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एचजेएस परीक्षा: समय पर चरित्र प्रमाण पत्र न देने पर अयोग्य आवेदनकर्ता को सुप्रीम कोर्ट से राहत, रद्द हुए थे 1700 आवेदन

सुप्रीम कोर्ट ने HJS की परीक्षा के लिए समय पर चरित्र प्रमाण पत्र जमा ना करने वाले आवेदनकर्ताओं को अंतिरम राहत दी है. पढ़ें पूरी खबर... (Himachal Pradesh Judicial Services).

Himachal Pradesh Judicial Services
सांकेतिक तस्वीर.
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Published : Jul 7, 2023, 8:11 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश ज्यूडिशियल सर्विसेज यानी एचजेएस की परीक्षा के लिए समय पर चरित्र प्रमाण पत्र जमा न करने वाले आवेदनकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिल गई है. रविवार नौ जुलाई को होने वाली छंटनी परीक्षा के लिए हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग ने कुल 1700 आवेदन रद्द कर दिए थे. कारण ये था कि आवेदकों ने तय समय में चरित्र प्रमाण पत्र जमा नहीं किए थे. आयोग की दलील थी कि समय पर दस्तावेज अपलोड न करने से आवेदन मंजूर नहीं किए जा सकते. इस फैसले से प्रभावित अभ्यर्थी हाई कोर्ट पहुंचे थे, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा और वहां से अंतरिम राहत मिल गई. प्रार्थी याचिका के जरिए राहत की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए आयोग को निर्देश जारी किया कि वे प्रार्थियों को परीक्षा के लिए उचित प्रवेश पत्र दे.

इससे पूर्व हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सरकारी प्राधिकरण से जारी किए जाने वाले प्रमाणपत्र जैसे जाति, उपजाति, अनुसूचित जाति, चरित्र प्रमाण पत्र, स्थायी निवासी प्रमाण पत्र को आवेदन करने की अंतिम तिथि से पहले हासिल करने में परेशानी आ सकती है. ऐसे में उपरोक्त प्रमाण पत्रों को आवेदन करने की अंतिम तिथि के बाद भी जमा करवाया जा सकता है. परंतु याचिकाकर्ताओं को जो चरित्र प्रमाण पत्र अपलोड करने थे वे किसी सरकारी प्राधिकरण से जारी नहीं किए जाने थे. उम्मीदवारों को दो गजेटेड अफसरों से इसे लेकर अपलोड करना था और ये आसानी से किया जा सकता था.

हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के अनुसार सिविल जज परीक्षा के लिए 22 अप्रैल 2023 को अधिसूचना जारी की गई थी. उम्मीदवारों को निर्धारित नियमों के अनुरूप दस्तावेज अपलोड करने के निर्देश दिए गए थे. 28 अप्रैल, 10 मई और 12 मई 2023 को आयोग ने उम्मीदवारों से नियमों के अनुरूप दस्तावेज अपलोड करने के लिए फिर से निर्देश दिए थे. हाईकोर्ट में आयोग ने बताया था कि इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं ने अपने प्रमाणपत्र अपलोड नहीं किए. आयोग ने दलील दी कि सिविल जज के लिए 9 जुलाई को छंटनी परीक्षा निर्धारित की गई है. सभी उम्मीदवारों के लिए रोल नंबर और परीक्षा केंद्र आवंटित किए जा चुके हैं. परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र भी उसी हिसाब से छपवाए गए हैं. यदि याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाती है तो यह आयोग के लिए असुविधा होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने दी ये राहत: मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि एचजेएस की प्रीलिमनरी यानी प्रारंभिक परीक्षा 9 जुलाई से शुरू होनी है, लेकिन याचिकाकर्ताओं को उचित प्रारूप में या पूर्ण विवरण के साथ क्रेडेंशियल प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं करने के कारण परीक्षा से बाहर कर दिया गया है. याचिकर्ता के अनुसार विज्ञापन की शर्तों को देखते हुए, क्रेडेंशियल यानी साख प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं करना आवश्यक योग्यता नहीं माना जा सकता है. ऐसे में उपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरदाताओं को यह निर्देश दिए कि वे याचिकाकर्ताओं को परीक्षा के लिए केंद्र निर्दिष्ट करते हुए जरूरी प्रवेश पत्र जारी करके नौ जुलाई को शुरू होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में अंतरिम रूप से उपस्थित होने की अनुमति दें. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया गया है कि इस अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई इक्विटी नहीं बनेगी.

