शिमला: वर्ष 1975 को बुधवार का दिन था, जब पूर्व पीएम स्व. इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया. समय के उस दौर में बेशक इंटरनेट का नाम नहीं था, लेकिन ये समाचार जंगल की आग की तरह फैला कि देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है. तब कई बड़े नेताओं को जेल में ठूंसने का काम शुरू हुआ.
हिमाचल के कद्दावर नेता भी आपातकाल का विरोध करने पर गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए. हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले अभी चार ही साल का अरसा हुआ था. राजनीतिक रूप से चेतन हिमाचल प्रदेश में जगह-जगह आपातकाल का विरोध शुरू हो गया और साथ ही शुरू हुआ गिरफ्तारियों का सिलसिला.
शिमला में भी जारी था विरोध
विरोध प्रदर्शन का सिलसिला शिमला में भी जारी था. यहां शहर के मुख्य प्रदर्शन स्थल नाज पर एक सभा रखी गई. पूरे देश में चर्चित जेपी आंदोलन की प्रेरणा से उपजी लोक संघर्ष समिति के बैनर तले शिमला के नाज पर विरोध प्रदर्शन हो रहा था. हिमाचल में भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे राधारमण शास्त्री यहां 25 जून 1975 को भाषण दे रहे थे. महज 32 साल के शास्त्री का भाषण अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत में धाराप्रवाह भाषण देने में माहिर राधारमण शास्त्री उस समय महज 32 साल के जोशीले युवा थे.
अस्सी रुपये था बैंक बैलेंस
शास्त्री तो जेल चले गए, लेकिन उनके पीछे धर्मपत्नी के पास घर चलाने का संकट खड़ा हो गया. राधारमण शास्त्री याद करते हैं कि जब जेल गए तो जेब खाली और बैंक बैलेंस अस्सी रुपये था. फिर किस्मत की मेहरबानी हुई और इंश्योरेंस कंपनी के पास बकाया पड़ी कमीशन के चार हजार रुपए जारी हुए. फिर डेढ़ माह के बाद ही एरियर के 42 हजार रुपए मिले तो घर-गृहस्थी चलाने का मसला हल हो गया. विद्यावती शिमला में अपने पिता के पास रहने लगी.
आज भी जहन मे ताजा हैं यादें
राधारमण शास्त्री पूरे 19 महीने नाहन जेल में बंद रहे. चार दशक बीत गए, लेकिन अभी आपातकाल और उससे उपजी राजनीतिक, सामाजिक परिस्थितियां अभी भी उच्च शिक्षित नेता राधारमण शास्त्री के जहन में ताजा हैं. शास्त्री बताते है कि गिरफ्तार करने के बाद शिमला से उन्हें सीधे सेंट्रल जेल नाहन ले जाया गया. वर्ष 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद ही वे जेल से बाहर आए.
कैदियों में होती थी राजनैतिक चर्चा
शास्त्री के अनुसार जेल में बंद राजनीतिक कैदियों के बीच जोरदार राजनीतिक चर्चा होती थी. जेपी आंदोलन का प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर था. समय काटने के लिए सभी विभिन्न विषयों की पुस्तकों का अध्ययन करते. इमरजेंसी का विरोध करने पर शांता कुमार भी जेल में ही थे. शांता कुमार ने तो जेल में रहते हुए पुस्तक रच डाली. शांता कुमार लेखन के क्षेत्र में भी सार्थक दखल रखते हैं और उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं.
जेल में किया आयुर्वेद का अध्ययन
शास्त्री ने पुरानी यादों का जिक्र करते हुए बताया कि जेल में उनके साथ शांता कुमार, दौलत राम चौहान, दुर्गा सिंह, पंडित संतराम, श्यामा शर्मा सहित एक अध्यापक रामदास भी थे. जेल में उनकी चारपाई शांता कुमार के साथ ही थी. जेल में वैसे तो आराम था, पर समय काटने का उपाय तो कोई न कोई करना ही था. लिहाजा आयुर्वेद का अध्ययन शुरू किया. शास्त्री ने बताया कि उस दौरान करीब चार हजार रुपए की आयुर्वेद पर आधारित किताबें जेल में मंगवाई और अध्ययन शुरू किया.
बाहरी दुनिया से नहीं था कोई संपर्क
राधारमण शास्त्री को पाक कला का भी शौक था. वे जेल में खाना बनाने में भी हाथ बंटाते. आपातकाल में राधारमण शास्त्री अन्य लोगों के साथ जिस नाहन सेंट्रल जेल में कैद थे, उसका दरवाजा 22 फुट ऊंचा था. बाहर की दुनिया से संपर्क नहीं था. कभी-कभार जिस सिपाही से बाहर से कोई सामान वगैरा मंगवाते, उससे ही कुछ सूचनाएं मिल जाती थी कि जेल से बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है. उस समय जेल में अखबारें हिंदी की आती थीं. वीरप्रताप के साथ एक अन्य अखबार जेल में आता था, लेकिन खबरें सेंसर होती थीं. एक अन्य बड़े अखवार में कई कॉलम ब्लैंक यानी खाली होते थे. उन पर लिखा होता था सेंसर्ड. इस तरह जेल में समय काटने का सबसे बड़ा सहारा आपस में राजनीतिक चर्चा ही रहता.
जेल में होता था परिवार से मिलन
कभी-कभी घर-परिवार से कोई मिलने आ जाता तो भी प्रदेश की सूचनाएं मिल जातीं. मिलने के लिए समय लेना पड़ता था. मुलाकात के समय बातचीत पर जेल कर्मियों की नजर रहती. तब परिवार के सदस्य घर की परेशानियों के बारे में बात नहीं करते थे. यही कहा जाता कि घर-परिवार में सब अच्छे से चल रहा है और आप अपना ख्याल रखें.
1977 में जेल से छूटे
इमरजेंसी खत्म होने के बाद वर्ष 1977 में राधारमण शास्त्री अन्य नेताओं के साथ-साथ जेल की कैद से छूटे. सभी लोग मेंटेनेंस ऑफ इंडियन सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) के तहत जेल में बंद किए गए थे. इसी पर लालू यादव ने अपनी बेटी का नाम मीसा रखा था.
हिमाचल में शिक्षा मंत्रीका संभाला पदभार
23 मार्च 1943 को शिमला जिला के चौपाल में जन्में राधारमण शास्त्री बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. जेल से बाहर आने के बाद जनता पार्टी व अन्य समानधर्मा दलों की बैठक हुई. इसके बाद राधारमण शास्त्री ने चौपाल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और विजयी हुए. वे बाद में हिमाचल विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने प्रदेश के शिक्षा मंत्री का कार्यभार भी संभाला. वे केंद्रीय संस्कृत बोर्ड के सदस्य भी रहे. इसके अलावा कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएं देने वाले राधारमण शास्त्री ने कई देशों की यात्रा की. राधारमण शास्त्री दस साल तक हिमाचल भाजपा के महासचिव भी रहे. इस समय वे सक्रिय राजनीति से फिलहाल दूर हैं।
शास्त्री कहते हैं कि अब जमाना बदल गया है. लोगों में राजनीतिक चेतना है और युवा वर्ग जागरुक है. लोकतंत्र मजबूत है और सभी को अभिव्यक्ति की आजादी है. अब राजनीतिक दल निरंकुश नहीं हो सकते.