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Free Electricity देनी है तो स्मार्ट मीटर लगाने की क्या जरूरत, बिजली बोर्ड के कर्मचारियों ने ही खड़े किए सवाल! - Electricity board employees against smart meter

हिमाचल की सुक्खू सरकार प्रदेश में करीब 26 लाख घरों में स्मार्ट मीटर लगाने जा रही है. इसको लेकर बिजली बोर्ड ने 1796 करोड़ का टेंडर जारी भी कर दिया है, लेकिन बिजली बोर्ड के कर्मचारी ही इस प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े कर रहे है. कर्मचारियों का कहना है कि जब 300 यूनिट बिजली फ्री देनी है तो इस स्मार्ट मीटर का क्या औचित्य है? वहीं, स्मार्ट मीटर लगाने से पहले से घाटे में चल रहे बिजली बोर्ड पर और बोझ बढ़ेगा.

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हिमाचल में स्मार्ट मीटर का विरोध
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Published : Jun 4, 2023, 7:06 PM IST

Updated : Jun 4, 2023, 9:47 PM IST

हिमाचल में स्मार्ट मीटर का विरोध

शिमला: हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड प्रदेश में आम मीटरों की जगह नए स्मार्ट मीटर लगाने जा रहा है. बिजली बोर्ड ने इसके लिए टेंडर भी जारी कर दिए हैं. हालांकि, इन मीटरों के लिए पहले भी टेंडर जारी किए गए थे, लेकिन सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने इस टेंडर को रद्द कर दिया था. अब एक बार फिर से स्मार्ट मीटरों के लिए बिजली बोर्ड ने टेंडर कर दिए हैं, लेकिन स्मार्ट मीटर लगाने की इस योजना पर सवाल उठ रहे हैं.

स्मार्ट मीटर का हो रहा विरोध: बिजली बोर्ड ने प्रदेश में स्मार्ट मीटर लगाने के लिए करीब 1,796 करोड़ का टेंडर जारी किया है, जिसमें करीब 26 लाख स्मार्ट मीटर लगाए जाने हैं. एक स्मार्ट मीटर की कीमत 9 से 10 हजार के बीच में रहेगी. मीटर लगाने का यह काम निजी कंपनी के साथ पीपीपी मोड पर किया जाएगा. मीटर की कीमत कई सालों तक वसूली जाएगी, जिसके लिए हर माह एक रेंट निर्धारित किया जाएगा, लेकिन इसको लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. क्योंकि जब सरकार बिजली फ्री दे रही है तो इन मीटरों का लगाने का औचित्य क्या है? बिजली बोर्ड के कर्मचारी इन बिजली के मीटरों का विरोध कर रहे हैं. क्योंकि इनके लगाने का अधिकांश खर्च बिजली बोर्ड को ही वहन करना पड़ेगा, जो पहले से ही करीब ₹1,800 करोड़ के घाटे में है और इसका घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है.

आरडीएसएस के तहत होगा काम: हिमाचल में बिजली के स्मार्ट मीटर लगाने का काम केंद्र की आरडीएसएस (रिवैंप्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम) का हिस्सा है, जिसके तहत केंद्र सरकार की ओर से 3,700 करोड़ ग्रांट दी जानी है. जिसमें एक काम स्मार्ट मीटरिंग का है और दूसरा सिस्टम अपग्रेडेशन का है, लेकिन इसके लिए कई शर्तें हैं. एक बड़ी शर्त यह है कि यह काम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड के तहत करना होगा. वहीं, इसमें एक मीटर का अधिकतम सब्सिडी केंद्र से की ओर से अधिकतम 1350 रुपए ही मिल पाएगी, जबकि मीटर की कीमत 9 से 10 हजार रुपए के बीच बताई जा रही है. इस तरह केंद्र से प्रदेश को स्मार्ट मीटर के लिए करीब 350 करोड़ रुपए की ग्रांट मिलने की ही संभावना है. वहीं अगर इन शर्तो को नहीं माना गया तो केंद्र से मिलने वाली ग्रांट लोन में बदल जाएगी.

