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पंजाब के पटियाला से दबोचा गया उद्घोषित अपराधी, पांच साल से था फरार

सिरमौर पुलिस ने पशु तस्करी के मामले में एक उद्घोषित अपराधी को पांच साल बाद पंजाब के पटियाला से गिरफ्तार किया है. आरोपी की पहचान सुरेंद्र सिंह निवासी राजपुरा के रूप में हुई है.

पुलिस की गिरफ्त में आरोपी
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Published : Mar 15, 2019, 5:42 PM IST

नाहन: सिरमौर पुलिस ने पशु तस्करी के मामले में एक उद्घोषित अपराधी को पांच साल बाद पंजाब के पटियाला से गिरफ्तार किया है. आरोपी की पहचान सुरेंद्र सिंह निवासी राजपुरा के रूप में हुई है.

दरअसल भगोड़ा अपराधी सुरेंद्र सिंह निवासी राजपुरा पशु तस्करी के मामले में पांच साल से फरार चल रहा था. 16 सितंबर 2014 में आरोपी के खिलाफ पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसके बाद आरोपी को अदालत से भगोड़ा घोषित किया था. हालांकि पुलिस द्वारा भगोड़े आरोपी सुरेंद्र सिंह को पकड़ने के लिए अभियान चलाया, लेकिन सफलता नहीं मिली.

police arrested accusted in nahan
पुलिस की गिरफ्त में आरोपी

एसपी सिरमौर अजय कृष्ण शर्मा ने बताया कि पीओ सेल ने पांच साल से फरार चल रहे उद्घोषित अपराधी को पंजाब के पटियाला से गिरफ्तार किया है और आगे की कार्रवाई की जा रही है.

नाहन: सिरमौर पुलिस ने पशु तस्करी के मामले में एक उद्घोषित अपराधी को पांच साल बाद पंजाब के पटियाला से गिरफ्तार किया है. आरोपी की पहचान सुरेंद्र सिंह निवासी राजपुरा के रूप में हुई है.

दरअसल भगोड़ा अपराधी सुरेंद्र सिंह निवासी राजपुरा पशु तस्करी के मामले में पांच साल से फरार चल रहा था. 16 सितंबर 2014 में आरोपी के खिलाफ पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसके बाद आरोपी को अदालत से भगोड़ा घोषित किया था. हालांकि पुलिस द्वारा भगोड़े आरोपी सुरेंद्र सिंह को पकड़ने के लिए अभियान चलाया, लेकिन सफलता नहीं मिली.

police arrested accusted in nahan
पुलिस की गिरफ्त में आरोपी

एसपी सिरमौर अजय कृष्ण शर्मा ने बताया कि पीओ सेल ने पांच साल से फरार चल रहे उद्घोषित अपराधी को पंजाब के पटियाला से गिरफ्तार किया है और आगे की कार्रवाई की जा रही है.

मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से जाना जाता है शांघड़ मैदान
इस मैदान में चलती है देवता शंगचुल की बादशाहत
कुल्लू
अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध सैंज घाटी का शांघड़ मैदान को देखने के लिए देश व विदेश से हजारो पर्यटक आते है। लगभग 228 बीघा में फैले इस मैदान को कुल्लू जिला का खज्जियार या भारत का दूसरा मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। सुंदरता में यह स्थान मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर चंबा जिला के खज्जियार से कम नहीं है। इस मैदान को देखने के लिए कई स्कूलों, कॉलेजों व अन्य संस्थानों के विद्यार्थी आते हैं, लेकिन मैदान में किसी प्रकार की अपवित्रता न फैले, इसके लिए शंगचुल महादेव मंदिर कमेटी ने कायदे-कानून भी बनाए हैं। अगर यहां आने वाले इनकी पालना नहीं करते तो उन्हें जुर्माने या कानूनी कार्रवाई तक भुगतनी पड़ सकती है।  गौर रहे कि ये मैदान यहां के स्थानीय देवता शंगचुल महादेव का आवास स्थल है। इस मैदान पर देवता के आदेशों की पालना नहीं होने पर स्थानीय लोगों को इसके कोपभाजन का शिकार होना पड़ता है। यूं तो मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क निकाली गई है, लेकिन मैदान तक वाहन लाने की सख्त मनाही है। साथ ही मैदान में गंदगी फैलाने, शराब पीकर आने व पुलिस और वन विभाग के कर्मचारियों के पेटी और टोपी पहनकर आने की भी मनाही है। देवता के कार-कारिंदों का कहना है कि देवता ने इस तरह का फैसला खुद ही लिया गया है, वे तो सिर्फ इसकी पालना करते रहे हैं। इसके लिए मंदिर कमेटी की ओर से बोर्ड भी टांग दिया गया है। मैदान में हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में चेतावनी को बोर्ड पर साफ लिखा गया है। विदेशी पर्यटकों को भी इसके बारे में सख्त निर्देश दिए गए है। वही, कहा जाता है कि शांघड़ मैदान का इतिहास पांडवों के जीवन काल से जुड़ा है। जनश्रुति के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय शांघड़ में भी बिताया। इस दौरान उन्होंने यहां धान की खेती के लिए मिट्टी छानकर खेत तैयार किए। वे खेत आज भी विशाल शांघड़ मैदान के रूप में यथावत हैं। इस मैदान की खासियत ये है कि मैदान में सिर्फ हरियाली ही हारियाली है। 228 बीघा में एक भी कंकड़-पत्थर नहीं है। शांघड़ पंचायत विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्र में होने के कारण भी प्रसिद्ध है। जगल की रखवाली करने वाले वन विभाग के कर्मचारियों व पुलिस महकमे के कर्मचारियों को अपनी टोपी व पेटी उतारकर मैदान से होकर जाना पड़ता है। यही नहीं, यहां पर घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही है। यदि किसी का घोड़ा शंगचुल देवता के निजी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसके मालिक को जुर्माना देना पड़ता है या फिर देवता कमेटी की ओर से उस पर कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाती है। शगचुल महादेव के पुजारी ओम प्रकाश, कुलदीप शर्मा व रूपेंद्र राणा का कहना है कि देवता के पास कई ऐसे स्थान हैं, जहां केवल देवता के कुछेक कार-कारिंदे ही जाते हैं। यहां तक कि स्थानीय लोगों का प्रवेश भी यहां पर वर्जित है।
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देश-विदेश के पर्यटकों के लिए शांत सैरगाह के रूप में शांघड़ को जाना जाता है। यहां की एकांत स्थली को कई शोधार्थियों ने अपने शोध के लिए चुना है। कुल्लू से 58 किलोमीटर की दूरी पर बसा शांघड़ गांव सैंज घाटी के अंतिम छोर पर है। एक हजार से अधिक आबादी वाले शांघड़ को भी अपने मैदान से पहचान मिली है। यही नहीं, सैंज घाटी के लिए शांघड़ से पर्यटन के नए आयाम स्थापित हुए हैं।
गर्मियों के दिनों में यहां अधिक संख्या में पर्यटक आते हैं, जिससे यहां का पर्यटन कारोबार भी चरम पर पहुंच जाता है। देवता की पूरी जमीन का आधा हिस्सा ऐसा है जो ब्राह्मण, पुजारी, मुजारों, बजंतरी व गुर सहित अन्य देव कारकूनों को दिया गया है। वहीं, आधा हिस्सा गौ चारे के रूप में खाली रखा गया है।
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228 बीघा जमीन पर चलता है शंगचुल देवता का कानून, यहां आने वाले पुलिसवालों को भी उतारनी पड़ती है 'वर्दी'
8 months ago
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कुल्लू। अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध शांघड़ मैदान को देखने के लिए देश व विदेश से पर्यटक आते हैं। लगभग 228 बीघा में फैले इस मैदान को कुल्लू जिला का खज्जियार या भारत का दूसरा मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जा सकता है।

शांघड़ मैदान (फाइल फोटो)।


प्राकृतिक सुंदरता में यह स्थान मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर चंबा जिला के खज्जियार से कम नहीं है। इस मैदान को देखने के लिए कई स्कूलों, कॉलेजों व अन्य संस्थानों के विद्यार्थी आते हैं, लेकिन मैदान में किसी प्रकार की अपवित्रता न फैले, इसके लिए शंगचुल महादेव मंदिर कमेटी ने कायदे-कानून भी बनाए हैं। अगर यहां आने वाले इनकी पालना नहीं करते तो उन्हें जुर्माने या कानूनी कार्रवाई तक भुगतनी पड़ सकती है। 

