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अनुच्छेद-370 पर केंद्र सरकार के फैसले के बीच क्यों चर्चा में है हिमाचल प्रदेश की धारा-118

छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल में जमीन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए यहां की भूमि को धन्नासेठों के हाथों में जाने से रोकने के लिए धारा-118 लागू की गई थी. हिमाचल की जनता के लिए ये धारा इस कदर संवेदनशील है कि इसमें जरा सा भी संशोधन या छेड़छाड़ का जिक्र भर होने से न केवल राजनीतिक हल्कों में बल्कि आम जनमानस में भी हल्ला मच जाता है.

Section 118
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Published : Aug 5, 2019, 2:12 PM IST

शिमला. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन विधेयक को पेश किया है. इसके तहत जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दिया गया है. लद्दाख को बिना विधानसभा केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में धारा-370 को हटाने की जानकारी दी.

देश के इस बड़े घटनाक्रम के आलोक में हिमाचल से जुड़ा धारा-118 से संबंधित मामला भी है. जिस तरह धारा 370 के एक प्रावधान के अनुसार देश का कोई अन्य नागरिक जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता लगभग उसी तरह का प्रावधान हिमाचल में भी है, लेकिन यहां यह सपष्ट कर देना जरूरी है कि धारा-118 को लेकर हिमाचल के कुछ हित जुड़े हैं और कोई भी सरकार इससे छेड़खानी का रिस्क नहीं लेती है.

छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल में जमीन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए यहां की भूमि को धन्नासेठों के हाथों में जाने से रोकने के लिए धारा-118 लागू की गई थी. हिमाचल की जनता के लिए ये धारा इस कदर संवेदनशील है कि इसमें जरा सा भी संशोधन या छेड़छाड़ का जिक्र भर होने से न केवल राजनीतिक हल्कों में बल्कि आम जनमानस में भी हल्ला मच जाता है.

राज्य में सत्ता में आई सभी सरकारें इस संवेदनशील मसले पर कोई बड़ा कदम उठाने से पहले हजार बार सोचती हैं. जैसे ही धारा-118 में संशोधन का सवाल आता है, एकदम से आरोप लगने शुरू हो जाते हैं कि सत्ताधारी दल प्रदेश की भूमि को गिरवी रखने जा रहा है.

हिमाचल ऑन सेल और हिमाचल को बेचने जैसे गंभीर आरोप लगते रहे हैं. यहां तक कि एक मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि 45 साल से हिमाचल में रह रहे व्यक्तियों, जो गैर कृषक की श्रेणी में आते हैं, को भी जमीन खरीदने की अनुमति देने के लिए धारा-118 में संशोधन किया जाए. ये आदेश दो वर्ष पूर्व हाईकोर्ट ने जारी किए थे, लेकिन इस आदेश को मानने से पहले ही राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया और इस तरह एक मसला सुलगने से पहले ही ठंडा पड़ गया. इस समय हिमाचल प्रदेश में ऐसे ही एक मामले में हंगामा मचा हुआ है. हिमाचल में सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे गैर हिमाचली अफसरों व कर्मियों के बच्चों को आवास बनाने के लिए जमीन खरीदने संबंधी अनुमति एक्सटेंड करने को लेकर जयराम सरकार बुरी तरह से घिरी.

हालांकि इस मामले में सितंबर 2014 में कांग्रेस सरकार ने नींव रख दी थी, लेकिन बवाल मच ही गया. ऐसे में यहां ये जानना दिलचस्प है कि धारा-118 को लेकर कब-कब बड़े घटनाक्रम हुए. इस मामले में सबसे बड़ा घटनाक्रम वर्ष 2016 में पेश आया था. उस समय हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 23 सितंबर को एक आदेश पारित किया.

आदेश के अनुसार राज्य सरकार को कहा गया कि वो हिमाचल प्रदेश टैनेंसी एंड लैंड रिफाम्र्स एक्ट की धारा-118 में संशोधन करे. अदालत ने निर्देश दिया था कि नब्बे दिन के भीतर-भीतर संशोधन कर उन गैर कृषकों को जमीन खरीदने की अनुमति दी जाए, जो वर्ष 1972 से पहले से हिमाचल में रह रहे हैं.

यहां ये जानना जरूरी है कि हिमाचल में दस बीघा से कम भूमि के मालिक लोग गैर कृषकों की श्रेणी में आते हैं. वे यहां जमीन नहीं खरीद सकते. इसके अलावा बाहरी राज्यों के लोग भी हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते. ऐसे लोगों को जमीन खरीदने के लिए धारा-118 के तहत राज्य सरकार को आवेदन करना होता है. उनके आवेदन पर कैबिनेट में फैसला होता है.

Section 118
कॉन्सेप्ट इमेज.

