शिमला: 60 वर्षों से हिमाचली लोकगीत को पहचान दिलवाती आवाज आज भी जब आकशवाणी से गूंजती है तो हर कोई इसे सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाता है. यही वजह है कि लोकगायिका बसंती देवी को हिमाचल की लता मंगेशकर भी कहा जाता है.
बसंती देवी ने मात्र 15 साल की उम्र से ही आकशवाणी पर अपनी आवाज का जादू बिखेरना शुरू कर दिया था. यह दौर आज भी जारी है. आज इनकी उम्र 78 साल की है, लेकिन आवाज में अभी भी वहीं जादू बरकरार है. उन्होंने न केवल प्रदेश में ही बल्कि देश के अलग-अलग कोने में हिमाचली संस्कृति को पेश किया है और एक अलग पहचान बनाई है.
लोकगायिका बसंती देवी ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह तक अपनी प्रस्तुतियां दी है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में बसंती देवी ने अपने सफर की शुरुआत के बारे में बताया. बसंती देवी ने कहा कि गाने के लिए उन्होंने किसी तरह की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. आसपास गांव में होने वाले मेलों या फिर शादियों से उन्होंने गाना सीखा और फिर यह सफर शुरू हुआ.
लोकगीत को गाने के साथ ही बसंती देवी उन्हें लिखती भी है. उनके ज्यादातर गीत हिमाचल की किसी ना किसी पौराणिक कहानी से ही प्रेरित है और उन्हीं से इन्हें अलग पहचान मिली है. बसंती देवी ने कहा कि उनका परिवार ही लोकसंगीत को समर्पित है. ऐसे में उन्हें परिवार का पूरा सहयोग मिला. लोकगीतों के साथ ही वह नृत्य भी करती हैं, जो उनकी प्रस्तुति को और खास बना देती है. हालांकि उन्हें अब इस बात का मलाल जरूर होता है कि तकनीक के इस युग में अब लोकगीतों को गाने का वह मजा नहीं है जो पहले के समय में ढोलक ओर खांजरी के साथ था.
लोकगायिका बसंती देवी ने कहा कि आज के समय में जब युवा पीढ़ी पर हिमाचली संस्कृति को संजोने की जिम्मेदारी है. ऐसे में युवा हिमाचली लोकगीतों में पश्चिमी सभ्यता का समावेश करना सही नहीं है. ऐसे में युवाओं को चाहिए कि वह हिमाचली लोकगीतों में पश्चिमी सभ्यता का समावेश ना करें और पहाड़ी संस्कृति का संरक्षण करें.
वहीं, महिलाओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति को बचाने के लिए महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. सरकार की ओर से पूरा सहयोग मिल रहा है. ऐसे में महिलाएं आगे आएं और अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाएं.
इन गीतों से मिली है बसंती देवी को पहचान
बसंती देवी को उनके गाए गीत 'रुंदी लागी चैंखिए रे हाटुअरी टीअर', 'राजुआ बोलू हेतूआ भइया', 'मनादासिये हो' जैसे गीतों से भी उन्हें पहचान मिली है.
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