शिमलाः माकपा के राज्य सचिवमंडल सदस्य संजय चौहान ने कहा कि सरकार द्वारा देश व प्रदेश में जल्दबाजी में लागू किये गए लॉकडाउन के कारण गरीब, जरूरतमंद और विशेष रूप से दिहाड़ीदार व अप्रवासी मजदूरों को बेहद परेशानी हो रही है.
लॉकडाउन को लागू किए लगभग एक महीना हो गया है और इससे मजदूरों को रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. इन विषम परिस्थिति में वह सामाजिक व आर्थिक रूप से असहज महसूस कर रहा हैं क्योंकि आज इनके पास जो भी थोड़े बहुत साधन थे, वह समाप्त हो गए हैं. इस परिस्थिति में आज यह मजदूर वर्ग जहां भी है वह असुरक्षित महसूस कर रहा है और अपने घर जाने के लिए बेहद आतुर है.
प्रवासी मजदूरों की सरकार करे मदद
संजय चौहान ने कहा कि माकपा सरकार से आग्रह करती जो भी लोग, प्रवासी मजदूर या कोई अन्य जहां भी फंसा हुआ है और घर वापिस आना या जाना चाहता है, उसको घर तक छोड़ने का प्रबंध सरकार को करना चाहिए.
लॉकडाउन की स्थिति दिन प्रतिदिन भयावह होती जा रही है और यदि सरकार ने उचित कदम समय रहते नहीं उठाए, तो यह एक बड़ी त्रासदी का रूप ले सकती है.
माकपा नेता संजय चौहान ने कहा कि प्रदेश में भी लॉकडाउन को लागू हुए एक माह बीत गया है. प्रदेश के भीतर व बाहर आज हजारों लोग जिन में अधिकतर दिहाड़ी, मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में फंसे हुए हैं और अपने घर जाने की मांग कर रहे हैं.
लॉकडाउन के नियमों को ताक पर रख कर खास लोगों को मिल रहा है फायदा
प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री जनता से अपील कर रहे हैं कि लॉकडाउन का पालन करें जो जहां पर है वहीं रहें, लेकिन प्रभावशाली व सरकार के करीबी लोगों को प्रदेश से बाहर से लाने के लिए सरकार लॉकडाउन के सभी नियमों व कानूनों को ताक पर रख कर प्रदेश में लाया गया है.
वहीं, आम लोगों व मजदूरों को नहीं लाया जा रहा है. यह संविधान की मूल भावना जिसमें सभी को समान अधिकार दिए गए हैं, उसका सरासर उल्लंघन है.
हाल ही में भी सरकार ने कोटा के लिए छात्रों को लेने के लिए जो अपने खर्च पर 9 बसे भेजी हैं. उसमें प्रदेश के जो अन्य 10 लोग कोटा में फंसे हुए हैं, उनको लाने की इजाजत सरकार ने नहीं दी है.
मजदूर वर्ग के प्रति भेदभाव कर रही है सरकार
इसके साथ ही लंबी लड़ाई के बाद सरकार ने बड़ी संख्या में कश्मीर के मजदूर जो प्रदेश में इन विषम परिस्थितियों में फंसे हैं, उनमें से भी लगभग 250 मजदूरों को अभी शिमला से अपने घर जाने की इजाजत दी है, लेकिन जिस प्रकार से कोटा के लिए सरकार ने अपने खर्च पर बसे भेजी हैं, इन मजदूरों को बसें नहीं भेजी गई और इन्हें इस संकट की घड़ी में भी निजी बसों में अपनी जेब से 2000 हजार रुपये प्रति मजदूर के हिसाब से खर्च करना पड़ा है. यह सरकार का मजदूर वर्ग के प्रति भेदभावपूर्ण रवय्या दर्शाता है.
सीपीएम ने सररकार से रखी मांग
सीपीएम मांग करती है कि सरकार प्रदेश के बाहर व भीतर जो भी फंसा हुआ है और अपने घर जाना चाहता है. उसको घर भेजने के लिए सरकार तुरन्त कदम उठाए व जिस प्रकार से कोटा से छात्रों को लाने के लिए सरकार ने अपने खर्च पर बसें भेजी हैं, वैसे ही प्रदेश से बाहर अन्य राज्यों में फंसे लोगों व प्रदेश में फंसे मजदूरों व अन्य लोगों को घर भेजने का प्रबंध करें.
जो जिला ग्रीन जोन में है, उनमें परिवहन व अन्य गतिविधियों को सामान्य रूप में आरंभ किया जाए, जिससे लोगों को इस संकट की घड़ी में अपना रोजी रोटी अर्जित करने का अवसर प्राप्त हो सके.
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