यानी धारा-118 के तहत गैर कृषकों व बाहरी राज्यों के लोगों को यहां जमीन खरीदने की अनुमति नहीं है. ये सब प्रबंध इसलिए किया गया, ताकि हिमाचल की जमीन भू-माफियाओं के कब्जे में न चली जाए और खेती के लिए जमीन कम हो जाए. देश विभाजन के बाद पंजाब व अन्य इलाकों के लोग आकर हिमाचल में बस गए. उनके पास यहां कृषि लायक जमीन नहीं थी.

ऐसे लोगों को मकान बनाने के लिए चार बिस्वा व दुकान चलाने के लिए छह बिस्वा जमीन खरीदने की अनुमति है. इससे अधिक जमीन वे नहीं खरीद सकते हैं. दो साल पहले हिमाचल हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा (अब नैनीताल हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश) व न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि कई परिवार हिमाचल में 1972 से भी काफी समय से पहले रहते आ रहे हैं.

उनकी आगे की पीढिय़ां यहीं पली-बढ़ी हैं, लेकिन वे यहां जमीन नहीं खरीद सकते हैं. ऐसे लोगों को सुविधा देने के लिए हाईकोर्ट ने कानून में संशोधन की बात कही. हाइकोर्ट ने यह भी कहा था कि हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म एक्ट की धारा-118 से संबंधित लंबे समय मुकदमेबाजी चली आ रही है.

बड़ी संख्या में लोगों को गैर कृषक होने के कारण प्रदेश में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है, जबकि वे दशकों से प्रदेश में रह रहे हैं और इस नाते अब हिमाचली भी हैं. उल्लेखनीय है कि धारा-118 में कृषक की परिभाषा में कहा गया है कि वह हिमाचल में पंजीकृत किसान होना चाहिए. इस तरह से कोई गैर हिमाचली यहां जमीन नहीं खरीद पाते.

विवाद में फंसने की बजाय सुप्रीम कोर्ट गई वीरभद्र सरकार
हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार यदि सरकार धारा-118 में संशोधन करती तो भी एक मुद्दा बन जाता. लिहाजा तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली. सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2017 में सुनवाई के दौरान हिमाचल हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया.

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद हिमाचल में मुजारियत एवं भू सुधार कानून 1972 की धारा-118 में बदलाव के आसार खत्म हो गए. इस बारे में संशोधन को लेकर दिया गया हिमाचल हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिक पाया है.

तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पेटीशन दायर की थी. इस तरह एक विवाद शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया. उस समय हिमाचल के राजस्व मंत्री का कार्यभार कौल सिंह ठाकुर के पास था.

ये भी पढ़ेंः JK LIVE: जम्मू-कश्मीर को मिले विशेषाधिकार खत्म, राष्ट्रपति की भी मंजूरी

शिमला. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन विधेयक को पेश किया है. इसके तहत जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दिया गया है. लद्दाख को बिना विधानसभा केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में धारा-370 को हटाने की जानकारी दी.

देश के इस बड़े घटनाक्रम के आलोक में हिमाचल से जुड़ा धारा-118 से संबंधित मामला भी है. जिस तरह धारा 370 के एक प्रावधान के अनुसार देश का कोई अन्य नागरिक जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता लगभग उसी तरह का प्रावधान हिमाचल में भी है, लेकिन यहां यह सपष्ट कर देना जरूरी है कि धारा-118 को लेकर हिमाचल के कुछ हित जुड़े हैं और कोई भी सरकार इससे छेड़खानी का रिस्क नहीं लेती है.

छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल में जमीन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए यहां की भूमि को धन्नासेठों के हाथों में जाने से रोकने के लिए धारा-118 लागू की गई थी. हिमाचल की जनता के लिए ये धारा इस कदर संवेदनशील है कि इसमें जरा सा भी संशोधन या छेड़छाड़ का जिक्र भर होने से न केवल राजनीतिक हल्कों में बल्कि आम जनमानस में भी हल्ला मच जाता है.

राज्य में सत्ता में आई सभी सरकारें इस संवेदनशील मसले पर कोई बड़ा कदम उठाने से पहले हजार बार सोचती हैं. जैसे ही धारा-118 में संशोधन का सवाल आता है, एकदम से आरोप लगने शुरू हो जाते हैं कि सत्ताधारी दल प्रदेश की भूमि को गिरवी रखने जा रहा है.

हिमाचल ऑन सेल और हिमाचल को बेचने जैसे गंभीर आरोप लगते रहे हैं. यहां तक कि एक मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि 45 साल से हिमाचल में रह रहे व्यक्तियों, जो गैर कृषक की श्रेणी में आते हैं, को भी जमीन खरीदने की अनुमति देने के लिए धारा-118 में संशोधन किया जाए. ये आदेश दो वर्ष पूर्व हाईकोर्ट ने जारी किए थे, लेकिन इस आदेश को मानने से पहले ही राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया और इस तरह एक मसला सुलगने से पहले ही ठंडा पड़ गया. इस समय हिमाचल प्रदेश में ऐसे ही एक मामले में हंगामा मचा हुआ है. हिमाचल में सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे गैर हिमाचली अफसरों व कर्मियों के बच्चों को आवास बनाने के लिए जमीन खरीदने संबंधी अनुमति एक्सटेंड करने को लेकर जयराम सरकार बुरी तरह से घिरी.