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स्मार्ट मीटर प्रोजेक्ट

धर्मशाला और शिमला में लगाए गए स्मार्ट मीटर: प्रदेश में अभी तक धर्मशाला और शिमला में स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं. दोनों स्मार्ट करीब 1.50 लाख स्मार्ट मीटर लगे हैं. कर्मचारियों की मानें तो इसमें करीब एक लाख मीटर का खर्च स्मार्ट सिटी के फंड से वहन किया गया है जबकि बाकी 50 हजार मीटरों का खर्चा बिजली बोर्ड ने वहन किया है. ऐसे में जो नए मीटर लगाए जाएंगे उसके लिए या तो बिजली बोर्ड को करोड़ों का लोन लेना होगा या कंपनी इनको अपने पैसे से लगाएगी और इसके बाद इनको वह बिजली बोर्ड से वसूलेगी क्योंकि सरकार ने बिजली के साथ मीटर रेंट भी माफ कर रखा है.

मीटर लगाने वाली कंपनी को हर माह देना होगा रेंट: केंद्र से मीटर के लिए करीब 350 करोड़ की राशि के अलावा बाकी का खर्च मीटर लगाने वाली कंपनी वहन करेगी और मीटर लगाने पर इसका रेंट हर माह वसूला जाएगा. यह रेंट 90 से 110 रुपए तक अनुमानित है कि जो कि हर माह कई सालों तक वसूला जाएगा. सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर इस रेंट को कौन वहन करेगा? क्योंकि सरकार उपभोक्ताओं 125 यूनिट बिजली फ्री में दे रही है. कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले 300 यूनिट बिजली देने का वादा किया है. यानी देर सवेर सरकार 300 यूनिट बिजली फ्री देने लगेगी तो इस रेंट को कौन देगा? इस रेंट को या तो बिजली बोर्ड को देना पड़ेगा या सरकार को चुकाना होगा. जबकि हालात यह है कि 125 यूनिट फ्री बिजली के बदले राज्य सरकार की ओर से सब्सिडी की राशि बिजली बोर्ड को समय पर नहीं मिल रही.

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स्मार्ट मीटर प्रोजक्ट का विरोध

300 यूनिट फ्री होने पर अधिकांश घरों में नहीं आएंगे बिल: हिमाचल में पूर्व सरकार ने जब 60 यूनिट फ्री देने का फैसला लिया था, तब करीब चार लाख उपभोक्ताओं को बिल नहीं आ रहे थे. इसके बाद फ्री बिजली को बढ़ाकर 125 यूनिट करने से सीधे करीब 14.62 लाख लोग बिजली बिलों से दायरे से बाहर हो गए. अब अगर सरकार 300 यूनिट बिजली फ्री करती है, जो सरकार की गारंटी भी है तो बिजली बिल देने से अधिकांश लोगों को छूट मिल जाएगी. प्रदेश में 18 लाख से अधिक उपभोक्ता 300 यूनिट से कम बिजली की खपत करते हैं, जो बिल से बाहर हो जाएंगे. इस तरह महज 6 से 7 लाख उपभोक्ता ही बचेंगे जो बिजली का बिल देंगे. 300 यूनिट बिजली फ्री करने पर ये उपभोक्ता भी 300 यूनिट तक ही बिजली खर्च करने का प्रयास कर सकते हैं, जिससे फ्री बिजली वालों का दायरा 20 लाख से ज्यादा हो सकता है. यानी बिजली के बिलों की अदायगी करने वाले बड़ी औद्योगिक इकाइयां ही रहेगी.

बिजली बोर्ड के कर्मचारी उठा रहे हैं सवाल: बिजली बोर्ड के कर्मचारी स्मार्ट मीटरिंग सिस्टम को लेकर सवाल उठा रहे हैं. बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष कामेश्वरदत्त का कहना है कि जब लोगों को फ्री बिजली दी जा रही है तो 10 हजार का एक स्मार्ट मीटर लगाने का औचित्य क्या है. उनका कहना है कि बिजली की खपत का ब्यौरा तो पहले से लगाए गए 400 से 500 रुपए की कीमत वाले मीटर में भी आ रहा है. उनका कहना है कि यह काम पीपीपी मोड पर किया जा रहा है जाहिर तौर पर बिजली बोर्ड में प्राइवेट कंपनियां आएंगी और इस तरह यह बिजली बोर्ड के निजीकरण की ओर एक बड़ा कदम होगा.

