पांवटा साहिब: जिला सिरमौर के पांवटा साहिब का भव्य गुरुद्वारा लगभग साढ़े 400 सालों का इतिहास समेटे हुए है. विश्व प्रसिद्ध ये गुरुद्वारा श्री गुरु गोविंद सिंह के पांवटा साहिब में बिताए लगभग साढ़े 4 सौ साल के प्रवास का गवाह है. यही कारण है कि हिमाचल उत्तराखंड की सीमा पर स्थित यह गुरुद्वारा विश्व भर में श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र बन गया है.
पांवटा साहिब का यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा जितना भव्य एवं मनोरम है, उससे कहीं अधिक श्रद्धालुओं का दुखभंजन भी है. यहां हिमाचल ही नहीं बल्कि पूरे भारत और विश्वभर से श्रद्धालु गुरु महाराज के श्री चरणों में नतमस्तक होते हैं. गुरुद्वारे की भव्यता जितनी मनोरम है इसका इतिहास भी उतना ही रोचक है.
दरअसल नाहन के राजा मेदनी प्रकाश के आग्रह पर श्री गुरु गोविंद सिंह तत्कालीन नाहन रियासत पधारे थे. उस समय नाहन रियासत के यमुना किनारे लगते क्षेत्रों में मुगल घुसपैठियों का आतंक था. मुगलों की सेना कभी भी इन क्षेत्रों में आकर आक्रमण कर देती थी और लूटपाट मचाती थी. अपनी भव्य सेना के साथ नाहन पहुंचे श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने नाहन के राजा को मुगल आक्रमणकारियों से रक्षा का वचन दिया और अपने लिए एक उपयुक्त स्थान खोजने निकल पड़े.
नाहन रियासत के इस हरे भरे दून क्षेत्र में श्री गुरु महाराज का मन रम गया और उन्होंने अपने पांव यहीं टिका दिए. कई मील सफर तय करने के बाद यमुना किनारे दून क्षेत्र में श्री गुरु गोविंद सिंह जी के पांव टिकने के कारण इस जगह का नाम पांवटा पड़ा, जो आज पांवटा साहिब के नाम से प्रचलित है.
पांवटा साहिब में प्रवास के दौरान श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने दून क्षेत्र के भंगानी क्षेत्र में गोरखा आक्रमणकारियों के साथ पहला युद्ध लड़ा था. इस युद्ध में श्री गुरु गोविंद सिंह जी की सिख सेना ने आक्रमणकारियों पर आसानी से विजय हासिल की थी. इसी क्षेत्र में श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने विशालकाय आदमखोर शेर का शिकार भी किया था. शेर के साथ श्री गुरु गोविंद सिंह जी की आमने सामने टक्कर हुई थी. इस दौरान उन्होंने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए अपनी तलवार शेर के आर पार कर दी थी और शेर के आतंक से क्षेत्र के लोगों को निजात दिलाई थी.
यमुना किनारे जहां आज यह भव्य गुरुद्वारा स्थित है. यहीं पर श्री गुरु गोविंद सिंह ने अपनी सेना की छावनी स्थापित की थी. इसी जगह पर श्री गुरु गोविंद सिंह जी का भव्य कवि दरबार भी सजता था. श्री गुरु गोविंद सिंह का न सिर्फ एक परम ज्ञानी संत एवं अभिजीत योद्धा रहे बल्कि वह एक कुशल सेनानायक और बेहद निपुण कवि भी थे. उनके दरबार में 22 कवि थे. श्री गुरु गोविंद सिंह जी के कवि दरबार की विशेषता यह थी कि उनके कवि दरबार में न सिर्फ सिख और हिंदू बल्कि मुस्लिम कभी भी विराजमान रहते थे.
गुरु गोविंद सिंह जी ने मुस्लिम आक्रमणकारियों के अलावा कभी किसी के साथ जातीय व सांप्रदायिक भेदभाव नहीं किया. यही कारण था कि उनके दरबार में मुस्लिम कवियों को भी वहीं स्थान हासिल था जो सिख एवं हिंदू कवियों के पास था.
कहते हैं कि हर रोज शाम के वक्त यमुना दरिया के किनारे श्री गुरु गोविंद सिंह जी का कवि दरबार सजदा था. लेकिन यमुना के जल प्रवाह के शोर से कवियों को समस्या होती थी. एक बार कुछ कवियों ने श्री गुरु गोविंद सिंह जी से यमुना के कलरव की शिकायत की. इस पर श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने पवित्र यमुना से शांत होकर बहने की विनती की थी.
बताया जाता है कि यमुना जी ने श्री गुरु गोविंद सिंह जी की यह विनती स्वीकार की और तब से आज तक गुरुद्वारे के पास यमुना शांत भाव में बिना शोर किए अविरल बह रही है. भव्य गुरुद्वारा में तत्कालीन कवि दरबार का स्थान आज भी वही है.
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