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नरोत्तम सिंह की 'उत्तम' पहल, प्राकृतिक खेती से कमा रहा मोटा मुनाफा

नाहन के किसान नरोत्तम सिंह ने प्राकृतिक खेती की तरफ कदम बढ़ाकर अपनाकर परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ अपनी आय में बढ़ोतरी करके आर्थिकि में सुधार किया है. प्राकृतिक विधि से खेती करने पर विभिन्न फसलों की पैदावार में भी अंतर देखने को मिला है.

profits from natural farming
प्राकृतिक खेती से कमा रहा मोटा मुनाफा.
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Published : Feb 27, 2020, 10:42 AM IST

नाहन: देवभूमि हिमाचल के किसान दिन-प्रतिदिन प्राकृतिक खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. इसके चलते जिला सिरमौर के एक किसान नरोत्तम सिंह ने भी 'सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती' अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है.

नरोत्तम सिंह उपमंडल नाहन की मात्तर पंचायत के डाकरावाला गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने 'सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती' की जीवामृत व घनजीवामृत विधि को अपनाकर कृषि की गुणवत्ता में अच्छी बढ़ोतरी की है. इसके साथ ही नरोत्तम ने मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करके अपनी आर्थिकी को भी सुदृढ़ किया है.

वीडियो रिपोर्ट.

बता दें कि कि नरोत्तम सिंह ने कृषि विभाग की ओर से कुफरी में प्राकृतिक खेती पर आयोजित शिविर में प्रशिक्षण हासिल किया था. इस दौरान उन्होंने जीवामृत घोल, सूखा घनजीवामृत व बीजामृत आदि बनाने की विधि और खेती में प्रयोग होने वाली सामग्री की जानकारी हासिल की. प्रशिक्षण के बाद नरोत्तम सिंह ने अपने खेतों में रसायनों का प्रयोग छोड़कर प्राकृतिक विधि से कृषि करने का निर्णय लिया.

कैसे शुरू की प्राकृतिक खेती

नरोत्तम सिंह ने अपनी 7 बीघा जमीन में से 5 बीघा जमीन पर धान, गेहूं, लहसुन, मटर, मक्की और विभिन्न सब्जियों में कचालू, भिंडी, घीया, कद्दू, खीरा और मिर्च की प्राकृतिक खेती करना शुरू किया. प्राकृतिक विधि से खेती करने के बाद नरोत्तम सिंह ने महसूस किया कि जीवामृत और घन जीवामृत के प्रयोग से मिट्टी की गुणवत्ता और पानी की क्षमता को बनाए रखने में काफी सुधार हुआ है.

इसके साथ ही मिट्टी में देसी केंचुओं की मात्रा बढ़ी गई है. इससे मिट्टी अधिक उपजाऊ होने लगी है और जीवामृत, बीजामृत व घनजीवामृत बनाने से कम पैसों में अधिक खेती करना संभव हो रहा है. वहीं, प्राकृतिक खेती से नरोत्तम सिंह ने अपने खेतों की विभिन्न फसलों की पैदावार में भी अंतर देखा है.

अलग-अलग फसलों की पैदावार में देखने को मिला अंतर

नरोत्तम सिंह का कहना है कि प्रभावी ढंग से प्राकृतिक खेती करने पर अलग-अलग फसलों की पैदावार में भी अंतर देखने को मिला है. उन्होंने कहा पहले रसानिक खेती से 1.5 बीघा जमीन पर 5 क्विंटल धान की फसल प्राप्त होती थी और प्राकृतिक खेती के बाद 1.5 बीघा जमीन पर 5.5 क्विंटल धान की फसल प्राप्त हो रही है. वही 0.4 बीघा जमीन में मक्की की फसल 1 क्विंटल से बढ़कर 1.20 क्विंटल हो गई है और अन्य फसलों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है.

वहीं, नरोत्तम सिंह ने कहा कि उनका पूरा परिवार प्राकृतिक विधि से खेती करके अच्छी आमदनी कमा रहा है. उन्होंने बताया कि इस प्रकार खेती करने से उन्हें मौसमी फसलों से लगभग 80 से 90 हजार की आय प्राप्त हो रही है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए किसान नरोत्तम सिंह ने बताया कि परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सभी को प्राकृतिक खेती से जुड़ना चाहिए. इससे आय बढ़ने के साथ-साथ परिवार भी स्वस्थ रहेगा. उन्होंने अन्य किसानों से भी प्राकृतिक खेती को अपनाने की अपील की है.

वहीं, नरोत्तम सिंह के पिता रघुवीर सिंह ने बताया कि को सारा परिवार एक साथ प्राकृतिक खेती करने में लगा हुआ है और इससे उनके परिवार को अच्छी आमदनी हो रही है.

