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गांधी जी की 73वीं पुण्यतिथि: बापू के इस मंदिर को सरकार की नजरे इनायत की जरूरत

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद साल 1951-52 में देश भर में गांधी जी के मंदिर बनाने की मुहिम शुरू हुई. इस मुहिम के तहत जिला सिरमौर के अंबोया गांव में गांधी जी का मंदिर बनाया गया. पूरे उत्तर भारत में अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह एक मात्र मंदिर है. इस गांव के लोग महात्मा गांधी की प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते हैं.

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बापू के इस मंदिर को सरकार की नजरे इनायत की जरूरत
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Published : Jan 30, 2021, 8:03 PM IST

पांवटाः 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से पूरा देश शोक में डूब गया. नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी. गोडसे ने बेहद करीब से गांधी जी की छाती पर तीन गोलियां मारी, जिससे राष्ट्रपिता का निधन हो गया.

1951-52 में गांधी मंदिर बनाने की मुहिम हुई शुरू

गोडसे गांधी जी को गोली मार उनकी सांस रोकने में तो सफल रहा, लेकिन गांधी जी केवल व्यक्ति ही नहीं बल्कि खुद में एक विशाल संस्था थे. यही वजह है कि उनके सोच और विचार आज तक जीवित हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद साल 1951-52 में देश भर में गांधी जी के मंदिर बनाने की मुहिम शुरू हुई.

वीडियो रिपोर्ट.

सिरमौर के अंबोया में राष्ट्रपिता का मंदिर

इस मुहिम के तहत जिला सिरमौर के अंबोया गांव में गांधी जी का मंदिर बनाया गया. पूरे उत्तर भारत में अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह एक मात्र मंदिर है. इस गांव के लोग महात्मा गांधी की प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते हैं. महात्मा गांधी के मंदिर के आसपास रहने वाले लोग बापू को भगवान से कम नहीं मानते.

यही कारण है कि इस मंदिर में रोजाना गांधी जी की पूजा की जाती है. साल में 2 दिन विशेष रूप से गांधी जी को याद किया जाता है. पिछले कई दशकों से यहां इस दिन मेले का भी आयोजन होता है, लेकिन इस बार कोरोना की वजह से मेला आयोजित नहीं हो सका.

नेताओं से खफा ग्रामीण

अंबोया गांव के लोग प्रदेश के नेताओं से भी खासे खफा हैं. ग्रामीणों का मानना है कि नेता गांधीजी के नाम पर राजनीति तो करते हैं, लेकिन वह कभी इस मंदिर में नहीं आते. सरकार की अनदेखी के कारण मंदिर को पहचान नहीं मिल सकी है. गांव के लोग चाहते हैं कि यहां नेता और प्रशासनिक अधिकारी समय-समय पर आते रहें, ताकि इस मंदिर की ओर भी ध्यान दिया जा सके.

टीन का शेड डालकर हुई थी मंदिर की शुरुआत

अंबोया में बापू के इस मंदिर का निर्माण करने वाले मदन सेवल और जुगल किशोर सेवल बताते हैं कि उन्होंने टीन का शेड डालकर मंदिर का निर्माण किया था. उस समय इसे अस्थाई तौर पर बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे पक्का कर दिया गया.

देशभर में बनाए गए थे ढाई सौ मंदिर

उस समय इस मुहिम के तहत देशभर में करीब ढाई सौ मंदिर बनाए गए थे, लेकिन अनदेखी और सही तरह से देखरेख न होने के कारण समय के साथ मंदिरों का अस्तित्व खत्म होता चला गया. अब देश में कुछेक मंदिर ही बाकी रह गए हैं, जिनमें सिरमौर अंबोया मंदिर भी एक है. यहां के लोगों का कहना है कि यदि सरकार इसी तरह इस मंदिर के अनदेखी करती रही तो अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर का अस्तित्व ही खत्म होने का डर है.

हिमाचल निर्माता भी आते थे मंदिर

इस मंदिर में हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व शांता कुमार भी आ चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके मंदिर का अस्तित्व खतरे में है.

राष्ट्रपिता को सच्चे सम्मान की दरकार

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद में बना यह मंदिर इंतजार में है कि सरकार और प्रशासन इस मंदिर कि ओर आंख इनायत करे और इसे भी वह पहचान मिल सके जिसका यह हकदार है.

इस बात पर भी विचार करने की है कि क्या हम सिर्फ गांधी जी को खानापूर्ति के लिए ही सम्मान देंगे या उनसे जुड़ी चीजों को संजोकर उनका सच्चा सम्मान भी करेंगे. आज हमें जरुरत है कि हम बापू के जीवन को आत्मसार करें और उनसे जुड़ी चीजों को संजोकर राष्ट्रपिता को सच्चा सम्मान दें.

