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रॉयल नेवी विद्रोह में शामिल थे ये स्वतंत्रता सेनानी, आज हैं युवाओं के रोल मॉडल

साल 1946 में कराची में समुद्री पोत पर रॉयल नेवी ने अंग्रेजों की दमनकारी नितियों के खिलाफ विद्रोह किया था. नेवी के इस बेड़े में ज्ञान सिंह भी मौजूद थे. इस विद्रोह को कुचलने के अंग्रेजों ने वहां पर अपनी सेना भेजी. अंग्रेजों ने 15 हजार सैनिकों को बुलाकर नेवी के जवानों पर हमला कर दिया. आर-पार की इस लड़ाई में इंडियन रॉयल नेवी ने अंग्रेजों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया था.

ज्ञान सिंह, स्वतंत्रता सेनानी
ज्ञान सिंह, स्वतंत्रता सेनानी
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Published : Aug 14, 2020, 9:46 PM IST

Updated : Aug 14, 2020, 10:09 PM IST

रोहड़ू: भारत 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी हकुमुत से आजाद हुआ था. आजादी की इस लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया. इन्हीं महान सपूतों की वजह से आज हम स्वतंत्र देश में रहने का आनंद ले रहे हैं.

इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं रोहड़ू के खनोला गांव के रहने वाले ज्ञान सिंह. उनका जन्म 1928 को हुआ. ज्ञान सिंह की प्रारंभीक शिक्षा गांव के एक सरकारी स्कूल में हुई. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो रामपुर चले गए. इसी दौरान भारत में आजादी की लड़ाई तेज होने लगी थी. दूसरे विश्व युद्व के दौरान साल 1944 में ज्ञान सिंह इंडियन रॉयल नेवी में भर्ती हुए और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने अहम भूमिका निभाई.

स्पेशल रिपोर्ट

साल 1946 में कराची में समुद्री पोत पर रॉयल नेवी ने अंग्रेजों की दमनकारी नितियों के खिलाफ विद्रोह किया था. नेवी के इस बेड़े में ज्ञान सिंह भी मौजूद थे. इस विद्रोह को कुचलने के अंग्रेजों ने वहां पर अपनी सेना भेजी. अंग्रेजों ने 15 हजार सैनिकों को बुलाकर नेवी के जवानों पर हमला कर दिया. आर-पार की इस लड़ाई में इंडियन रॉयल नेवी ने अंग्रेजों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया. स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के डविजन को पूरी तरह से तबाह कर दिया. इस लड़ाई में 10 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए. वहीं, 40 सैनिक घायल हुए. इस युद्व के बाद अंग्रेजों ने कोर्ट मार्शल कर इंडियन रॉयल नेवी के कई सैनिकों को नौकरी से निकाल दिया, जिनमें से ज्ञान सिंह भी एक थे.

आजादी के 25 साल बाद वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रॉयल इंडियन नेवी के सैनिकों को स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया था. इस लिस्ट में ज्ञान सिंह का नाम भी था. आजादी के महत्व को समझाते हुए स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह ने बताया कि आज के युवाओं को मालूम नहीं है कि हिंदुस्तान को अंग्रेजी हकुमुत से कैसे आजादी मिली थी. मां भारती को को आजादी दिलाने के लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी. तब जाकर आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं.

आज ज्ञान सिंह भले ही 92 साल के हो गए हैं, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम की यादें आज भी उनके जहन में जिंदा हैं. युवाओं को संदेश देते हुए महान स्वतंत्रता सेनानी ने कहा कि हर नागरीक में देश भक्ति की भावना होनी चाहिए. अपने हितों को छोड़कर लोगों को पहले देशहित के बारे में सोचना चाहिए तभी देश विकास कर सकता है.

