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मेडिकल कॉलेजों में अनुबंध पूरा करने वाले वरिष्ठ रेजिडेंट और ट्यूटर डॉक्टरों को नियमित करने के आदेश

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Published : Jul 23, 2021, 8:04 PM IST

हाईकोर्ट ने प्रदेश के चार मेडिकल कॉलेजों में 3 वर्षों का अनुबंध कार्यकाल पूरा करने वाले वरिष्ठ रेजिडेंट/ट्यूटर डॉक्टरों को तुरंत नियमित करने के आदेश जारी कर दिए हैं. सराकर का तर्क था कि विचाराधीन पद से जुड़ी प्रकृति और जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए नियमितीकरण का लाभ याचिकाकर्ताओं को नहीं दिया जा सकता. राज्य सरकार ने तर्क दिया कि सरकार द्वारा समय-समय पर बनाई गई नियमितीकरण नीति चिकित्सा शिक्षा विभाग पर लागू नहीं होती है. सरकार की इस दलील को न्यायालय ने पूरी तरह से खारिज कर दिया.

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शिमला: हाईकोर्ट ने प्रदेश के चार मेडिकल कॉलेजों में 3 वर्षों का अनुबंध कार्यकाल पूरा करने वाले वरिष्ठ रेजिडेंट/ट्यूटर डॉक्टरों को तुरंत नियमित करने के आदेश जारी किए हैं. न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर व न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने डॉक्टर रेजिडेंट पॉलिसी के क्लॉज 7.4 को मनमाना और अन्यायपूर्ण भी घोषित कर रद्द कर दिया. जिसके परिणामस्वरूप सरकार को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं को उन्हीं मेडिकल कॉलेजों में वरिष्ठ रेजिडेंट / ट्यूटर विशेषज्ञ के रूप में सेवा जारी रखने की अनुमति दें जहां वे नियुक्त हुए थे.

याचिकाओं में दिए तथ्यों के अनुसार वर्ष 2016 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज नाहन, लाल बहादुर शास्त्री गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज मंडी, पं. जवाहर लाल सरकारी मेडिकल कॉलेज चंबा और डॉ. राधा कृष्ण सरकारी मेडिकल कॉलेज हमीरपुर को खोलने का फैसला किया. इन कॉलेजों के लिए विज्ञापन के माध्यम से विभिन्न विशिष्टताओं में रेजिडेंट डॉक्टरों के चयन के लिए उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित किए गए थे.

शुरू में यह नियुक्तियां केवल 6 माह के लिए की गई थी. विज्ञापन में यह विशेष रूप से निर्धारित किया गया था कि वरिष्ठ रेजीडेंसी के कार्यकाल को प्रदर्शन के अनुसार तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है. सभी याचिकाकर्ताओं ने आवेदन किया और साक्षात्कार में भाग लिया और उन्हें अपने संबंधित क्षेत्रों में सफल घोषित किया गया.10.4.2017 को जारी पत्र द्वारा सरकार ने याचिकाकर्ताओं को उनकी योग्यता के अनुसार विभिन्न विशिष्टताओं में ट्यूटर के रूप में नियुक्त करने की स्वीकृति दी.

याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति शुरू में छह महीने के लिए थी, लेकिन बाद में साल दर साल इसका नवीनीकरण होता रहा. हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा तैयार की गई नियमितीकरण नीति के अनुसार यदि कोई अनुबन्ध पर नियुक्त व्यक्ति, जिसने तीन साल की निरंतर सेवा पूरी कर ली है, वरिष्ठता के आधार पर उसे नियमित किया जाएगा. याचिकाकर्ताओं ने भी अपने लिए इस नियमितीकरण नीति का लाभ देने की मांग की थी.

राज्य सरकार का तर्क था कि विचाराधीन पद से जुड़ी प्रकृति और जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए नियमितीकरण का लाभ याचिकाकर्ताओं को नहीं दिया जा सकता. राज्य सरकार ने तर्क दिया कि सरकार द्वारा समय-समय पर बनाई गई नियमितीकरण नीति चिकित्सा शिक्षा विभाग पर लागू नहीं होती है. सरकार की इस दलील को न्यायालय ने पूरी तरह से खारिज कर दिया.

