शिमला: बहुचर्चित फर्जी डिग्री मामले की जांच में नया खुलासा हुआ है. जांच में समाने आया है कि एजेंट नंबर के हिसाब से पैसे वसूलते थे, जितने ज्यादा नंबर लेने हैं उतने ज्यादा पैसे मांगे जाते थे. यह राशि एक से ढाई लाख रुपये तक की होती थी.
जांच में ये सामने आया है कि छात्रों को फर्जी डिग्रियां एक से ढाई लाख रुपये तक में बेची गईं. सीआईडी और हिमाचल पुलिस की संयुक्त विशेष जांच टीम की जांच में यह बात सामने आई है. अब तक की जांच, बरामद हुए डिजिटल व कागजी दस्तावेज और गिरफ्तार किए गए लोगों से मिली जानकारी से विश्वविद्यालय के पूरे गोरखधंधे का पता चला है.
अब तक की जांच में फर्जी तरीके से 45 हजार से ज्यादा डिग्रियों में बीटेक, एमटेक, एमबीए और एमसीए जैसी तकनीकी शिक्षा वाली डिग्रियों को भी विश्वविद्यालय द्वारा बेचने की बात सामने आई है.
इन फर्जी डिग्रियों की मदद से बड़ी संख्या में युवाओं ने देश ही नहीं, विदेशों में भी नौकरियां हासिल कर ली हैं. जांच एजेंसी ऐसे लोगों की तलाश में जुटी है जो इन फर्जी डिग्रियों की मदद से विदेशों में नौकरियां कर रहे हैं.
जांच में यह भी पता चला है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन बिक्री के लिए एजेंट को निर्धारित रेट बताता था और उसके बाद एजेंट आगे ग्राहक से ज्यादा रकम भी वसूलते थे.
खरीददार के बदले एजेंटों को मिलता था कमीशन
विश्वविद्यालय खरीदार लाने की एवज में एजेंटों को कमीशन भी देता था. जांच में करीब 95,000 से ज्यादा फर्जी डिग्रियां बेचे जाने की जानकारी मिली है जिनके संबंध में साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं.
मामला देश ही नहीं विदेशों तक जुड़ा है. करीब एक लाख लोगों के इस अपराध में जुड़े होने के संभावना जताई जा रही है. ऐसे में एसआईटी अब भविष्य के एक्शन प्लान को लेकर खासी मेहनत कर रही है.