शिमला: वर्ष 1952 में प्रदेश में भारत के प्रथम आम चुनावों के साथ हिमाचल में भी चुनाव हुए और इसमें कांग्रेस पार्टी की जीत हुई थी. 24 मार्च 1952 को प्रदेश की बागडोर बतौर मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार ने संभाली थी. सरकार चाहे कोई भी हो लेकिन शिमला की आठ सीटों पर कांग्रेस का ही वर्चस्व देखने को मिलता हैं. (himachal assembly election 2022 ) (Political equation of eight seats in Shimla).
कांग्रेस का गढ़ रही है शिमला: 2003 के विधानसभा चुनाव में शिमला की आठ विधानसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस ने कब्जा किया जबकि निर्दलीयों के खाते में तीन सीटें गई थीं. वहीं बीजेपी अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी. वहीं साल 2007 में 5 सीटों पर कांग्रस और 1 पर आजाद उम्मीदवार ने कब्जा किया जबकि बीजेपी इस बार अपना खाता खोलने में कामयाब रही और 2 सीटों पर कब्जा किया. 2012 के चुनाव में एक बार फिर से शिमला जिले में कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 6 सीटों पर कब्जा किया. कांग्रेस को एक सीट की बढ़त मिली. जबकि बीजेपी को एक सीट का नुकसान उठाना पड़ा. बीजेपी को महज 1 सीट पर जीत मिली. वहीं 1 सीट निर्दलीय के खाते में गई.
2017 में बीजेपी को हुआ था दो सीटों का फायदा : 2017 के चुनावों में बीजेपी का शिमला में प्रदर्शन बेहतर देखने को मिला. इस बार बीजेपी ने शिमला की आठ सीटों में से तीन पर कब्जा किया. वहीं कांग्रेस के खाते में 4 सीटों पर कब्जा किया जबकि सीपीएम को एक सीट मिली. 2017 के रण में कांग्रेस को दो सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था जबकि बीजेपी को दो सीटों का फायदा हुआ था.
शिमला की 8 सीटों पर किसका है कब्जा: शिमला शहरी, शिमला ग्रामीण, कसुम्पटी, ठियोग, चौपाल, जुब्बल कोटखाई, रामपुर और रोहड़ू ये आठ विधानसभा क्षेत्र शिमला जिले के अंतर्गत आते हैं. 2017 की बात करें तो शिमला शहरी सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. बीजेपी के सुरेश भारद्वाज ने इस सीट पर जीत हासिल की थी हालांकि इस बार बीजेपी ने यहां से संजय सूद को टिकट दी. चायवाले को टिकट देने के बाद से यह सीट काफी चर्चा में हैं.
शिमला ग्रामीण पर रहा है कांग्रेस का दबदबा: शिमला ग्रामीण की बात करें तो कांग्रेस के दिवंगत सीएम वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य शिमला ग्रामीण से दूसरी बार जीत का सपना देख रहे हैं. 2012 में, वीरभद्र ने 20,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी. वहीं उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह ने 2017 के चुनाव में यहां से जीत दर्ज की थी.
20 साल से कसुम्पटी में नहीं खिला कमल: कसुम्पटी भी कांग्रेस का गढ़ रहा है. यहां बीते 20 सालों से बीजेपी नहीं जीत सकी है. बीजेपी ने इस बार सुरेश भारद्वाज को मैदान में उतारा है. वहीं कांग्रेस ने अनिरुद्ध सिंह को टिकट दिया है. कसुम्पटी सीट से 2017 में अनिरुद्ध सिंह को विधायक चुना गया था. वह कांग्रेस विधायक हैं.
ठियोग भी बीजेपी के लिए चुनाती: साल 2017 के चुनाव में ठियोग विधानसभा सीट पर जनता ने अलग ही फैसला सुना दिया. सभी पार्टियों को दरकिनार करते हुए सीपीआई (एम) के राकेश सिंघा को मौका दिया गया. इस बार कांग्रेस के कुलदीप सिंह राठौड़, भाजपा के अजय श्याम और आम आदमी पार्टी के अतर सिंह चंदेल चुनावी मैदान में ताल ठोंक रह हैं. 2012 के चुनाव में कांग्रेस के विद्या को जीत मिली थी. 2007 और 2003 के चुनावों में राकेश वर्मा ने यह सीट निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के राजिन्दर वर्मा को हराकर जीती थी.
32 साल बाद मिली थी जीत: चौपाल विधानसभा सीट (Chopal Assembly Seat) पर लंबे समय बाद कमल खिल सका. साल 2017 का चुनाव भाजपा के बलबीर वर्मा ने जीता था. अहम बात यह है कि भाजपा ने 1990 से एक लंबे अंतराल के बाद इस सीट पर जीत दर्ज की थी. इस सीट पर अक्सर कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी ही जीतते आ रहे हैं.साल 2003 में सुभाष चंद निर्दलीय चुनाव लड़े थे और कांग्रेस के योगेंद्र चंदा को 2,571 वोटों से हराकर जीते थे.
उपचुनाव में गंवानी पड़ी थी सीट: जुब्बल कोटखाई विधानसभा सीट भाजपा और कांग्रेस के वर्चस्व वाली सीटों में शुमार है. दोनों ही पार्टियों पर जनता ने बारी बारी से भरोसा जताया है. 2017 में बीजेपी को यहां जीत मिली थी. नरेंद्र बरागटा ने जीत हासिल की थी. वहीं 2021 के बाई-इलेक्शन में इस सीट से कांग्रेस को हाथ धोना पड़ा था. कांग्रेस के रोहित ठाकुर की हार हुई थी. ऐसे में इस बार बीजेपी और कांग्रेस ने जीत के लिए एड़ी चोटी का दम लगा दिया है.
रोहड़ू में बीजेपी का नहीं खुला खाता: रोहड़ू विधानसभा सीट एससी सुरक्षित है जहां पर 1972 से 2017 तक हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी लगातार 10 बार जीत का परचम लहरा चुकी है. हिमाचल प्रदेश के सीएम रहे वीरभद्र सिंह भी इस सीट से अकेले पांच चुनाव जीत चुके हैं. 2017 के चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी के मोहन लाल ब्राक्टा ने भाजपा की शशि बाला को हराकर दूसरी बार जीत दर्ज की थी. कांग्रेस पार्टी के मोहन लाल ब्राक्टा (Congress Mohan Lal Brakta) को जीत की हैट्रिक लगाने के लिए एक बार फिर मैदान में उतारा गया है.
कभी भी रामपुर में नहीं मिली जीत: रामपुर विधानसभा सीट (SC) पर बीजेपी का कोई खास प्रभाव आज तक देखने को नहीं मिला है. 1972 से 2017 तक के चुनावों में भाजपा यहां खाता तक नहीं खोल पाई है. जबकि रामपुर पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. 11 चुनावों में से 10 चुनावों में कांग्रेस को इस सीट पर जीत मिली है. 2017 के चुनावों में कांग्रेस के नन्द लाल ने अपनी जीत की हैट्रिक बनाई थी. कांग्रेस ने एक बार फिर सीटिंग विधायक नंद लाल पर भरोसा जताया है. वहीं, भाजपा ने अपने पुराने चेहरे को बदलकर कौल सिंह नेगी (Kaul Singh Negi) को मैदान में उतारा है. उधर, आम आदमी पार्टी ने उदय सिंह डोगरा पर विश्वास जताया है.
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