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कश्मीर मुद्दे पर ट्रंप के बयान के बाद एक बार फिर क्यों चर्चा में है शिमला समझौता?

कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच इस विवाद और ट्रंप के बयान के दौरान एक और विषय चर्चा में है वो है शिमला समझौता. कश्मीर विवाद को लेकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ ट्रंप ने मुलाकात के दौरान कश्मीर का मुद्दा उठा था और इसके साथ एक बार फिर शिमला समझौता चर्चा में है.

trump and imran khan
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Published : Jul 24, 2019, 12:32 PM IST

शिमला: कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से मध्यस्थता का आग्रह करने से जुड़े अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दावे को लेकर बवाल मचा हुआ है. हालांकि भारत सरकार की ओर से अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दावे का खंडन किया गया है.

इस बीच कांग्रेस पूरी तरह से केंद्र सरकार पर हमलावर हो गई है. ट्रंप के बयान के बाद कांग्रेस लगातार इस बात पर अड़े हुए है कि प्रधानमंत्री खुद संसद में आकर अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ हुई चर्चा की जानकारी देश को दें.

सौजन्य राज्यसभा टीवी.

कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच इस विवाद और ट्रंप के बयान के दौरान एक और विषय चर्चा में है वो है शिमला समझौता. कश्मीर विवाद को लेकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ ट्रम्प ने मुलाकात के दौरान कश्मीर का मुद्दा उठा था और इसके साथ एक बार फिर शिमला समझौता चर्चा में है.

Shimla Agreement
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ पीएम मोदी.

क्या है शिमला समझौता?
आजाद भारत के इतिहास में वर्ष 1971 के भारत-पाक शिमला समझौते का अहम स्थान है. ऐतिहासिक शहर शिमला ब्रिटिश हुकूमत के समय भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी रही है. आजादी के बाद भी शिमला शहर का महत्व खूब बना रहा. इसका प्रमाण है शिमला समझौता.

वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांटने के दौरान भारत की पीएम आयरन लेडी इंदिरा गांधी थीं. उसके बाद पाकिस्तान के मुखिया जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला समझौता हुआ था. इस समझौते पर शिमला स्थित राजभवन में जिस टेबुल पर हस्ताक्षर हुए थे, वो आज भी लोगों की उत्सुकता का केंद्र है.

Shimla Agreement
राजभवन में रखी वो टेबल जिस पर शिमला समझौते के हस्ताक्षर हुए थे.

हिमाचल राजभवन की ईमारत का नाम बार्नेस कोर्ट है. बाद में इसे हिमाचल भवन भी कहा जाता था. अब ये राजभवन के नाम से जाना जाता है. यहीं पर इंदिरा व भुट्टो के बीच शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे.

वर्ष 1971 में युद्ध हार जाने के बाद जब पाक के मुखिया जुल्फिकार अली भुट्टो को अहसास हुआ कि अब उन्हें देश में भारी विरोध का सामना करना होगा, तो उन्होंने भारतीय पीएम इंदिरा गांधी के पास बातचीत व समझौते का संदेश भेजा.

भारत ने भी बात आगे बढ़ाई और वर्ष 1972 28 जून से 2 जुलाई के दरम्यान शिमला में शिखर वार्ता तय हुई. हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी 1971 को मिला था. डेढ़ ही साल बाद हिमाचल को ये गौरव हासिल हुआ कि उसकी जमीन पर ऐतिहासिक समझौता हुआ.

Shimla Agreement
शिमला समझौता.

दो जुलाई 1972 को बार्नेस कोर्ट शिमला में यह समझौता भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद हुए इस समझौते को दोनों देशों की संसदों में भी बहाल किया गया. इसी समझौते में तय किया था कि दोनों देश शांतिपूर्ण माध्यम से अपने मसलों का समाधान करेंगे. इस समधौते में तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं होने देने पर सहमति बनाई गई थी.

समझौते में यहां तक स्पष्ट किया गया था कि संयुक्त राष्ट्र संघ का भी दोनों देशों के मसलों खासकर कश्मीर मसले में हस्तक्षेप नहीं होगा. इसी समझौते में सीजफायर लाइन को लाइन ऑफ कंट्रोल में बदला गया.

इंदिरा ने खूब थी दिखाई भारत की ताकत
समझौते के लिए पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल अपने पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला पहुंचा. इंदिरा गांधी पहले से ही शिमला में थीं. शिमला में उस समय के मीडिया कर्मी प्रकाश चंद्र लोहुमी के पास शिमला समझौते की कई यादें हैं. वे मीडिया कवरेज के लिए शिमला में ही थे.

