शिमला: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में ये समय इंतजार का है. इंतजार नई सरकार का, नए सीएम का और फिर अफसरशाही के नए मुखिया का भी. दिसंबर की 8 तारीख को चुनाव परिणाम सामने आएगा और हिमाचल में रिवाज बदलेगा या ताज, इसका खुलासा भी होगा. सरकार कांग्रेस की बने या फिर भाजपा की, दोनों को ही अफसरशाही के नए मुखिया की भी तलाश करनी होगी. कारण ये है कि मौजूदा मुख्य सचिव आरडी धीमान दिसंबर के अंत में सेवानिवृत होंगे.
हिमाचल की ये रिवायत रही है कि यहां मुख्यमंत्री अपने हिसाब से मुख्य सचिव तय करते हैं. अकसर इसमें सीनियरिटी भी दरकिनार की जाती रही है. खासकर 2012 से लेकर 2017 तक के कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में वीरभद्र सिंह ने सीनियरिटी की सुपरसीड कर अपनी पसंद के अफसर को मुख्य सचिव बनाया. वीसी फारका वीरभद्र सिंह सरकार में मुख्य सचिव थे. बाद में हिमाचल में सत्ता परिवर्तन हुआ तो जयराम ठाकुर ने सीनियरिटी का मान रखा लेकिन उनके कार्यकाल में कई मुख्य सचिव बदले गए.
इस समय आरडी धीमान मुख्य सचिव हैं और दिसंबर की 31 तारीख को उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है. हिमाचल में जयराम सरकार ने रामसुभग सिंह को मुख्य सचिव के पद से हटाने के बाद आरडी धीमान को इस पद पर तैनात किया. धीमान की नियुक्ति से उनसे सीनियर निशा सिंह और संजय गुप्ता नाराज हो गए. रामसुभग सिंह सहित निशा सिंह व संजय गुप्ता को किनारे लगा कर प्रधान सलाहकार यानी प्रिंसिपल एडवाइजर बना दिया गया. ठीक वैसे ही, जैसे जयराम सरकार में वीसी फारका को बनाया गया था.
खैर, ये तो सत्ता के साथ चलता ही आया है. अब आरडी धीमान के बाद मुख्य सचिव के लिए कौन चुना जाएगा, इस पर अफसरशाही की निगाहें हैं. सीनियरिटी में देखें तो अली रजा रिजवी और के. संजयमूर्ति हैं. उसके बाद प्रबोध सक्सेना का नंबर हैं. प्रबोध सक्सेना इस समय एसीएस रैंक के अफसर हैं. उपरोक्त वर्णित दो अफसर अली रजा रिजवी व संजयमूर्ति केंद्र में डेपुटेशन पर हैं. क्या नई सरकार डेपुटेशन से उन्हें वापिस बुलाएगी या फिर राज्य में उपलब्ध अफसरों से ही काम चलाएगी, ये जिज्ञासा है.
हिमाचल में पूर्व में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने विनीत चौधरी, उपमा चौधरी व दीपक सानन सहित दो अन्य अफसरों की सीनियरिटी इग्नोर कर वीसी फारका को मुख्य सचिव बनाया था. तब विनीत चौधरी अपने हक के लिए कैट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल चले गए थे. वे कैट से केस भी जीते थे और बाद में जयराम सरकार में मुख्य सचिव बनाए गए. जयराम सरकार ने बेशक सीनियरिटी इग्नोर नहीं की लेकिन उनके कार्यकाल में मुख्य सचिव बदलते ही रहे. खासकर डायनामिक ब्यूरोक्रेट अनिल खाची को बदलने का किस्सा खूब चर्चा में रहा. अनिल खाची के बाद रामसुभग सिंह सीएस बनाए गए. अनिल खाची से पहले श्रीकांत बाल्दी सीएस रहे.
कुल मिलाकर बात ये है कि हिमाचल में मुख्य सचिव चुनना और फिर ब्यूरोक्रेट का उस पद पर टिके रहना कभी कभार कठिन भी हो जाता है. ऐसे में दिसंबर में नई सरकार के आने के बाद नया मुख्य सचिव कौन होगा, ये देखना भी रोचक होगा. कांग्रेस सत्ता में आई तो बिल्कुल नया चेहरा मुख्यमंत्री होगा. कारण ये है कि वीरभद्र सिंह के दौर में उनके सिवा इस पद के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. अब वीरभद्र सिंह हैं नहीं तो कौन होगा मुखिया, ये तय करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. वहीं, भाजपा ने तो जयराम ठाकुर को अपना सीएम फेस डिक्लेयर किया ही है. खैर, सत्ता में कांग्रेस आए या भाजपा नया सीएस तो चुनना ही पड़ेगा.
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