92 साल के हो जाने के बाद भी ज्ञान सिंह पूरी तरह से फिट हैं. उनकी दिनर्चया में सुबह की सैर शामिल है. वो बिना किसी सहारे के चलते-फिरते हैं. यहां तक कि बिना चश्मे के अखबार और किताब भी पढ़ते हैं. हाल ही में स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह को भारत छोड़ा आंदोलन की सालगिरह पर राष्ट्रपति की तरफ से शॉल और अंगवस्त्र से सम्मानित किया था. उन्हें यह सम्मान एसडीएम बीआर शर्मा ने भेंट किया. ईटीवी भारत आजादी की 74वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह के आजादी के लिए किए गए संर्घष को नमन करता है और ईश्वर से उनके स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करता है.

रोहड़ू: भारत 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी हकुमुत से आजाद हुआ था. आजादी की इस लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया. इन्हीं महान सपूतों की वजह से आज हम स्वतंत्र देश में रहने का आनंद ले रहे हैं.

इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं रोहड़ू के खनोला गांव के रहने वाले ज्ञान सिंह. उनका जन्म 1928 को हुआ. ज्ञान सिंह की प्रारंभीक शिक्षा गांव के एक सरकारी स्कूल में हुई. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो रामपुर चले गए. इसी दौरान भारत में आजादी की लड़ाई तेज होने लगी थी. दूसरे विश्व युद्व के दौरान साल 1944 में ज्ञान सिंह इंडियन रॉयल नेवी में भर्ती हुए और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने अहम भूमिका निभाई.

स्पेशल रिपोर्ट

साल 1946 में कराची में समुद्री पोत पर रॉयल नेवी ने अंग्रेजों की दमनकारी नितियों के खिलाफ विद्रोह किया था. नेवी के इस बेड़े में ज्ञान सिंह भी मौजूद थे. इस विद्रोह को कुचलने के अंग्रेजों ने वहां पर अपनी सेना भेजी. अंग्रेजों ने 15 हजार सैनिकों को बुलाकर नेवी के जवानों पर हमला कर दिया. आर-पार की इस लड़ाई में इंडियन रॉयल नेवी ने अंग्रेजों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया. स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के डविजन को पूरी तरह से तबाह कर दिया. इस लड़ाई में 10 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए. वहीं, 40 सैनिक घायल हुए. इस युद्व के बाद अंग्रेजों ने कोर्ट मार्शल कर इंडियन रॉयल नेवी के कई सैनिकों को नौकरी से निकाल दिया, जिनमें से ज्ञान सिंह भी एक थे.

आजादी के 25 साल बाद वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रॉयल इंडियन नेवी के सैनिकों को स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया था. इस लिस्ट में ज्ञान सिंह का नाम भी था. आजादी के महत्व को समझाते हुए स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह ने बताया कि आज के युवाओं को मालूम नहीं है कि हिंदुस्तान को अंग्रेजी हकुमुत से कैसे आजादी मिली थी. मां भारती को को आजादी दिलाने के लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी. तब जाकर आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं.

आज ज्ञान सिंह भले ही 92 साल के हो गए हैं, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम की यादें आज भी उनके जहन में जिंदा हैं. युवाओं को संदेश देते हुए महान स्वतंत्रता सेनानी ने कहा कि हर नागरीक में देश भक्ति की भावना होनी चाहिए. अपने हितों को छोड़कर लोगों को पहले देशहित के बारे में सोचना चाहिए तभी देश विकास कर सकता है.

92 साल के हो जाने के बाद भी ज्ञान सिंह पूरी तरह से फिट हैं. उनकी दिनर्चया में सुबह की सैर शामिल है. वो बिना किसी सहारे के चलते-फिरते हैं. यहां तक कि बिना चश्मे के अखबार और किताब भी पढ़ते हैं. हाल ही में स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह को भारत छोड़ा आंदोलन की सालगिरह पर राष्ट्रपति की तरफ से शॉल और अंगवस्त्र से सम्मानित किया था. उन्हें यह सम्मान एसडीएम बीआर शर्मा ने भेंट किया. ईटीवी भारत आजादी की 74वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता सेनानी ज्ञान सिंह के आजादी के लिए किए गए संर्घष को नमन करता है और ईश्वर से उनके स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करता है.

Last Updated : Aug 14, 2020, 10:09 PM IST
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