शिमला: कर्ज में डूबे हिमाचल प्रदेश को बिजली उत्पादन ही राहत दिला सकता है. इस समय पंजाब सरकार के कब्जे में चल रहे एक ऐतिहासिक पनबिजली घर के अगले साल हिमाचल के हो जाने से राज्य के खजाने को राहत मिलेगी. दरअसल, मार्च 2024 में शानन प्रोजेक्ट की 99 साल की लीज अवधि समाप्त हो रही है. उसके बाद तय समझौते के अनुसार शानन प्रोजेक्ट हिमाचल का हो जाएगा. शर्त ये थी कि लीज अवधि पूरी होने के बाद प्रोजेक्ट जिस राज्य की धरती पर होगा, उसे ही वापिस मिलेगा.
इस संबंध में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने पंजाब सरकार के साथ मामला उठाया है. यही नहीं, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्रीय उर्जा मंत्री से भी सहयोग की अपील की है. हालांकि हिमाचल की विभिन्न सरकारें समय-समय पर शानन प्रोजेक्ट को लेकर अपने हक का सवाल उचित मंचों पर उठाते रहे हैं, लेकिन अब लीज अवधि समाप्त होने से इस प्रोजेक्ट को हिमाचल को मिलने की आस बढ़ गई है. यदि शानन प्रोजेक्ट हिमाचल को वापिस मिलता है तो इससे सालाना सौ करोड़ रुपए तक का राजस्व हासिल होगा. वर्तमान में शानन पनबिजली परियोजना का पावर हाउस पंजाब के अधीन है. ये परियोजना मंडी जिला के जोगिंद्रनगर में है.
10 मार्च 1933 को हुआ था शानन परियोजना का उद्घाटन: भारत में ब्रिटिश हुकूमत के समय मार्च 1925 में तत्कालीन मंडी रियासत के राजा जोगेंद्र सेन ने ब्रिटिश हुकूमत के साथ एक समझौता किया था. ये समझौता मंडी के राजा व सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इन इंडिया के दरम्यान हुआ. समझौते में प्रोजेक्ट की लीज 99 साल थी और बाद में ये परियोजना हिमाचल को हस्तांतरित होनी थी. आंकड़ों के अनुसार शानन प्रोजेक्ट पर उस समय 2.53 करोड़ रुपए से अधिक की निर्माण लागत आई थी. वर्ष 1932 में शानन पावर हाउस बनकर तैयार हुआ था.
दिलचस्प बात है कि तब 10 मार्च 1933 को इसका उद्घाटन तत्कालीन पंजाब के विख्यात व ऐतिहासिक शहर लाहौर में हुआ था. ये प्रोजेक्ट ऊहल नदी पर बना है. इस पावर हाऊस का सपना ब्रिटिश हुकूमत के दौरान संयुक्त पंजाब के चीफ इंजीनियर कर्नल बेट्टी ने देखा था. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार तत्कालीन वायसराय ने लाहौर के शालीमार रिसिविंग स्टेशन से स्विच दबाकर इस परियोजना की शुरुआत की थी. बताया जाता है कि दूरदर्शी इंजीनियर कर्नल बेट्टी ने ही शानन प्रोजेक्ट के साथ-साथ बस्सी व चूल्हा परियोजनाओं को भी ऊहल नदी से संचालित करने की योजना बनाई थी. उसी का परिणाम है कि इस समय बस्सी जलविद्युत परियोजना हिमाचल के लिए कमाऊ पूत है. ऊहल नदी मंडी के बरोट में है. यहां की सुंदरता विश्व प्रसिद्ध है.
नजर अंदाज होते रहे हिमाचल के हक: शानन प्रोजेक्ट को लेकर भी हिमाचल के हक नजर अंदाज होते रहे हैं. पूर्व सीएम शांता कुमार शानन प्रोजेक्ट पर पंजाब के आधिपत्य को अन्यायपूर्ण कहते रहे हैं. पूर्व में जयराम सरकार के समय भी शांता ने इस मामले को उठाया था. उल्लेखनीय है कि जोगिंद्रनगर के शानन बिजली घर को 1966 के पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार हिमाचल प्रदेश को मिलना चाहिए था. पूर्व में मंडी रियासत के राजा के साथ अंग्रेज सरकार का समझौता हुआ था. आजादी के बाद राष्ट्रपति ने अधिसूचना जारी कर की थी, जिसके अनुसार अंग्रेजी शासन व भारत की रियासतों के राजाओं के बीच हुए समझौते निरस्त किए गए थे.
मोरारजी देसाई के साथ भी उठाया था मामला: हिमाचल प्रदेश पंजाब पुनर्गठन एक्ट के अनुसार इस परियोजना पर दावे के मामले को केंद्र सरकार के समक्ष कई बार उठा चुका है. पूर्व सीएम शांता कुमार ने पूर्व पीएम मोरारजी देसाई को भी हिमाचल के साथ हो रहे भेदभाव से अवगत करवाया था. हिमाचल बिजली परियोजनाओं में अपने हिस्से की मांग करता रहा है. बाद में हिमाचल प्रदेश को ब्यास-सतलुज परियोजना में 15 प्रतिशत हिस्सा मिलना शुरू हुआ था. पंजाब पुनर्गठन एक्ट के अनुसार 1966 से आज तक इस परियोजना से जो भी आय पंजाब सरकार लेती रही है वह हिमाचल को मिलनी चाहिए. पंजाब पुनर्गठन अधिनियम में लिखा है कि संयुक्त पंजाब की जो संपत्ति जिस प्रदेश में स्थित है वह उसी प्रदेश की होगी. संसद से पास किए गए इस कानून को भी लागू नहीं किया गया.
फिलहाल, अब हिमाचल प्रदेश अपने हक को लेने के लिए सजग व सतर्क हुआ है. अगले साल लीज की अवधि खत्म होनी है. हिमाचल प्रदेश को पूर्व में अपने साथ हुए अन्याय को भी केंद्र सरकार के साथ उठाना चाहिए, ऐसा मानना है पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का. भारती का कहना है कि हिमाचल प्रदेश को बीबीएमबी परियोजनाओं के अपने हक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पंजाब, हरियाणा आदि ने नहीं दिए हैं. केआर भारती का कहना है कि अब शानन प्रोजेक्ट के स्वामित्व से जुड़े मामले को समय पर उठाकर वापिस लेना चाहिए. शानन प्रोजेक्ट हिमाचल के पास आने से न केवल इसकी बेहतर देखरेख होगी, बल्कि ये आय का बड़ा साधन भी साबित होगा.