शिमला: लोग सरदार सरबजीत सिंह को वेले बॉबी के नाम से जानते हैं. वेला बॉबी इसलिए कि वह केवल अपने लिए ही नहीं जीते बल्कि पीड़ित मानवता की सेवा में जीवन समर्पित कर रहे हैं. इस असरदार सरदार ने अपने एक मुट्ठी अन्न के मंत्र से भूख के दानव को पराजित किया है. इस तरह सरबजीत सिंह बॉबी भूख से आजादी के नायक हैं.
लोगों को निशुल्क भोजन करवाती है ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स
बॉबी की संस्था ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स शिमला के कैंसर अस्पताल में लंगर का संचालन करती है. यहां रोजाना कम से कम तीन हजार लोग चाय-नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का भोजन पाते हैं. यह सेवा बिल्कुल निशुल्क है. इसके अलावा सरबजीत की संस्था कैंसर और अन्य गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए निशुल्क एंबुलेंस सेवा का संचालन करती है. कोविड संकट में भी उनकी यह सेवा जारी रही. बॉबी की संस्था रोटी बैंक का संचालन भी करती है. सरबजीत के सेवा भाव को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी सराहा है.
रोजाना तीन हजार से ज्यादा लोग लंगर में करते हैं भोजन
गरीब और साधन हीन कैंसर मरीजों और उनके परिजनों के लिए चाय-बिस्किट से शुरू हुआ सेवा का यह सफर अब विशाल वटवृक्ष बन गया है. सरबजीत सिंह की संस्था ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स के लंगर में अब रोजाना तीन हजार से अधिक लोग निशुल्क भोजन पाते हैं. दुखों की गठरी उठाए प्रदेश के कोने-कोने से शिमला स्थित रीजनल कैंसर अस्पताल पहुंचे मरीजों और उनके परिजनों से अगर कोई पूछे कि सरबजीत सिंह कौन है तो उन लोगों के हाथ खुद-ब-खुद जुड़ जाते हैं और आंखों से निकले आभार के आंसू सारी कहानी कह देते हैं.
निशुल्क एंबुलेंस और फ्युनरल वैन चलाते हैं सरबजीत
सरबजीत सिंह की सेवा का संसार न केवल जीवित लोगों के लिए है बल्कि दुर्भाग्यवश देह छोड़ चुके लोगों की अंतिम सेवा तक फैला है. कैंसर मरीजों के लिए निशुल्क एंबुलेंस चलाते हैं. गंभीर रूप से बीमार कोई मरीज दम तोड़ दे और परिजनों के पास पार्थिव देह को घर ले जाने का कोई साधन न हो तो सरबजीत फ्युनरल वैन के जरिए पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए घर तक पहुंचाते हैं.
अक्टूबर 2014 में चाय-बिस्कुट से की थी शुरूआत
सरबजीत सिंह यूं तो रक्तदान शिविरों और अन्य माध्यमों से मानवता की सेवा करते ही आ रहे थे लेकिन विशाल सेवा प्रकल्पों का सफर चार साल पहले शुरू हुआ. अक्टूबर 2014 में उन्होंने कैंसर अस्पताल शिमला में मरीजों को चाय-बिस्किट सेवा की शुरूआत की. धीरे-धीरे मरीजों को सूप, दलिया देने लगे. लोगों का सहयोग मिला तो चावल, दाल, खिचड़ी का प्रबंध किया. अब तो यह आलम है कि एक दिन में सुबह से लेकर रात तक तीन हजार से अधिक लोग निशुल्क रूप से भरपेट भोजन पाते हैं. जो लोग चावल न लेना चाहें, उनके लिए गर्मा-गर्म रोटियों का भी प्रबंध है. संस्था साल भर में बीस से अधिक रक्तदान शिविर भी लगाती है.
एक रोटी रोज और एक मुट्ठी अन्न था सरबजीत का मंत्र
सरबजीत सिंह ने पीड़ित मानवता की सेवा के लिए कुछ साल पहले शहर के स्कूली बच्चों के सामने एक रोटी रोज का मंत्र रखा. उसका असर यह हुआ कि शिमला के कई स्कूलों के बच्चे सप्ताह में एक से अधिक दिन दो रोटियां एक्सट्रा लाने लगे. यह रोटियां कलेक्ट कर लंगर में दी जाती रहीं. संस्था ने रोटियां गर्म करने के लिए खास मशीन खरीदी है. इसके अलावा स्कूली बच्चे घरों से एक मुट्ठी अन्न भी लाते थे. ये सिलसिला लगातार चला. कोविड काल में ये बेशक थम गया लेकिन लंगर में अन्न और अन्य तरीकों से सहयोग करने वालों की कोई कमी नहीं है.
बहुत से लोग स्वेच्छा से लंगर के लिए बासमती चावल, पैक्ड दालें आदि भेंट करते हैं. कई लोग धन से भी मदद करते हैं. यही कारण है कि सेवा का ये संसार खूब फल-फूल रहा है. बड़ी बात यह है कि लंगर में भोजन बांटे जाने से पहले ईश्वर की प्रार्थना की जाती है और सभी की भलाई की अरदास की जाती है.
पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह और उनके परिवार सहित कई वीवीआईपी लोग अपने पैसे से लंगर देते हैं और उस दिन खुद ही भोजन भी बांटते हैं. सरबजीत सिंह का सपना है कि कोई भी बीमार व्यक्ति और उनके परिजन भूखे नहीं रहने चाहिए.
ये भी पढ़ें: धर्मशाला की कांग्रेस पार्षद ने CM जयराम से की मुलाकात, राजनीतिक गलियारों में गरमाई चर्चा