चौपाल: शिमला के नागरिक उप मण्डल चौपाल और साथ लगते इलाकों में पर्यवारण संरक्षण के लिए अहम माने जाने वाले गिद्धों की लगातार घटती संख्या चिंता का विषय बन गई है. गिद्धों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है और गिद्धों की घटती संख्या पर्यवारण संतुलन के लिए बड़ा खतरा है. पर्यावरणविदों की मानें तो पर्यावरण में संतुलन बनाने के लिए गिद्ध बेहद अहम हैं क्योंकि गिद्ध खुद पर्यवारण को साफ करने का काम करते हैं खुले में किसी भी जानवर के मरने के बाद गिद्ध इसे अपना भोजन बनाकर पर्यवारण को साफ-सुथरा बनाने में अहम योगदान देते हैं लेकिन इनके दुर्लभ होने के बाद पर्यवारण में संक्रमण का खतरा बना रहता है.
गिद्धों की संख्या को लेकर किया गया था सचेत
केंद्रीय जू अथॉरिटी ने करीब 17 वर्ष पहले इस सिलसिले में हिमाचल को सचेत किया था जिसमें हिमाचल में गिद्धों की संख्या कम होने को लेकर पर्यावरण संतुलन के लिए चिंता जताई गयी थी. वर्ष 2004 के बाद से इनके संरक्षण के लिए कार्य शुरू किया गया. वाइल्ड लाइफ विंग ने गिद्धों की संख्या को बढ़ाने के लिए इनके प्रजनन पर ध्यान दिया जिसके लिए जंगलों में कृत्रिम घोंसले बनाये गए और ऐसी जगह चिन्हित की गई जहां आग लगने का खतरा कम हो.
चौपाल में घट रही गिद्धों की संख्या
वाइल्ड लाइफ विंग के आंकड़ों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी हुई लेकिन चौपाल में गिद्धों की संख्या सरकारी आंकड़ों से बेहद अलग है. करीब 20 साल पहले चौपाल के आसमान में जहां सैकड़ों की संख्या में गिद्धों का समूह ऊंची उड़ान भरते नजर आता था. वहीं, अब इक्का-दुक्का गिद्ध भी मुश्किल से नजर आते हैं.
पर्यावरणविदों ने जताई चिंता
भारत में लगभग हर प्रजाति के गिद्ध पाए जाते है. इनमें यूरेशियन ग्रिफन, हिमालयन ग्रिफन, व्हाइट बेक्ड और सलेंडर विल्ड जैसी प्रजातीय प्रमुख है. अब देश के सभी क्षेत्रों में इन सभी प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट छा गया है. मसलन यूरेशियन ग्रिफन, हिमालयन ग्रिफन, व्हाइट बेक्ड और सलेंडर विल्ड प्रजातियों की अच्छी संख्या वाले राज्यों में शुमार हिमाचल प्रदेश में भी अब इन्हें वन्य प्राणियों की सूची में क्रिटिकली एंड डेंजर्ड घोषित कर दिया गया है.
हिमाचल में नाममात्र गिद्ध
वर्ष 2020 के जाते-जाते स्थिति यह है कि हिमाचल में गिद्ध नाममात्र के ही रह गए हैं. खड़काह गांव के 101 वर्षीय पर्यावरणविद सुरजन शर्मा और थुम्बाड़ी गांव के 99 वर्षीय पर्यावरणविद मनी राम पराशर ने बताया कि पहले क्षेत्र में गिद्धों की भरमार हुआ करती थी जो मृत पशुओं के अवशेषों को गिद्धों का झुंड कुछ ही घंटों में साफ कर देता था. इससे पर्यावरण भी साफ रहता था लेकिन अब हालात बदल गए हैं. पर्यावरणविदों का कहना है कि सरकार और संबंधित विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि पर्यवारण संतुलन बना रहे.