शिमला: राजधानी शिमला में तीसरी बार बंदरों को वर्मिन घोषित करने के बाद भी लोग बंदरों को नहीं मार रहे हैं. वहीं, अब नगर निगम शिमला शहर में बंदरों को मारने के लिए वाइल्ड लाइफ विंग के साथ चर्चा करेगा. साथ ही एक कमेटी का गठन कर प्लान तैयार करेगा.
गौरतलब है कि शिमला शहर में बंदरों के आतंक से लोग काफी परेशान हैं. स्थानीय लोगों के साथ बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटकों पर बंदर झपट पड़ते हैं. शहर में बंदरों के आतंक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर के अस्पतालों में हर दिन बंदरों के काटने के 4 केस पहुंच रहे हैं.
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नगर निगम शिमला की महापौर कुसुम सदरेट ने कहा कि बंदरों की समस्या शिमला में विकराल होती जा रही है. बंदरों को वर्मिन घोषित करने के बावजूद निगम और वन्य जीव विंग कोई कठोर निर्णय नहीं ले पाया है. उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में सेवानिवृत फौजियों को बंदरों को मारने के लिए तैनात किया गया है. वहीं, नगर निगम और वाइल्ड लाइफ विंग के अधिकारी अब इस मामले पर जल्द कोई अंतिम फैसला लेंगे.
बंदरों के आतंक से सहमे लोग
शिमला शहर में लोग बंदरों के आतंक से सहमे हुए हैं. लोग बंदरों के हमले में बुरी तरह से जख्मी हो रहे हैं. आईजीएमसी शिमला में जून में ही 122 बंदरों के काटने के मामले पहुंचे हैं. बंदर ज्यादातर महिला और बच्चों को निशाना बना रहे हैं. बंदर खाने की चीजें देखते ही झपट पड़ते हैं. शहर का कोई इलाका ऐसा नहीं है जहां बंदरों का आतंक नहीं है. बंदरों की संख्या पर अंकुश लगाने के वन विभाग की सारे प्लान भी फेल हो चुके हैं.
बता दें कि प्रदेश सरकार के आग्रह पर केंद्र सरकार ने एक बार फिर नगर निगम शिमला क्षेत्र में बंदरों को वर्मिन घोषित कर दिया है. इससे पहले भी 20 दिसंबर 2017 में बंदरों को प्रदेश भर में वर्मिन घोषित किया गया था. उसके बाद बंदरों को वर्मिन घोषित करने का सिलसिला जारी है, लेकिन विधानसभा में प्रदेश सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार अभी तक प्रदेश में 5 बंदरों को मार गया है.
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इसके अलावा अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक 2156 बंदरों की नसबंदी का दावा भी प्रशासन कर रहा है, लेकिन इनमें भी ज्यादातर बंदर शहर से बाहर के हैं. पिछले पांच सालों की बात करें तो मंकी बाइट के 2015 में 1149, 2016 में 1419, 2017 में 1442, 2018 में 1744, और 2019 में अभी तक 773 मामले दर्ज किए जा चुके हैं.