स्मार्ट मीटर लगाने से पड़ेगा 2800 करोड़ का बोझ: बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के महासचिव हीरालाल वर्मा का कहना है कि केंद्र सरकार ने आरडीएसएस के तहत जो फंड देने की बात कही है. उससे कहीं अधिक खर्च हिमाचल बिजली बोर्ड के इस पर करना पड़ेगा. शर्तों के मुताबिक केंद्र से अधिकतम 350 करोड़ ही स्मार्ट मीटर के लिए मिल पाएंगे. जबकि स्मार्ट मीटर लगाने का यह प्रोजेक्ट 2700 से 2800 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है. इस तरह करीब 2,450 करोड रुपए बिजली बोर्ड को वहन करना पड़ेगा.

सिस्टम अपग्रेडेशन से बढ़ेगा बिजली बोर्ड का घाटा: इसी तरह केंद्र सरकार आरडीएसएस के तहत सिस्टम अपग्रेडेशन के लिए 1900 करोड़ की ग्रांट देने की बात कर रही है, उसमें पहली शर्त तो स्मार्ट मीटर की बिजली बोर्ड को माननी पड़ेगी. जिसमें पहले ही 2,450 करोड़ रुपए का खुद बोर्ड को वहन करना पड़ेगा. वहीं, सिस्टम अपग्रडेशन के कार्यों पर भी करीब 800-900 करोड़ बिजली बोर्ड को खर्च करना पड़ेगा. जबकि बोर्ड पहले ही करीब 1800 करोड़ के घाटे में जा रहा है. ऐसे में यह एक तरह बिजली बोर्ड के अस्तित्व को खत्म करने जैसा कदम होगा क्योंकि इस सिस्टम को अपनाने से सारा काम निजी कंपनी को चला जाएगा.

4500 कर्मचारियों के रोजगार पर खतरा: जिसकी वजह से इस काम में लगे करीब 4,500 कर्मचारियों का भी रोजगार चला जाएगा. ऐसे में सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. क्योंकि यह न तो बिजली बोर्ड के हित में है और नही लंबे समय के लिए आम जनता के हित में होगा. बिजली खपत बिलिंग का कार्य बिजली बोर्ड के अलावा तीसरे पक्ष की ओर से किया जाएगा. उनका कहना है कि केंद्र सरकार की योजना बिजली बोर्ड को निजी हाथों में सौपने की है, जिसके दूरगाम परिणाम होंगे. ऐसे में सरकार को इस बारे में सोच समझकर कदम उठाने की जरूरत है.
ये भी पढ़ें: हिमाचल प्रदेश में लगेंगे बिजली के स्मार्ट मीटर, आने वाले समय में मोबाइल से होगा रिचार्ज

हिमाचल में स्मार्ट मीटर का विरोध

शिमला: हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड प्रदेश में आम मीटरों की जगह नए स्मार्ट मीटर लगाने जा रहा है. बिजली बोर्ड ने इसके लिए टेंडर भी जारी कर दिए हैं. हालांकि, इन मीटरों के लिए पहले भी टेंडर जारी किए गए थे, लेकिन सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने इस टेंडर को रद्द कर दिया था. अब एक बार फिर से स्मार्ट मीटरों के लिए बिजली बोर्ड ने टेंडर कर दिए हैं, लेकिन स्मार्ट मीटर लगाने की इस योजना पर सवाल उठ रहे हैं.

स्मार्ट मीटर का हो रहा विरोध: बिजली बोर्ड ने प्रदेश में स्मार्ट मीटर लगाने के लिए करीब 1,796 करोड़ का टेंडर जारी किया है, जिसमें करीब 26 लाख स्मार्ट मीटर लगाए जाने हैं. एक स्मार्ट मीटर की कीमत 9 से 10 हजार के बीच में रहेगी. मीटर लगाने का यह काम निजी कंपनी के साथ पीपीपी मोड पर किया जाएगा. मीटर की कीमत कई सालों तक वसूली जाएगी, जिसके लिए हर माह एक रेंट निर्धारित किया जाएगा, लेकिन इसको लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. क्योंकि जब सरकार बिजली फ्री दे रही है तो इन मीटरों का लगाने का औचित्य क्या है? बिजली बोर्ड के कर्मचारी इन बिजली के मीटरों का विरोध कर रहे हैं. क्योंकि इनके लगाने का अधिकांश खर्च बिजली बोर्ड को ही वहन करना पड़ेगा, जो पहले से ही करीब ₹1,800 करोड़ के घाटे में है और इसका घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है.