ये भी पढ़ें- Himachal Forelane News: हिमाचल में फोरलेन के किनारों पर 100 मीटर में नहीं हो सकेगा कोई भी निर्माण, अधिसूचना जारी

शिमला: हिमाचल प्रदेश ज्यूडिशियल सर्विसेज यानी एचजेएस की परीक्षा के लिए समय पर चरित्र प्रमाण पत्र जमा न करने वाले आवेदनकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिल गई है. रविवार नौ जुलाई को होने वाली छंटनी परीक्षा के लिए हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग ने कुल 1700 आवेदन रद्द कर दिए थे. कारण ये था कि आवेदकों ने तय समय में चरित्र प्रमाण पत्र जमा नहीं किए थे. आयोग की दलील थी कि समय पर दस्तावेज अपलोड न करने से आवेदन मंजूर नहीं किए जा सकते. इस फैसले से प्रभावित अभ्यर्थी हाई कोर्ट पहुंचे थे, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा और वहां से अंतरिम राहत मिल गई. प्रार्थी याचिका के जरिए राहत की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए आयोग को निर्देश जारी किया कि वे प्रार्थियों को परीक्षा के लिए उचित प्रवेश पत्र दे.

इससे पूर्व हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सरकारी प्राधिकरण से जारी किए जाने वाले प्रमाणपत्र जैसे जाति, उपजाति, अनुसूचित जाति, चरित्र प्रमाण पत्र, स्थायी निवासी प्रमाण पत्र को आवेदन करने की अंतिम तिथि से पहले हासिल करने में परेशानी आ सकती है. ऐसे में उपरोक्त प्रमाण पत्रों को आवेदन करने की अंतिम तिथि के बाद भी जमा करवाया जा सकता है. परंतु याचिकाकर्ताओं को जो चरित्र प्रमाण पत्र अपलोड करने थे वे किसी सरकारी प्राधिकरण से जारी नहीं किए जाने थे. उम्मीदवारों को दो गजेटेड अफसरों से इसे लेकर अपलोड करना था और ये आसानी से किया जा सकता था.

हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के अनुसार सिविल जज परीक्षा के लिए 22 अप्रैल 2023 को अधिसूचना जारी की गई थी. उम्मीदवारों को निर्धारित नियमों के अनुरूप दस्तावेज अपलोड करने के निर्देश दिए गए थे. 28 अप्रैल, 10 मई और 12 मई 2023 को आयोग ने उम्मीदवारों से नियमों के अनुरूप दस्तावेज अपलोड करने के लिए फिर से निर्देश दिए थे. हाईकोर्ट में आयोग ने बताया था कि इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं ने अपने प्रमाणपत्र अपलोड नहीं किए. आयोग ने दलील दी कि सिविल जज के लिए 9 जुलाई को छंटनी परीक्षा निर्धारित की गई है. सभी उम्मीदवारों के लिए रोल नंबर और परीक्षा केंद्र आवंटित किए जा चुके हैं. परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र भी उसी हिसाब से छपवाए गए हैं. यदि याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाती है तो यह आयोग के लिए असुविधा होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने दी ये राहत: मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि एचजेएस की प्रीलिमनरी यानी प्रारंभिक परीक्षा 9 जुलाई से शुरू होनी है, लेकिन याचिकाकर्ताओं को उचित प्रारूप में या पूर्ण विवरण के साथ क्रेडेंशियल प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं करने के कारण परीक्षा से बाहर कर दिया गया है. याचिकर्ता के अनुसार विज्ञापन की शर्तों को देखते हुए, क्रेडेंशियल यानी साख प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं करना आवश्यक योग्यता नहीं माना जा सकता है. ऐसे में उपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरदाताओं को यह निर्देश दिए कि वे याचिकाकर्ताओं को परीक्षा के लिए केंद्र निर्दिष्ट करते हुए जरूरी प्रवेश पत्र जारी करके नौ जुलाई को शुरू होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में अंतरिम रूप से उपस्थित होने की अनुमति दें. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया गया है कि इस अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई इक्विटी नहीं बनेगी.

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