लोहुमी वरिष्ठ पत्रकार हैं. खैर, समझौते के लिए भारत ने पाकिस्तान के समक्ष कुछ शर्तें रखीं. पाकिस्तान को कुछ एतराज था, लेकिन इंदिरा गांधी यूं ही आयरन लेडी नहीं थी. उन्होंने पाकिस्तान को झुका ही दिया. युद्ध में करारी शिकस्त झेलने के बाद पाकिस्तान की समझौते के टेबुल पर ये दूसरी हार थी.

शिमला के वरिष्ठ पत्रकार पीसी लोहुमी व रविंद्र रणदेव (रणदेव का हाल ही में निधन हुआ) इस समझौते की कई बातें बताया करते थे. हुआ यूं कि समझौते से पहले बात बिगड़ गई थी. तय हुआ कि पाकिस्तान का प्रतिनिधिमंडल वापिस चला जाएगा, लेकिन इंदिरा की कूटनीति काम आई. वर्ष 1972 को दो जुलाई से पहले पाकिस्तान के लिए विदाई भोज रखा गया था.

Shimla Agreement
शिमला समझौता.

उम्मीद थी कि शायद कोई बात बन जाएगी, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वहां मौजूद मीडिया समेत अधिकांश अधिकारियों ने भी सामान समेट लिया था. पत्रकार प्रकाश चंद्र लोहुमी बताते हैं कि सब अपना सामान बांधकर वापस जाने की तैयारी में थे. अचानक उन्हें राजभवन से एक संदेश मिला.

रविवार रात के साढ़े नौ बजे थे. लोहुमी बताते हैं कि वे जब राजभवन पहुंचे तो सामने इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली बैठे थे. करीब एक घंटे की बातचीत में तय हुआ कि समझौता होगा और अभी होगा. आनन फानन में समझौते के कागज तैयार किए गए. ऐसा बताया जाता है कि रात को 12 बजकर 40 मिनट पर भारत-पाक के बीच शिमला समझौता हो गया.

समझौते के तुरंत बाद ही भारतीय पीएम इंदिरा गांधी वहां से खुद दस्तावेज लेकर चली गईं. इंदिरा गांधी उस समय मशोबरा के रिट्रीट में निवास कर रही थीं. रिट्रीट अब राष्ट्रपति निवास है. समझौते के बाद पस्त हो चुके भुट्टो हिमाचल भवन यानी अब के राजभवन में ही रहे. सुबह इंदिरा उनको विदाई देने हेलीपैड पहुंची, लेकिन कोई खास बात दोनों नेताओं में नहीं हुई.

शिमला: कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से मध्यस्थता का आग्रह करने से जुड़े अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दावे को लेकर बवाल मचा हुआ है. हालांकि भारत सरकार की ओर से अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दावे का खंडन किया गया है.

इस बीच कांग्रेस पूरी तरह से केंद्र सरकार पर हमलावर हो गई है. ट्रंप के बयान के बाद कांग्रेस लगातार इस बात पर अड़े हुए है कि प्रधानमंत्री खुद संसद में आकर अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ हुई चर्चा की जानकारी देश को दें.

सौजन्य राज्यसभा टीवी.

कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच इस विवाद और ट्रंप के बयान के दौरान एक और विषय चर्चा में है वो है शिमला समझौता. कश्मीर विवाद को लेकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ ट्रम्प ने मुलाकात के दौरान कश्मीर का मुद्दा उठा था और इसके साथ एक बार फिर शिमला समझौता चर्चा में है.

Shimla Agreement
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ पीएम मोदी.

क्या है शिमला समझौता?
आजाद भारत के इतिहास में वर्ष 1971 के भारत-पाक शिमला समझौते का अहम स्थान है. ऐतिहासिक शहर शिमला ब्रिटिश हुकूमत के समय भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी रही है. आजादी के बाद भी शिमला शहर का महत्व खूब बना रहा. इसका प्रमाण है शिमला समझौता.

वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांटने के दौरान भारत की पीएम आयरन लेडी इंदिरा गांधी थीं. उसके बाद पाकिस्तान के मुखिया जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला समझौता हुआ था. इस समझौते पर शिमला स्थित राजभवन में जिस टेबुल पर हस्ताक्षर हुए थे, वो आज भी लोगों की उत्सुकता का केंद्र है.

Shimla Agreement
राजभवन में रखी वो टेबल जिस पर शिमला समझौते के हस्ताक्षर हुए थे.

हिमाचल राजभवन की ईमारत का नाम बार्नेस कोर्ट है. बाद में इसे हिमाचल भवन भी कहा जाता था. अब ये राजभवन के नाम से जाना जाता है. यहीं पर इंदिरा व भुट्टो के बीच शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे.

