि सलोगड़ा वार्ड से बीडीसी सदस्य नेहा कश्यप को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है. उसका एक तरीके से फायदा भाजपा को मिल सकता है, एक तो जहां युवा और एक बुजुर्ग में टक्कर होगी. वहीं, पंचायत प्रतिनिधियों का साथ भी नेहा कश्यप को मिल सकता है.

सोलन विधानसभा सीट पर कांग्रेस का रहा है वर्चस्व: आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सबसे ज्यादा सोलन विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. सोलन विधानसभा क्षेत्र में साल 1977 के बाद से अबतक हुए 10 विधानसभा चुनाव में चार बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी को जीत मिली है. आंकड़े बताते हैं कि यहां की जनता किसी पार्टी विशेष के बजाय क्षेत्रीय व्यक्तित्व पर भरोसा जताती है. यही कारण है कि यहां पर कोई भी नेता दो बार से ज्यादा अपनी सीट नहीं बचा पाया है. चाहे वो भाजपा के राजीव बिंदल हों या फिर कांग्रेस की कृष्णा मोहिनी. वर्तमान में सोलन सदर सीट पर कांग्रेस विधायक धनीराम शांडिल का कब्जा है. सेना से राजनीति में शामिल हुए धनीराम शांडिल कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. धनीराम को कांग्रेस के कद्दावर दलित नेताओं में से एक माना जाता है.

Solan Sadar assembly seat
संभावित बीजेपी प्रत्याशी (राजेश कश्यप, तरसेम भारती, नंदराम कश्यप)

पढ़ें- HP में UK वाली पॉलिटिकल ट्रिक: प्रत्याशियों के चयन के लिए BJP ने कार्यकर्ताओं से करवाया मतदान, दिल्ली पहुंची 'रायशुमारी' मतपेटियां

सोलन सदर सीट का सियासी सफर: साल 1977 में जनता पार्टी से गौरीशंकर ने सोलन सदर सीट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई थी. उसके बाद साल 1982 में भाजपा के उम्मीदवार रामानंद ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. साल 1985 में ज्ञानचंद टूटू ने कांग्रेस की टिकट लेकर चुनाव जीता. उसके बाद साल 1990 में बीजेपी के महेंद्र नाथ सोफत ने सोलन सीट जीती. साल 1993 और 1998 में दो बार लगातार मेजर कृषणा मोहिनी ने कांग्रेस की टिकट पर यहां चुनाव जीता.

Solan Sadar assembly seat
संभावित बीजेपी उम्मीदवार ( नेहा कश्यप, कुमारी शीला)

साल 1998 में हुए चुनाव में कृष्णा मोहिनी ने बीजेपी के प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत को 26 मतों से हराया था, जिसको लेकर सोफत ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसके बाद फरवरी 2000 में विधानसभा का उपचुनाव घोषित हुआ, जिसमें सोफत का टिकट कटा और डॉ राजीव बिंदल ने उस उपचुनाव में जीत हासिल की. बाद साल 2003 और साल 2007 में भाजपा की टिकट पर डॉ. राजीव बिंदल ने चुनाव लड़कर इस सीट पर कब्जा किया. उसके बाद साल 2012 और 2017 में हुए चुनाव में कर्नल धनीराम शांडिल ने जीत हासिल की और अभी वे मौजूदा विधायक है.

कितने वोट से जीते विधायक: साल 1977 के चुनाव में गौरी शंकर ने जनता पार्टी से चुनाव लड़कर 4,613 वोटों के अंतर से निर्दलीय प्रत्याशी ईश्वर सिंह को हराया था. साल 1982 में भाजपा प्रत्याशी रामानन्द ने 2,816 वोटों के अंतर से निर्दलीय गुरुदत्त को हराया था. साल 1985 में कांग्रेस प्रत्याशी ज्ञान चंद टूटू ने 10,122 वोटों के अंतर से भाजपा प्रत्याशी रामानन्द को हराया था. साल 1990 में भाजपा प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत 2,735 वोटों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी ज्ञान चंद टूटू को हराया था.

पढ़ें- हिमाचल में सत्ता के द्वार खोलता है कांगड़ा, मंडी और शिमला से भी बनते हैं समीकरण

साल 1993 में कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी ने 11,594 वोटों के अंतर से भाजपा के महेंद्र नाथ को हराया था. साल 1998 में एक बार फिर कृष्णा मोहिनी ने 26 वोटो के अंतर से भाजपा के महेंद्र नाथ को हराया, किन्ही कारणों से 2000 में उपचुनाव हुआ, जिसमें भाजपा प्रत्याशी डॉ राजीव बिंदल ने कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी को 3000 से अधिक वोटों से हराया था. साल 2003 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजीव बिंदल ने 1,359 वोटों के अंतर से निर्दलीय चुनाव में उतरे महेंद्र नाथ सोफत को हराया था. साल 2007 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजीव बिंदल ने 3716 वोटो के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी कैलाश पराशर को हराया. साल 2012 में कर्नल धनीराम शांडिल चुनावी रण में उतरे. उन्होंने 4,472 वोटों के अंतर से बीजेपी प्रत्याशी कुमारी शीला को हराया. एक बार फिर 2017 में शांडिल चुनाव में उतरे और उन्होंने अपने ही दामाद बीजेपी प्रत्याशी राजेश कश्यप को 671 वोटों से हराया था.

