शिमला: हिमाचल में इस समय मंडी लोकसभा सीट सहित तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की हलचल है. मंडी सीट से कांग्रेस प्रतिभा सिंह को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है. अर्की सीट से वीरभद्र सिंह विधायक थे. उनके निधन के बाद वहां भी उपचुनाव होना है. यदि कुल्लू से भाजपा महेश्वर सिंह को मौका देती है तो मंडी सीट पर जो राजघरानों के बीच टक्कर होगी. ऐसे में ये जानना दिलचस्प होगा कि हिमाचल की राजनीति में राजपरिवारों का कितना रोल रहा है.
हिमाचल छोटा पहाड़ी राज्य है और आजादी से पहले ये रियासतों में बंटा हुआ था. आजादी के बाद बेशक राजपाट के दिन लद गए, लेकिन सियासी राजनीति में राजपरिवारों का प्रभुत्व बना रहा. देश के अन्य राज्यों की तरह हिमाचल भी इससे अछूता नहीं रहा. यहां सबसे प्रभावशाली राजपरिवार बुशहर रियासत का रहा है. स्व. वीरभद्र सिंह इस परिवार से जुड़े ऐसे नेता रहे, जिन्होंने राज्य व केंद्र की राजनीति में अहम स्थान बनाया.
इसी तरह कुल्लू व मंडी राजपरिवार भी सियासी राजनीति में खूब सक्रिय हैं. यहां हम ऐसे राजनेताओं की बात करेंगे, जो राजपरिवारों से संबंध रखते थे, लेकिन चुनावी राजनीति में भी खूब सफल रहे. यदि यहां क्षेत्रफल के लिहाज से देश की दूसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट मंडी का जिक्र करें तो इस निर्वाचन क्षेत्र में आरंभ से ही राजपरिवारों का दबदबा रहा है.
वर्ष 1952 यानी देश के पहले आम चुनाव में मंडी सीट से कपूरथला घराने की रानी अमृत कौर ने चुनाव जीता था. अगले आम चुनाव यानी वर्ष 1957 के लोकसभा चुनाव में यहां से सुकेत रियासत के राजा जोगेंद्र सेन ने चुनाव में विजय हासिल की. दिलचस्प बात ये थी कि उनके मुकाबले बिलासपुर के राजपरिवार के राजा आनंद चंद खड़े थे. जोगेंद्र सेन ने आनंद चंद को पराजित किया था.
अगले चुनाव में फिर से राजपरिवार से संबंध रखने वाले ललित सेन एमपी बने. उसके बाद मंडी लोकसभा सीट पर बुशहर रियासत के राजा वीरभद्र सिंह का प्रभाव बढ़ा. वर्ष 1971 में वीरभद्र सिंह ने मंडी सीट से चुनाव जीता. इस तरह दो दशक तक इस सीट पर राजपरिवारों की धूम रही.
ये भी हैरानी की बात है कि मंडी सीट पर पहली बार गैर राजशाही परिवार वाले ने शाही परिवार को हराया था. ये बात 1977 के चुनाव की है. तब गंगा सिंह ठाकुर ने वीरभद्र सिंह को पराजित कर दिया था. हालांकि 1980 में वीरभद्र सिंह फिर से जीत गए. यहां से वर्ष 1984 का चुनाव फिर ऐसा आया, जिसमें कोई भी प्रत्याशी राजपरिवार से नहीं था. तब पंडित सुखराम ने लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. उन्होंने भाजपा के मधुकर को पराजित किया.
इसी चुनाव में दौरान चंद्रेश कुमारी भी कांगड़ा से जीत कर लोकसभा पहुंची. वे भी राजपरिवार से संबंध रखती हैं. अगले चुनाव में फिर से राजशाही का प्रभाव दिखा. कुल्लू के राजपरिवार के महेश्वर सिंह ने मंडी सीट से सुखराम को हराया. वर्ष 1998 के चुनाव में मंडी से प्रतिभा सिंह को कांग्रेस का टिकट मिला. प्रतिभा सिंह भी राजपरिवार से हैं. वीरभद्र सिंह की धर्मपत्नी प्रतिभा सिंह ने कुल्लू के राजपरिवार के नेता महेश्वर सिंह को हराया.
प्रतिभा सिंह का मायका क्योंथल राजपरिवार में है. वे बुशहर घराने की बहू हैं. फिर वर्ष 1999 में महेश्वर सिंह ने वापसी करते हुए कौल सिंह ठाकुर को पराजित किया. वर्ष 2004 में भी प्रतिभा सिंह ने मंडी से चुनाव जीता. उसके बाद फिर 2009 में फिर वीरभद्र सिंह ने मंडी से चुनाव जीता और केंद्र में मंत्री बने.
इसके अलावा हिमाचल में राजपरिवारों के सदस्य सांसद व मंत्री रहे हैं. राजपरिवार से संबंध रखने वाले नेताओं में कुल्लू से स्व. कर्ण सिंह, आशा कुमारी, चंद्रेश कुमारी हैं. शिमला के समीप क्योंथल रियासत की ज्योति सेन ने 2017 का विधानसभा चुनाव कसुम्पटी से लड़ा था. उनके सामने भी कोटी रियासत के अनिरुद्ध सिंह थे. अनिरुद्ध सिंह ने चुनाव जीता था. पूर्व में जुब्बल रियासत के राजा योगेंद्र चंद्र भी चुनाव जीते हैं. सिरमौर के राजपरिवार में अजय बहादुर सिंह भी राजनीति में सक्रिय रहे हैं.
वहीं, स्व. वीरभद्र सिंह के बेटे विधायक विक्रमादित्य सिंह, कुल्लू के महेश्वर सिंह के बेटे दानवेंद्र सिंह, स्व. कर्ण सिंह के बेटे आदित्य विक्रम सिंह अगली पीढ़ी में सक्रिय हैं.वीरभद्र सिंह के देहावसान के बाद उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह का राजतिलक हुआ.हालांकि ये पारिवारिक आयोजन था, लेकिन विक्रमादित्य सिंह ने बाद में ये कहा कि वे साधारण स्वरूप में ही रहना चाहते हैं और उन्हें राजा न पुकारा जाए.
ये सही है कि पूर्व में राजघरानों ने सियासत में दबदबा कायम किया था, लेकिन अब समय बदल गया है और नई पीढ़ी खुद को सियासतदां के रूप में ही देखती है. मौजूदा समय में राजपरिवारों से विक्रमादित्य सिंह, अनिरुद्ध सिंह, आशा कुमारी, महेश्वर सिंह, आदित्य विक्रम सिंह, दानवेंद्र सिंह ही राजनीति में सक्रिय हैं.
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