हालांकि इस मामले में सितंबर 2014 में कांग्रेस सरकार ने नींव रख दी थी, लेकिन बवाल मच ही गया. ऐसे में यहां ये जानना दिलचस्प है कि धारा-118 को लेकर कब-कब बड़े घटनाक्रम हुए. इस मामले में सबसे बड़ा घटनाक्रम वर्ष 2016 में पेश आया था. उस समय हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 23 सितंबर को एक आदेश पारित किया.

आदेश के अनुसार राज्य सरकार को कहा गया कि वो हिमाचल प्रदेश टैनेंसी एंड लैंड रिफाम्र्स एक्ट की धारा-118 में संशोधन करे. अदालत ने निर्देश दिया था कि नब्बे दिन के भीतर-भीतर संशोधन कर उन गैर कृषकों को जमीन खरीदने की अनुमति दी जाए, जो वर्ष 1972 से पहले से हिमाचल में रह रहे हैं.

यहां ये जानना जरूरी है कि हिमाचल में दस बीघा से कम भूमि के मालिक लोग गैर कृषकों की श्रेणी में आते हैं. वे यहां जमीन नहीं खरीद सकते. इसके अलावा बाहरी राज्यों के लोग भी हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते. ऐसे लोगों को जमीन खरीदने के लिए धारा-118 के तहत राज्य सरकार को आवेदन करना होता है. उनके आवेदन पर कैबिनेट में फैसला होता है.

Section 118
कॉन्सेप्ट इमेज.

यानी धारा-118 के तहत गैर कृषकों व बाहरी राज्यों के लोगों को यहां जमीन खरीदने की अनुमति नहीं है. ये सब प्रबंध इसलिए किया गया, ताकि हिमाचल की जमीन भू-माफियाओं के कब्जे में न चली जाए और खेती के लिए जमीन कम हो जाए. देश विभाजन के बाद पंजाब व अन्य इलाकों के लोग आकर हिमाचल में बस गए. उनके पास यहां कृषि लायक जमीन नहीं थी.

ऐसे लोगों को मकान बनाने के लिए चार बिस्वा व दुकान चलाने के लिए छह बिस्वा जमीन खरीदने की अनुमति है. इससे अधिक जमीन वे नहीं खरीद सकते हैं. दो साल पहले हिमाचल हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा (अब नैनीताल हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश) व न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि कई परिवार हिमाचल में 1972 से भी काफी समय से पहले रहते आ रहे हैं.

उनकी आगे की पीढिय़ां यहीं पली-बढ़ी हैं, लेकिन वे यहां जमीन नहीं खरीद सकते हैं. ऐसे लोगों को सुविधा देने के लिए हाईकोर्ट ने कानून में संशोधन की बात कही. हाइकोर्ट ने यह भी कहा था कि हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म एक्ट की धारा-118 से संबंधित लंबे समय मुकदमेबाजी चली आ रही है.

बड़ी संख्या में लोगों को गैर कृषक होने के कारण प्रदेश में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है, जबकि वे दशकों से प्रदेश में रह रहे हैं और इस नाते अब हिमाचली भी हैं. उल्लेखनीय है कि धारा-118 में कृषक की परिभाषा में कहा गया है कि वह हिमाचल में पंजीकृत किसान होना चाहिए. इस तरह से कोई गैर हिमाचली यहां जमीन नहीं खरीद पाते.

विवाद में फंसने की बजाय सुप्रीम कोर्ट गई वीरभद्र सरकार
हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार यदि सरकार धारा-118 में संशोधन करती तो भी एक मुद्दा बन जाता. लिहाजा तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली. सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2017 में सुनवाई के दौरान हिमाचल हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया.

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद हिमाचल में मुजारियत एवं भू सुधार कानून 1972 की धारा-118 में बदलाव के आसार खत्म हो गए. इस बारे में संशोधन को लेकर दिया गया हिमाचल हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिक पाया है.

तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पेटीशन दायर की थी. इस तरह एक विवाद शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया. उस समय हिमाचल के राजस्व मंत्री का कार्यभार कौल सिंह ठाकुर के पास था.

ये भी पढ़ेंः JK LIVE: जम्मू-कश्मीर को मिले विशेषाधिकार खत्म, राष्ट्रपति की भी मंजूरी

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Section 118 HP Tenancy and Land Reform Act 1972




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