वर्ष 1971 में युद्ध हार जाने के बाद जब पाक के मुखिया जुल्फिकार अली भुट्टो को अहसास हुआ कि अब उन्हें देश में भारी विरोध का सामना करना होगा, तो उन्होंने भारतीय पीएम इंदिरा गांधी के पास बातचीत व समझौते का संदेश भेजा.

भारत ने भी बात आगे बढ़ाई और वर्ष 1972 28 जून से 2 जुलाई के दरम्यान शिमला में शिखर वार्ता तय हुई. हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी 1971 को मिला था. डेढ़ ही साल बाद हिमाचल को ये गौरव हासिल हुआ कि उसकी जमीन पर ऐतिहासिक समझौता हुआ.

Shimla Agreement
शिमला समझौता.

दो जुलाई 1972 को बार्नेस कोर्ट शिमला में यह समझौता भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद हुए इस समझौते को दोनों देशों की संसदों में भी बहाल किया गया. इसी समझौते में तय किया था कि दोनों देश शांतिपूर्ण माध्यम से अपने मसलों का समाधान करेंगे. इस समधौते में तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं होने देने पर सहमति बनाई गई थी.

समझौते में यहां तक स्पष्ट किया गया था कि संयुक्त राष्ट्र संघ का भी दोनों देशों के मसलों खासकर कश्मीर मसले में हस्तक्षेप नहीं होगा. इसी समझौते में सीजफायर लाइन को लाइन ऑफ कंट्रोल में बदला गया.

इंदिरा ने खूब थी दिखाई भारत की ताकत
समझौते के लिए पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल अपने पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला पहुंचा. इंदिरा गांधी पहले से ही शिमला में थीं. शिमला में उस समय के मीडिया कर्मी प्रकाश चंद्र लोहुमी के पास शिमला समझौते की कई यादें हैं. वे मीडिया कवरेज के लिए शिमला में ही थे.

लोहुमी वरिष्ठ पत्रकार हैं. खैर, समझौते के लिए भारत ने पाकिस्तान के समक्ष कुछ शर्तें रखीं. पाकिस्तान को कुछ एतराज था, लेकिन इंदिरा गांधी यूं ही आयरन लेडी नहीं थी. उन्होंने पाकिस्तान को झुका ही दिया. युद्ध में करारी शिकस्त झेलने के बाद पाकिस्तान की समझौते के टेबुल पर ये दूसरी हार थी.

शिमला के वरिष्ठ पत्रकार पीसी लोहुमी व रविंद्र रणदेव (रणदेव का हाल ही में निधन हुआ) इस समझौते की कई बातें बताया करते थे. हुआ यूं कि समझौते से पहले बात बिगड़ गई थी. तय हुआ कि पाकिस्तान का प्रतिनिधिमंडल वापिस चला जाएगा, लेकिन इंदिरा की कूटनीति काम आई. वर्ष 1972 को दो जुलाई से पहले पाकिस्तान के लिए विदाई भोज रखा गया था.

Shimla Agreement
शिमला समझौता.

उम्मीद थी कि शायद कोई बात बन जाएगी, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वहां मौजूद मीडिया समेत अधिकांश अधिकारियों ने भी सामान समेट लिया था. पत्रकार प्रकाश चंद्र लोहुमी बताते हैं कि सब अपना सामान बांधकर वापस जाने की तैयारी में थे. अचानक उन्हें राजभवन से एक संदेश मिला.

रविवार रात के साढ़े नौ बजे थे. लोहुमी बताते हैं कि वे जब राजभवन पहुंचे तो सामने इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली बैठे थे. करीब एक घंटे की बातचीत में तय हुआ कि समझौता होगा और अभी होगा. आनन फानन में समझौते के कागज तैयार किए गए. ऐसा बताया जाता है कि रात को 12 बजकर 40 मिनट पर भारत-पाक के बीच शिमला समझौता हो गया.

समझौते के तुरंत बाद ही भारतीय पीएम इंदिरा गांधी वहां से खुद दस्तावेज लेकर चली गईं. इंदिरा गांधी उस समय मशोबरा के रिट्रीट में निवास कर रही थीं. रिट्रीट अब राष्ट्रपति निवास है. समझौते के बाद पस्त हो चुके भुट्टो हिमाचल भवन यानी अब के राजभवन में ही रहे. सुबह इंदिरा उनको विदाई देने हेलीपैड पहुंची, लेकिन कोई खास बात दोनों नेताओं में नहीं हुई.

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