क्या है कार्यकर्ता रायशुमारी फॉर्मूला: चुनावी तारीखों के ऐलान साथ ही भाजपा ने उतराखंड के 'कार्यकर्ता रायशुमारी' फार्मूले को हिमाचल में लागू कर दिया है. मिशन रिपीट के लिए भाजपा ने पड़ोसी राज्य में अपनाया सियासी टोटका हिमाचल में भी आजमाया है. पार्टी ने प्रदेशभर के विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों के चयन के लिए पदाधिकारियों से वोटिंग करवाई. रायशुमारी के इस फार्मूले के तहत भाजपा ने चारों संसदीय क्षेत्र में मुख्यालय स्तर पर संगठनात्मक जिलों की बैठकों को आयोजन किया.

सोलन: हिमाचल प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां तेज हैं. कांग्रेस और भाजपा के संभावित उम्मीदवार अपनी अपनी फिल्डिंग तैयार करने में जुटे हैं. अगर बात सोलन सदर सीट की करें तो यहां एक बार भाजपा साल 2017 में हुए विधानसभा चुनावों की तरह ही पैराशूट उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है. बीते दिनों भाजपा हाई कमान ने मंडल और मोर्चों के पदाधिकारियों से 'कार्यकर्ता रायशुमारी' फॉर्मूले के तहत प्रत्याशियों के चयन के लिए पदाधिकारियों से वोटिंग करवाई. ऐसे में सोलन सदर सीट का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से तय हो चुका है कि सीटिंग विधायक कर्नल (सेवानिवृत्त) धनीराम शांडिल ही विधानसभा चुनाव 2022 लड़ने वाले हैं. (solan sadar assembly seat political equation)

बीजेपी में सोलन मंडल की ओर से मौजूदा समय में सलोगड़ा से बीडीसी सदस्य नेहा कश्यप, 2012 की प्रत्याशी कुमारी शीला का नाम बतौर महिला उम्मीदवार आगे भेजा गया है. वहीं, पुरुषों में साल 2017 के प्रत्याशी राजेश कश्यप, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य तरसेम भारती और जिला महामंत्री नन्दराम कश्यप (Nandram Kashyap) का नाम आगे भेजा गया है. लेकिन बीते दिनों जिस तरह से भाजपा हाईकमान ने मतदान 'कार्यकर्ता रायशुमारी' के जरिये प्रत्याशियों के नाम आगे मांगे, उसमें नेहा कश्यप का नाम चर्चा का विषय बना. सूत्रों से जानकारी मिली है कि कार्यकर्ता रायशुमारी में सबसे ज्यादा मत नेहा कश्यप को ही मिले.

Solan Sadar assembly seat
सोलन सदर सीट का हाल

परिवारवाद से हटकर टिकट दी तो BJP पलट सकती है चुनावी नतीजे: सोलन सदर सीट को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ ठाकुर ज्ञान सुमन का कहना है कि अगर भाजपा साल 2017 की तरह 2022 में भी पैराशूटी उम्मीदवार को सोलन में उतारती है, तो जीत के आसार कम हो जाएंगे. लेकिन जिस तरह लोग सोलन सीट पर परिवारवाद की राजनीति से खफा हैं, उसका फायदा भाजपा को तब मिल सकता है अगर राजेश कश्यप के अलावा किसी और को चुनावी मैदान में उतारा जाए.

Solan Sadar assembly seat
सोलन सदर सीट का हाल

राजनीतिक विशेषज्ञ ठाकुर ज्ञान सुमन का कहना है कि जिस तरह से भाजपा खेमे में चर्चा है कि सलोगड़ा वार्ड से बीडीसी सदस्य नेहा कश्यप को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है. उसका एक तरीके से फायदा भाजपा को मिल सकता है, एक तो जहां युवा और एक बुजुर्ग में टक्कर होगी. वहीं, पंचायत प्रतिनिधियों का साथ भी नेहा कश्यप को मिल सकता है.

सोलन विधानसभा सीट पर कांग्रेस का रहा है वर्चस्व: आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सबसे ज्यादा सोलन विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. सोलन विधानसभा क्षेत्र में साल 1977 के बाद से अबतक हुए 10 विधानसभा चुनाव में चार बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी को जीत मिली है. आंकड़े बताते हैं कि यहां की जनता किसी पार्टी विशेष के बजाय क्षेत्रीय व्यक्तित्व पर भरोसा जताती है. यही कारण है कि यहां पर कोई भी नेता दो बार से ज्यादा अपनी सीट नहीं बचा पाया है. चाहे वो भाजपा के राजीव बिंदल हों या फिर कांग्रेस की कृष्णा मोहिनी. वर्तमान में सोलन सदर सीट पर कांग्रेस विधायक धनीराम शांडिल का कब्जा है. सेना से राजनीति में शामिल हुए धनीराम शांडिल कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. धनीराम को कांग्रेस के कद्दावर दलित नेताओं में से एक माना जाता है.