बता दें ये मैदान यहां के स्थानीय देवता शंगचुल महादेव का आवास स्थल है। इस मैदान पर देवता के आदेशों की पालना नहीं होने पर स्थानीय लोगों को इसके कोपभाजन का शिकार होना पड़ता है। यूं तो मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क निकाली गई है, लेकिन मैदान तक वाहन लाने की सख्त मनाही है। साथ ही मैदान में गंदगी फैलाने, शराब पीकर आने व पुलिस और वन विभाग के कर्मचारियों के पेटी और टोपी पहनकर आने की भी मनाही है। 

पढ़ें- अब विदेश में भी मिलेगी कुल्लवी टोपी, सैकड़ों हस्तशिल्प कारीगरों की आय होगी दोगुनी 
देवता के कार-कारिंदों का कहना है कि देवता ने इस तरह का फैसला खुद ही लिया गया है, वे तो सिर्फ इसकी पालना करते रहे हैं। इसके लिए मंदिर कमेटी की ओर से बोर्ड भी टांग दिया गया है। मैदान में हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में चेतावनी को बोर्ड पर साफ लिखा गया है। विदेशी पर्यटकों को भी इसके बारे में सख्त निर्देश दिए गए हैं।
शांघड़ मैदान (फाइल फोटो)

कहा जाता है कि शांघड़ मैदान का इतिहास पांडवों के जीवन काल से जुड़ा है। जनश्रुति के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय शांघड़ में भी बिताया। इस दौरान उन्होंने यहां धान की खेती के लिए मिट्टी छानकर खेत तैयार किए। वे खेत आज भी विशाल शांघड़ मैदान के रूप में यथावत हैं। इस मैदान की खासियत ये है कि मैदान में सिर्फ हरियाली ही हारियाली है। 228 बीघा में एक भी कंकड़-पत्थर नहीं है। शांघड़ पंचायत विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्र में होने के कारण भी प्रसिद्ध है।
पढ़ें- 12 हजार फीट की इस चोटी पर उमड़ा आस्था का सैलाब, शिरगुल महाराज पूरी करते हैं हर मनोकामना! 
जंगल की रखवाली करने वाले वन विभाग के कर्मचारियों व पुलिस महकमे के कर्मचारियों को अपनी टोपी व पेटी उतारकर मैदान से होकर जाना पड़ता है। यही नहीं, यहां पर घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही है। यदि किसी का घोड़ा शंगचुल देवता के निजी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसके मालिक को जुर्माना देना पड़ता है या फिर देवता कमेटी की ओर से उस पर कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाती है। 

शंगचुल महादेव के पुजारी ओम प्रकाश, कुलदीप शर्मा व रूपेंद्र राणा का कहना है कि देवता के पास कई ऐसे स्थान हैं, जहां केवल देवता के कुछेक कार-कारिंदे ही जाते हैं। यहां तक कि स्थानीय लोगों का प्रवेश भी यहां पर वर्जित है।
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देश-विदेश के पर्यटकों के लिए शांत सैरगाह के रूप में शांघड़ को जाना जाता है। यहां की एकांत स्थली को कई शोधार्थियों ने अपने शोध के लिए चुना है। कुल्लू से 58 किलोमीटर की दूरी पर बसा शांघड़ गांव सैंज घाटी के अंतिम छोर पर है। एक हजार से अधिक आबादी वाले शांघड़ को भी अपने मैदान से पहचान मिली है। यही नहीं, सैंज घाटी के लिए शांघड़ से पर्यटन के नए आयाम स्थापित हुए हैं।
गर्मियों के दिनों में यहां अधिक संख्या में पर्यटक आते हैं, जिससे यहां का पर्यटन कारोबार भी चरम पर पहुंच जाता है। देवता की पूरी जमीन का आधा हिस्सा ऐसा है जो ब्राह्मण, पुजारी, मुजारों, बजंतरी व गुर सहित अन्य देव कारकूनों को दिया गया है। वहीं, आधा हिस्सा गौ चारे के रूप में खाली रखा गया है।

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