आरडीएसएस के तहत होगा काम: हिमाचल में बिजली के स्मार्ट मीटर लगाने का काम केंद्र की आरडीएसएस (रिवैंप्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम) का हिस्सा है, जिसके तहत केंद्र सरकार की ओर से 3,700 करोड़ ग्रांट दी जानी है. जिसमें एक काम स्मार्ट मीटरिंग का है और दूसरा सिस्टम अपग्रेडेशन का है, लेकिन इसके लिए कई शर्तें हैं. एक बड़ी शर्त यह है कि यह काम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड के तहत करना होगा. वहीं, इसमें एक मीटर का अधिकतम सब्सिडी केंद्र से की ओर से अधिकतम 1350 रुपए ही मिल पाएगी, जबकि मीटर की कीमत 9 से 10 हजार रुपए के बीच बताई जा रही है. इस तरह केंद्र से प्रदेश को स्मार्ट मीटर के लिए करीब 350 करोड़ रुपए की ग्रांट मिलने की ही संभावना है. वहीं अगर इन शर्तो को नहीं माना गया तो केंद्र से मिलने वाली ग्रांट लोन में बदल जाएगी.

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स्मार्ट मीटर प्रोजेक्ट

धर्मशाला और शिमला में लगाए गए स्मार्ट मीटर: प्रदेश में अभी तक धर्मशाला और शिमला में स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं. दोनों स्मार्ट करीब 1.50 लाख स्मार्ट मीटर लगे हैं. कर्मचारियों की मानें तो इसमें करीब एक लाख मीटर का खर्च स्मार्ट सिटी के फंड से वहन किया गया है जबकि बाकी 50 हजार मीटरों का खर्चा बिजली बोर्ड ने वहन किया है. ऐसे में जो नए मीटर लगाए जाएंगे उसके लिए या तो बिजली बोर्ड को करोड़ों का लोन लेना होगा या कंपनी इनको अपने पैसे से लगाएगी और इसके बाद इनको वह बिजली बोर्ड से वसूलेगी क्योंकि सरकार ने बिजली के साथ मीटर रेंट भी माफ कर रखा है.

मीटर लगाने वाली कंपनी को हर माह देना होगा रेंट: केंद्र से मीटर के लिए करीब 350 करोड़ की राशि के अलावा बाकी का खर्च मीटर लगाने वाली कंपनी वहन करेगी और मीटर लगाने पर इसका रेंट हर माह वसूला जाएगा. यह रेंट 90 से 110 रुपए तक अनुमानित है कि जो कि हर माह कई सालों तक वसूला जाएगा. सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर इस रेंट को कौन वहन करेगा? क्योंकि सरकार उपभोक्ताओं 125 यूनिट बिजली फ्री में दे रही है. कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले 300 यूनिट बिजली देने का वादा किया है. यानी देर सवेर सरकार 300 यूनिट बिजली फ्री देने लगेगी तो इस रेंट को कौन देगा? इस रेंट को या तो बिजली बोर्ड को देना पड़ेगा या सरकार को चुकाना होगा. जबकि हालात यह है कि 125 यूनिट फ्री बिजली के बदले राज्य सरकार की ओर से सब्सिडी की राशि बिजली बोर्ड को समय पर नहीं मिल रही.

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300 यूनिट फ्री होने पर अधिकांश घरों में नहीं आएंगे बिल: हिमाचल में पूर्व सरकार ने जब 60 यूनिट फ्री देने का फैसला लिया था, तब करीब चार लाख उपभोक्ताओं को बिल नहीं आ रहे थे. इसके बाद फ्री बिजली को बढ़ाकर 125 यूनिट करने से सीधे करीब 14.62 लाख लोग बिजली बिलों से दायरे से बाहर हो गए. अब अगर सरकार 300 यूनिट बिजली फ्री करती है, जो सरकार की गारंटी भी है तो बिजली बिल देने से अधिकांश लोगों को छूट मिल जाएगी. प्रदेश में 18 लाख से अधिक उपभोक्ता 300 यूनिट से कम बिजली की खपत करते हैं, जो बिल से बाहर हो जाएंगे. इस तरह महज 6 से 7 लाख उपभोक्ता ही बचेंगे जो बिजली का बिल देंगे. 300 यूनिट बिजली फ्री करने पर ये उपभोक्ता भी 300 यूनिट तक ही बिजली खर्च करने का प्रयास कर सकते हैं, जिससे फ्री बिजली वालों का दायरा 20 लाख से ज्यादा हो सकता है. यानी बिजली के बिलों की अदायगी करने वाले बड़ी औद्योगिक इकाइयां ही रहेगी.