'सुभाष पालेकर खेती' अपनाने से एक ओर नरोत्तम सिंह जिले के साथ-साथ पूरे प्रदेश के लिए किसान प्रेरणा स्तोत्र बनकर उभरे है. वहीं, दूसरी ओर नरोत्तम सिंह ने अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत किया है.

ये भी पढ़ें:आधुनिक समय मे क्लाइमेट चेंज बड़ा मुद्दा: सीके मिश्रा

नाहन: देवभूमि हिमाचल के किसान दिन-प्रतिदिन प्राकृतिक खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. इसके चलते जिला सिरमौर के एक किसान नरोत्तम सिंह ने भी 'सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती' अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है.

नरोत्तम सिंह उपमंडल नाहन की मात्तर पंचायत के डाकरावाला गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने 'सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती' की जीवामृत व घनजीवामृत विधि को अपनाकर कृषि की गुणवत्ता में अच्छी बढ़ोतरी की है. इसके साथ ही नरोत्तम ने मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करके अपनी आर्थिकी को भी सुदृढ़ किया है.

वीडियो रिपोर्ट.

बता दें कि कि नरोत्तम सिंह ने कृषि विभाग की ओर से कुफरी में प्राकृतिक खेती पर आयोजित शिविर में प्रशिक्षण हासिल किया था. इस दौरान उन्होंने जीवामृत घोल, सूखा घनजीवामृत व बीजामृत आदि बनाने की विधि और खेती में प्रयोग होने वाली सामग्री की जानकारी हासिल की. प्रशिक्षण के बाद नरोत्तम सिंह ने अपने खेतों में रसायनों का प्रयोग छोड़कर प्राकृतिक विधि से कृषि करने का निर्णय लिया.

कैसे शुरू की प्राकृतिक खेती

नरोत्तम सिंह ने अपनी 7 बीघा जमीन में से 5 बीघा जमीन पर धान, गेहूं, लहसुन, मटर, मक्की और विभिन्न सब्जियों में कचालू, भिंडी, घीया, कद्दू, खीरा और मिर्च की प्राकृतिक खेती करना शुरू किया. प्राकृतिक विधि से खेती करने के बाद नरोत्तम सिंह ने महसूस किया कि जीवामृत और घन जीवामृत के प्रयोग से मिट्टी की गुणवत्ता और पानी की क्षमता को बनाए रखने में काफी सुधार हुआ है.

इसके साथ ही मिट्टी में देसी केंचुओं की मात्रा बढ़ी गई है. इससे मिट्टी अधिक उपजाऊ होने लगी है और जीवामृत, बीजामृत व घनजीवामृत बनाने से कम पैसों में अधिक खेती करना संभव हो रहा है. वहीं, प्राकृतिक खेती से नरोत्तम सिंह ने अपने खेतों की विभिन्न फसलों की पैदावार में भी अंतर देखा है.

अलग-अलग फसलों की पैदावार में देखने को मिला अंतर

नरोत्तम सिंह का कहना है कि प्रभावी ढंग से प्राकृतिक खेती करने पर अलग-अलग फसलों की पैदावार में भी अंतर देखने को मिला है. उन्होंने कहा पहले रसानिक खेती से 1.5 बीघा जमीन पर 5 क्विंटल धान की फसल प्राप्त होती थी और प्राकृतिक खेती के बाद 1.5 बीघा जमीन पर 5.5 क्विंटल धान की फसल प्राप्त हो रही है. वही 0.4 बीघा जमीन में मक्की की फसल 1 क्विंटल से बढ़कर 1.20 क्विंटल हो गई है और अन्य फसलों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है.

वहीं, नरोत्तम सिंह ने कहा कि उनका पूरा परिवार प्राकृतिक विधि से खेती करके अच्छी आमदनी कमा रहा है. उन्होंने बताया कि इस प्रकार खेती करने से उन्हें मौसमी फसलों से लगभग 80 से 90 हजार की आय प्राप्त हो रही है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए किसान नरोत्तम सिंह ने बताया कि परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सभी को प्राकृतिक खेती से जुड़ना चाहिए. इससे आय बढ़ने के साथ-साथ परिवार भी स्वस्थ रहेगा. उन्होंने अन्य किसानों से भी प्राकृतिक खेती को अपनाने की अपील की है.

वहीं, नरोत्तम सिंह के पिता रघुवीर सिंह ने बताया कि को सारा परिवार एक साथ प्राकृतिक खेती करने में लगा हुआ है और इससे उनके परिवार को अच्छी आमदनी हो रही है.

'सुभाष पालेकर खेती' अपनाने से एक ओर नरोत्तम सिंह जिले के साथ-साथ पूरे प्रदेश के लिए किसान प्रेरणा स्तोत्र बनकर उभरे है. वहीं, दूसरी ओर नरोत्तम सिंह ने अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत किया है.

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