Solan Sadar assembly seat
संभावित बीजेपी प्रत्याशी (राजेश कश्यप, तरसेम भारती, नंदराम कश्यप)

पढ़ें- HP में UK वाली पॉलिटिकल ट्रिक: प्रत्याशियों के चयन के लिए BJP ने कार्यकर्ताओं से करवाया मतदान, दिल्ली पहुंची 'रायशुमारी' मतपेटियां

सोलन सदर सीट का सियासी सफर: साल 1977 में जनता पार्टी से गौरीशंकर ने सोलन सदर सीट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई थी. उसके बाद साल 1982 में भाजपा के उम्मीदवार रामानंद ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. साल 1985 में ज्ञानचंद टूटू ने कांग्रेस की टिकट लेकर चुनाव जीता. उसके बाद साल 1990 में बीजेपी के महेंद्र नाथ सोफत ने सोलन सीट जीती. साल 1993 और 1998 में दो बार लगातार मेजर कृषणा मोहिनी ने कांग्रेस की टिकट पर यहां चुनाव जीता.

Solan Sadar assembly seat
संभावित बीजेपी उम्मीदवार ( नेहा कश्यप, कुमारी शीला)

साल 1998 में हुए चुनाव में कृष्णा मोहिनी ने बीजेपी के प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत को 26 मतों से हराया था, जिसको लेकर सोफत ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसके बाद फरवरी 2000 में विधानसभा का उपचुनाव घोषित हुआ, जिसमें सोफत का टिकट कटा और डॉ राजीव बिंदल ने उस उपचुनाव में जीत हासिल की. बाद साल 2003 और साल 2007 में भाजपा की टिकट पर डॉ. राजीव बिंदल ने चुनाव लड़कर इस सीट पर कब्जा किया. उसके बाद साल 2012 और 2017 में हुए चुनाव में कर्नल धनीराम शांडिल ने जीत हासिल की और अभी वे मौजूदा विधायक है.

कितने वोट से जीते विधायक: साल 1977 के चुनाव में गौरी शंकर ने जनता पार्टी से चुनाव लड़कर 4,613 वोटों के अंतर से निर्दलीय प्रत्याशी ईश्वर सिंह को हराया था. साल 1982 में भाजपा प्रत्याशी रामानन्द ने 2,816 वोटों के अंतर से निर्दलीय गुरुदत्त को हराया था. साल 1985 में कांग्रेस प्रत्याशी ज्ञान चंद टूटू ने 10,122 वोटों के अंतर से भाजपा प्रत्याशी रामानन्द को हराया था. साल 1990 में भाजपा प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत 2,735 वोटों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी ज्ञान चंद टूटू को हराया था.

पढ़ें- हिमाचल में सत्ता के द्वार खोलता है कांगड़ा, मंडी और शिमला से भी बनते हैं समीकरण

साल 1993 में कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी ने 11,594 वोटों के अंतर से भाजपा के महेंद्र नाथ को हराया था. साल 1998 में एक बार फिर कृष्णा मोहिनी ने 26 वोटो के अंतर से भाजपा के महेंद्र नाथ को हराया, किन्ही कारणों से 2000 में उपचुनाव हुआ, जिसमें भाजपा प्रत्याशी डॉ राजीव बिंदल ने कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी को 3000 से अधिक वोटों से हराया था. साल 2003 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजीव बिंदल ने 1,359 वोटों के अंतर से निर्दलीय चुनाव में उतरे महेंद्र नाथ सोफत को हराया था. साल 2007 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजीव बिंदल ने 3716 वोटो के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी कैलाश पराशर को हराया. साल 2012 में कर्नल धनीराम शांडिल चुनावी रण में उतरे. उन्होंने 4,472 वोटों के अंतर से बीजेपी प्रत्याशी कुमारी शीला को हराया. एक बार फिर 2017 में शांडिल चुनाव में उतरे और उन्होंने अपने ही दामाद बीजेपी प्रत्याशी राजेश कश्यप को 671 वोटों से हराया था.

क्या है कार्यकर्ता रायशुमारी फॉर्मूला: चुनावी तारीखों के ऐलान साथ ही भाजपा ने उतराखंड के 'कार्यकर्ता रायशुमारी' फार्मूले को हिमाचल में लागू कर दिया है. मिशन रिपीट के लिए भाजपा ने पड़ोसी राज्य में अपनाया सियासी टोटका हिमाचल में भी आजमाया है. पार्टी ने प्रदेशभर के विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों के चयन के लिए पदाधिकारियों से वोटिंग करवाई. रायशुमारी के इस फार्मूले के तहत भाजपा ने चारों संसदीय क्षेत्र में मुख्यालय स्तर पर संगठनात्मक जिलों की बैठकों को आयोजन किया.

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