शिमला: हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के वीसी की नियुक्ति के खिलाफ एसएफआई ने सवाल उठाए हैं. छात्र संगठन एसएफआई ने प्रेसवार्ता कर राज्यपाल और चीफ जस्टिस से इस मामले की शिकायत करने की बात कही है.
एसएफआई के कैंपस अध्यक्ष विवेक राज ने कहा कि राजभवन के द्वारा कुलपति की नियुक्ति के लिए तीन बार विज्ञापन जारी किए जाते हैं. 29 अगस्त 2017 को पहली दफा आवेदन मांगे गए. उसके बाद जुलाई 2018 के अंदर फिर से 15 दिन का मौका आवेदन करने को लेकर दिया गया. इसके अंदर जुलाई 2018 में प्राेफेसर सिकंदर कुमार ने भी आवेदन किया. सबसे पहला सवाल यहां पर उठता है कि क्या सिकंदर कुमार को छोड़कर विश्वविद्यालय का कोई भी प्रोफेसर कुलपति के पद के लायक नहीं था ? क्या कोई भी प्रोफेसर कुलपति बनने के लिए यूजीसी के मानकों पर खरा नहीं उतर पाया था ? या फिर महज एक साजिश के तहत इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को धीमी गति से चलाया गया ताकि प्रोफेसर सिकंदर कुमार को कुलपति नियुक्त किया जा सके.
एसएफआई के कैंपस सचिव राॅकी ने कहा कि अभी तक जितने तथ्य विश्वविद्यालय वाइस चांसलर की नियुक्ति को लेकर सामने आए हैं, उन तमाम चीजों को मद्देनजर रखते हुए विश्वविद्यालय कुलपति प्रोफेसर सिकंदर कुमार को नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. एसएफआई का आराेप है कि विश्वविद्यालय के अंदर शिक्षक वर्ग की भर्ती में यूजीसी गाइडलाइन विश्वविद्यालय अध्यादेश को ताक पर रखकर अयोग्य प्राध्यापकों की भर्ती की गई है.
कंप्यूटर साइंस के अंदर, पीएचडी के अंदर, शिक्षक कोटे से अपने चहेतों की भर्ती की जाती है और विश्वविद्यालय के अंदर छात्र आंदोलन को दबाने के लिए धरना प्रदर्शन पर रोक लगाई जाती है. विश्वविद्यालय के अंदर बीजेपी सरकार, आरएसएस और छात्र संगठन एबीवीपी लगातार इन कारनामों का बचाव करने में ढाल की तरह खड़ी रही. एसएफआई ने चेताया की अगर प्रदेश सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया तो पूरे प्रदेश के अंदर आंदोलन को तेज किया जाएगा.
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