बिजली बोर्ड के कर्मचारी उठा रहे हैं सवाल: बिजली बोर्ड के कर्मचारी स्मार्ट मीटरिंग सिस्टम को लेकर सवाल उठा रहे हैं. बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष कामेश्वरदत्त का कहना है कि जब लोगों को फ्री बिजली दी जा रही है तो 10 हजार का एक स्मार्ट मीटर लगाने का औचित्य क्या है. उनका कहना है कि बिजली की खपत का ब्यौरा तो पहले से लगाए गए 400 से 500 रुपए की कीमत वाले मीटर में भी आ रहा है. उनका कहना है कि यह काम पीपीपी मोड पर किया जा रहा है जाहिर तौर पर बिजली बोर्ड में प्राइवेट कंपनियां आएंगी और इस तरह यह बिजली बोर्ड के निजीकरण की ओर एक बड़ा कदम होगा.

स्मार्ट मीटर लगाने से पड़ेगा 2800 करोड़ का बोझ: बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के महासचिव हीरालाल वर्मा का कहना है कि केंद्र सरकार ने आरडीएसएस के तहत जो फंड देने की बात कही है. उससे कहीं अधिक खर्च हिमाचल बिजली बोर्ड के इस पर करना पड़ेगा. शर्तों के मुताबिक केंद्र से अधिकतम 350 करोड़ ही स्मार्ट मीटर के लिए मिल पाएंगे. जबकि स्मार्ट मीटर लगाने का यह प्रोजेक्ट 2700 से 2800 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है. इस तरह करीब 2,450 करोड रुपए बिजली बोर्ड को वहन करना पड़ेगा.

सिस्टम अपग्रेडेशन से बढ़ेगा बिजली बोर्ड का घाटा: इसी तरह केंद्र सरकार आरडीएसएस के तहत सिस्टम अपग्रेडेशन के लिए 1900 करोड़ की ग्रांट देने की बात कर रही है, उसमें पहली शर्त तो स्मार्ट मीटर की बिजली बोर्ड को माननी पड़ेगी. जिसमें पहले ही 2,450 करोड़ रुपए का खुद बोर्ड को वहन करना पड़ेगा. वहीं, सिस्टम अपग्रडेशन के कार्यों पर भी करीब 800-900 करोड़ बिजली बोर्ड को खर्च करना पड़ेगा. जबकि बोर्ड पहले ही करीब 1800 करोड़ के घाटे में जा रहा है. ऐसे में यह एक तरह बिजली बोर्ड के अस्तित्व को खत्म करने जैसा कदम होगा क्योंकि इस सिस्टम को अपनाने से सारा काम निजी कंपनी को चला जाएगा.

4500 कर्मचारियों के रोजगार पर खतरा: जिसकी वजह से इस काम में लगे करीब 4,500 कर्मचारियों का भी रोजगार चला जाएगा. ऐसे में सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. क्योंकि यह न तो बिजली बोर्ड के हित में है और नही लंबे समय के लिए आम जनता के हित में होगा. बिजली खपत बिलिंग का कार्य बिजली बोर्ड के अलावा तीसरे पक्ष की ओर से किया जाएगा. उनका कहना है कि केंद्र सरकार की योजना बिजली बोर्ड को निजी हाथों में सौपने की है, जिसके दूरगाम परिणाम होंगे. ऐसे में सरकार को इस बारे में सोच समझकर कदम उठाने की जरूरत है.
ये भी पढ़ें: हिमाचल प्रदेश में लगेंगे बिजली के स्मार्ट मीटर, आने वाले समय में मोबाइल से होगा रिचार्ज

Last Updated : Jun 4, 2023, 9:47 PM IST
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