बता दें कि रेजिडेंट डॉक्टर पॉलिसी के क्लॉज 7.4 के अनुसार किसी विशेष सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीनियर रेजिडेंट / ट्यूटर स्पेशलिस्ट के रूप में किसी भी उम्मीदवार के लिए दोबारा कार्यकाल नहीं होगा. क्लॉज 7.4.2 में प्रावधान है कि एक सीनियर रेजिडेंट, जिसने एक विशेषता में अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है वह संबंधित सुपर स्पेशियलिटी विभाग में वरिष्ठ रेजीडेंसी के लिए पात्र होंगे, बशर्ते कि ऐसे उम्मीदवारों को अर्जित अंकों के बावजूद योग्यता प्राप्त करते समय नए उम्मीदवारों से नीचे रखा जाएगा. न्यायालय ने पॉलिसी के क्लॉज 7.4 को मनमाना और अन्यायपूर्ण मानते हुए खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें:राज्य कर एवं आबकारी विभाग की बड़ी कार्रवाई, पांवटा साहिब में शराब की फैक्टरी सील

शिमला: हाईकोर्ट ने प्रदेश के चार मेडिकल कॉलेजों में 3 वर्षों का अनुबंध कार्यकाल पूरा करने वाले वरिष्ठ रेजिडेंट/ट्यूटर डॉक्टरों को तुरंत नियमित करने के आदेश जारी किए हैं. न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर व न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने डॉक्टर रेजिडेंट पॉलिसी के क्लॉज 7.4 को मनमाना और अन्यायपूर्ण भी घोषित कर रद्द कर दिया. जिसके परिणामस्वरूप सरकार को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं को उन्हीं मेडिकल कॉलेजों में वरिष्ठ रेजिडेंट / ट्यूटर विशेषज्ञ के रूप में सेवा जारी रखने की अनुमति दें जहां वे नियुक्त हुए थे.

याचिकाओं में दिए तथ्यों के अनुसार वर्ष 2016 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज नाहन, लाल बहादुर शास्त्री गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज मंडी, पं. जवाहर लाल सरकारी मेडिकल कॉलेज चंबा और डॉ. राधा कृष्ण सरकारी मेडिकल कॉलेज हमीरपुर को खोलने का फैसला किया. इन कॉलेजों के लिए विज्ञापन के माध्यम से विभिन्न विशिष्टताओं में रेजिडेंट डॉक्टरों के चयन के लिए उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित किए गए थे.

शुरू में यह नियुक्तियां केवल 6 माह के लिए की गई थी. विज्ञापन में यह विशेष रूप से निर्धारित किया गया था कि वरिष्ठ रेजीडेंसी के कार्यकाल को प्रदर्शन के अनुसार तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है. सभी याचिकाकर्ताओं ने आवेदन किया और साक्षात्कार में भाग लिया और उन्हें अपने संबंधित क्षेत्रों में सफल घोषित किया गया.10.4.2017 को जारी पत्र द्वारा सरकार ने याचिकाकर्ताओं को उनकी योग्यता के अनुसार विभिन्न विशिष्टताओं में ट्यूटर के रूप में नियुक्त करने की स्वीकृति दी.

याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति शुरू में छह महीने के लिए थी, लेकिन बाद में साल दर साल इसका नवीनीकरण होता रहा. हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा तैयार की गई नियमितीकरण नीति के अनुसार यदि कोई अनुबन्ध पर नियुक्त व्यक्ति, जिसने तीन साल की निरंतर सेवा पूरी कर ली है, वरिष्ठता के आधार पर उसे नियमित किया जाएगा. याचिकाकर्ताओं ने भी अपने लिए इस नियमितीकरण नीति का लाभ देने की मांग की थी.

राज्य सरकार का तर्क था कि विचाराधीन पद से जुड़ी प्रकृति और जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए नियमितीकरण का लाभ याचिकाकर्ताओं को नहीं दिया जा सकता. राज्य सरकार ने तर्क दिया कि सरकार द्वारा समय-समय पर बनाई गई नियमितीकरण नीति चिकित्सा शिक्षा विभाग पर लागू नहीं होती है. सरकार की इस दलील को न्यायालय ने पूरी तरह से खारिज कर दिया.

बता दें कि रेजिडेंट डॉक्टर पॉलिसी के क्लॉज 7.4 के अनुसार किसी विशेष सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीनियर रेजिडेंट / ट्यूटर स्पेशलिस्ट के रूप में किसी भी उम्मीदवार के लिए दोबारा कार्यकाल नहीं होगा. क्लॉज 7.4.2 में प्रावधान है कि एक सीनियर रेजिडेंट, जिसने एक विशेषता में अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है वह संबंधित सुपर स्पेशियलिटी विभाग में वरिष्ठ रेजीडेंसी के लिए पात्र होंगे, बशर्ते कि ऐसे उम्मीदवारों को अर्जित अंकों के बावजूद योग्यता प्राप्त करते समय नए उम्मीदवारों से नीचे रखा जाएगा. न्यायालय ने पॉलिसी के क्लॉज 7.4 को मनमाना और अन्यायपूर्ण मानते हुए खारिज कर दिया.

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