ये भी पढ़ेंः आजादी से पहले दस बार शिमला आए थे बापू, यहीं चला था उनकी हत्या का मुकदमा

पांवटाः 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से पूरा देश शोक में डूब गया. नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी. गोडसे ने बेहद करीब से गांधी जी की छाती पर तीन गोलियां मारी, जिससे राष्ट्रपिता का निधन हो गया.

1951-52 में गांधी मंदिर बनाने की मुहिम हुई शुरू

गोडसे गांधी जी को गोली मार उनकी सांस रोकने में तो सफल रहा, लेकिन गांधी जी केवल व्यक्ति ही नहीं बल्कि खुद में एक विशाल संस्था थे. यही वजह है कि उनके सोच और विचार आज तक जीवित हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद साल 1951-52 में देश भर में गांधी जी के मंदिर बनाने की मुहिम शुरू हुई.

वीडियो रिपोर्ट.

सिरमौर के अंबोया में राष्ट्रपिता का मंदिर

इस मुहिम के तहत जिला सिरमौर के अंबोया गांव में गांधी जी का मंदिर बनाया गया. पूरे उत्तर भारत में अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह एक मात्र मंदिर है. इस गांव के लोग महात्मा गांधी की प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते हैं. महात्मा गांधी के मंदिर के आसपास रहने वाले लोग बापू को भगवान से कम नहीं मानते.

यही कारण है कि इस मंदिर में रोजाना गांधी जी की पूजा की जाती है. साल में 2 दिन विशेष रूप से गांधी जी को याद किया जाता है. पिछले कई दशकों से यहां इस दिन मेले का भी आयोजन होता है, लेकिन इस बार कोरोना की वजह से मेला आयोजित नहीं हो सका.

नेताओं से खफा ग्रामीण

अंबोया गांव के लोग प्रदेश के नेताओं से भी खासे खफा हैं. ग्रामीणों का मानना है कि नेता गांधीजी के नाम पर राजनीति तो करते हैं, लेकिन वह कभी इस मंदिर में नहीं आते. सरकार की अनदेखी के कारण मंदिर को पहचान नहीं मिल सकी है. गांव के लोग चाहते हैं कि यहां नेता और प्रशासनिक अधिकारी समय-समय पर आते रहें, ताकि इस मंदिर की ओर भी ध्यान दिया जा सके.

टीन का शेड डालकर हुई थी मंदिर की शुरुआत

अंबोया में बापू के इस मंदिर का निर्माण करने वाले मदन सेवल और जुगल किशोर सेवल बताते हैं कि उन्होंने टीन का शेड डालकर मंदिर का निर्माण किया था. उस समय इसे अस्थाई तौर पर बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे पक्का कर दिया गया.

देशभर में बनाए गए थे ढाई सौ मंदिर

उस समय इस मुहिम के तहत देशभर में करीब ढाई सौ मंदिर बनाए गए थे, लेकिन अनदेखी और सही तरह से देखरेख न होने के कारण समय के साथ मंदिरों का अस्तित्व खत्म होता चला गया. अब देश में कुछेक मंदिर ही बाकी रह गए हैं, जिनमें सिरमौर अंबोया मंदिर भी एक है. यहां के लोगों का कहना है कि यदि सरकार इसी तरह इस मंदिर के अनदेखी करती रही तो अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर का अस्तित्व ही खत्म होने का डर है.

हिमाचल निर्माता भी आते थे मंदिर

इस मंदिर में हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व शांता कुमार भी आ चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके मंदिर का अस्तित्व खतरे में है.

राष्ट्रपिता को सच्चे सम्मान की दरकार

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद में बना यह मंदिर इंतजार में है कि सरकार और प्रशासन इस मंदिर कि ओर आंख इनायत करे और इसे भी वह पहचान मिल सके जिसका यह हकदार है.

इस बात पर भी विचार करने की है कि क्या हम सिर्फ गांधी जी को खानापूर्ति के लिए ही सम्मान देंगे या उनसे जुड़ी चीजों को संजोकर उनका सच्चा सम्मान भी करेंगे. आज हमें जरुरत है कि हम बापू के जीवन को आत्मसार करें और उनसे जुड़ी चीजों को संजोकर राष्ट्रपिता को सच्चा सम्मान दें.

ये भी पढ़ेंः आजादी से पहले दस बार शिमला आए थे बापू, यहीं चला था उनकी हत्या का मुकदमा

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